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चंद्र ग्रहण

चंद्र ग्रहण

चंद्र ग्रहण

चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse) एक खगोलीय घटना है. जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और अपनी छाया चंद्रमा पर डालती है तो ऐसी स्थिति चंद्र ग्रहण कहलाता है. यह घटना केवल पूर्णिमा (पूर्ण चंद्र) के दिन होती है, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में स्थित होते हैं. एक अद्भुत खगोलीय घटना है, जो विज्ञान और परंपराओं दोनों से जुड़ी हुई है. यह न केवल वैज्ञानिकों के लिए अनुसंधान का विषय है, बल्कि आम लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र रहता है. 

साल 2025 का आखिरी चंद्र ग्रहण 7 सितंबर को लगा, जो भारत में शाम 9 बजकर 58 मिनट पर शुरू होगा. इसका सूतक काल दोपहर 12 बजकर 57 मिनट से प्रारंभ हो जाएगा.

चंद्र ग्रहण मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- 1- पूर्ण चंद्र ग्रहण- जब चंद्रमा पूरी तरह पृथ्वी की छाया में आ जाता है, तो इसे पूर्ण चंद्र ग्रहण कहते हैं. इस स्थिति में चंद्रमा का रंग तांबे या लाल रंग का दिखाई देता है, जिसे "ब्लड मून" भी कहा जाता है.

2- आंशिक चंद्र ग्रहण- जब चंद्रमा का केवल कुछ भाग पृथ्वी की छाया में आता है, तो इसे आंशिक चंद्र ग्रहण कहा जाता है.

3- उपछाया चंद्र ग्रहण- जब चंद्रमा पृथ्वी की हल्की छाया (उपछाया) में प्रवेश करता है, तो इसे उपछाया चंद्र ग्रहण कहा जाता है. इस प्रकार के ग्रहण को देख पाना कठिन होता है.

वैज्ञानिक दृष्टि से चंद्र ग्रहण एक सामान्य खगोलीय घटना है, लेकिन विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं में इसे विशेष महत्व दिया जाता है. कई परंपराओं में चंद्र ग्रहण को शुभ या अशुभ माना जाता है. भारत में इस समय भोजन न करने, मंदिरों के दरवाजे बंद रखने और स्नान करने जैसी परंपराएं प्रचलित हैं.

कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि चंद्र ग्रहण का समुद्र की ज्वार-भाटा पर प्रभाव पड़ सकता है, हालांकि यह प्रभाव नगण्य होता है.

चंद्र ग्रहण को देखने के लिए किसी विशेष उपकरण की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि यह बिना किसी खतरे के खुली आंखों से देखा जा सकता है. हालांकि, अच्छे अनुभव के लिए दूरबीन या टेलीस्कोप का उपयोग किया जा सकता है.

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