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मालदा

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मालदा जिला (Malda District), जिसे मालदह या मालदाहा भी कहा जाता है, पश्चिम बंगाल का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध जिला है. यह जिला अपने विशेष किस्म के आम ‘फजली आम’, जूट उत्पादन और रेशम उद्योग के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है.

मालदा को उत्तर बंगाल का प्रवेश द्वार (Gateway of North Bengal) कहा जाता है. यहां का लोकसंस्कृति "गोंभीर" (Gombhira) लोकनृत्य इस क्षेत्र की पहचान है, जो आम लोगों की खुशियों, दुखों और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को अद्भुत ढंग से प्रस्तुत करता है.

मालदा जिले का इतिहास अत्यंत गौरवशाली है. यहां स्थित गौड़ (Gauda) और पांडुआ (Pandua) कभी बंगाल सल्तनत की राजधानी हुआ करते थे. गौड़ साम्राज्य की प्रसिद्धता पूरे मध्यकालीन भारत में थी, और यह क्षेत्र बंगाल की सांस्कृतिक और प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र रहा है.

मालदा का नाम यहां उगने वाले फजली आम से जुड़ा है, जिसकी मिठास और सुगंध इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाती है.
इस आम को कई देशों में निर्यात किया जाता है.

मालदा का कुल क्षेत्रफल लगभग 3,733.66 वर्ग किलोमीटर है. जिले की भूमि को तीन भागों में बांटा गया है - ताल (Tal) – निचला क्षेत्र जहाँ बाढ़ का असर अधिक रहता है.

दियारा (Diara) – गंगा नदी के किनारे की उपजाऊ भूमि.

बारिंद (Barind) – ऊंचा और कठोर भूभाग, जहाँ धान और जूट की खेती होती है.

2011 की जनगणना के अनुसार मालदा जिले की कुल जनसंख्या 39,88,845 थी, जबकि 2001 में यह 32,90,160 थी. यहां की मुख्य भाषा बंगाली है, लेकिन कुछ अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा खोट्टा, संथाली, मैथिली और हिंदी भी बोली जाती है.

मालदा की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित है. यहां के अधिकांश लोग कृषि मजदूर या अकुशल श्रमिक हैं. यहां की मुख्य फसलों में आम, जूट, धान मुख्य है. रेशम उत्पादन के लिए शहतूत की खेती की जाती है.

हालांकि यहां कोई बड़ी औद्योगिक इकाई नहीं है, फिर भी मालदा का फजली आम, रेशम वस्त्र, और जूट उत्पाद देश-विदेश में निर्यात किए जाते हैं.

भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय ने 2006 में मालदा को देश के सबसे पिछड़े 283 जिलों में से एक घोषित किया था. यह जिला Backward Regions Grant Fund Programme (BRGF) के तहत वित्तीय सहायता प्राप्त करता है. हाल के वर्षों में यहाँ की सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं.

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