भारत जैसे विशाल और विविधताओं वाले देश में ग्रामीण विकास और बेरोजगारी की समस्या हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है. इसी चुनौती से निपटने के लिए वर्ष 2005 में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) लागू किया गया. इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना और उनके जीवन स्तर में सुधार लाना है.
मनरेगा (MANREGA), जिसे पहले नरेगा (NREGA) कहा जाता था, एक कानूनी अधिकार आधारित योजना है. इस अधिनियम के तहत किसी भी ग्रामीण परिवार को, जिसकी वयस्क सदस्य अकुशल श्रम करना चाहते हैं, प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का गारंटीकृत रोजगार प्रदान किया जाता है.
इसके जरीए कानूनी गारंटी: रोजगार न मिलने पर सरकार को बेरोजगारी भत्ता देना होता है.
समान वेतन: पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन दिया जाता है.
स्थानीय रोजगार: काम स्थानीय स्तर पर दिया जाता है ताकि पलायन न हो.
पारदर्शिता और जवाबदेही: कार्यों की निगरानी ग्राम सभाओं और सामाजिक ऑडिट के माध्यम से की जाती है.
मनरेगा उद्देश्यों में ग्रामीण लोगों को स्थायी और सम्मानजनक रोजगार देना, ग्रामीण बुनियादी ढांचे का विकास करना (जैसे सड़क, तालाब, जल संरक्षण आदि), गरीबी और भुखमरी को कम करना, महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना शामिल है.
सर्दी अभी शुरू भी नहीं हुई और नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (NHRC) ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को चेतावनी दे दी है. 2019 से 2023 के बीच ठंड से हुई 3,600 से ज्यादा मौतों के आंकड़े सामने आने के बाद आयोग ने कहा है कि इस बार किसी की जान लापरवाही की वजह से नहीं जानी चाहिए. आयोग ने नवजातों, बच्चों, बुजुर्गों और बेघर लोगों के लिए ठंड से बचाव के ठोस इंतज़ाम करने को कहा है.
गुजरात विधानसभा के मानसून सत्र के पहले दिन कांग्रेस ने मनरेगा योजना में कथित घोटाले को लेकर विरोध प्रदर्शन किया. कांग्रेस का आरोप है कि पूरे गुजरात और देश में लाखों लोग बेरोजगार हैं, लेकिन मनरेगा योजना का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है. कई जगहों पर मृत व्यक्तियों, सरकारी कर्मचारियों, पुलिस और सेना के जवानों के नाम पर जॉब कार्ड बने पाए गए हैं.