इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) एक विशाल अंतरिक्ष प्रयोगशाला है. यह पृथ्वी की निम्न कक्षा में स्थित है. यह एक बहुराष्ट्रीय परियोजना है, जिसे NASA (अमेरिका), Roscosmos (रूस), JAXA (जापान), ESA (यूरोप), और CSA (कनाडा) जैसे अंतरिक्ष संगठनों द्वारा संचालित किया जाता है.
यह स्टेशन एक माइक्रोग्रैविटी और अंतरिक्ष पर्यावरण अनुसंधान प्रयोगशाला के रूप में कार्य करता है जिसमें खगोल जीव विज्ञान, खगोल विज्ञान, मौसम विज्ञान, भौतिकी और अन्य क्षेत्रों में वैज्ञानिक अनुसंधान किया जाता है. ISS चंद्रमा और मंगल पर संभावित भविष्य की लंबी अवधि के मिशन के लिए आवश्यक अंतरिक्ष यान प्रणालियों और उपकरणों के परीक्षण के लिए उपयुक्त है.
सोवियत, रूसी सैल्यूट, अल्माज, मीर स्टेशन (Mir stations) और अमेरिकी स्काईलैब (American Skylab) के बाद, ISS नौवां अंतरिक्ष स्टेशन है जिसमें चालक दल रहते हैं. यह अंतरिक्ष में सबसे बड़ी कृत्रिम वस्तु है और पृथ्वी की निचली कक्षा में सबसे बड़ा उपग्रह है, जो नियमित रूप से पृथ्वी की सतह से देखा जा सकता है. ISS पृथ्वी का लगभग 93 मिनट में चक्कर लगाता है और रोज 15.5 परिक्रमाएं पूरी करता है (ISS circles the Earth).
स्टेशन को दो खंडों में विभाजित किया गया है पहला, Russian Orbital Segment (ROS) रूस द्वारा संचालित है, जबकि दूसरा, United States Orbital Segment (USOS) संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ-साथ अन्य राज्यों द्वारा चलाया जाता है. रूसी खंड में छह मॉड्यूल शामिल हैं और यूएस सेगमेंट में दस मॉड्यूल शामिल हैं, जिनकी हेल्पिंग सर्विस NASA के लिए 76.6%, JAXA के लिए 12.8%, ESA के लिए 8.3% और CSA के लिए 2.3% वितरित की जाती हैं (ISS is divided into two sections).
चेन्नई के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (एनआईओटी) में मिशन समुद्रयान की तैयारियां हो रही हैं. यह वो समुद्री अभियान है, जिसमें एक्वानॉट्स को काफी गहराई तक भेजा जाएगा. वे घरेलू पनडुब्बी के जरिए कुछ सौ मीटर से लेकर छह हजार मीटर की गहराई तय करेंगे. एक्वानॉट्स की ट्रेनिंग एस्ट्रोनॉट्स से अलग, लेकिन कहीं ज्यादा मुश्किल होती है.
देश के वैज्ञानिक अगले दो दशकों के भीतर हिंद महासागर के भीतर दुनिया की सबसे गहरी प्रयोगशाला बना सकते हैं. यहां वे कई तरह के प्रयोग करते हुए ये भी देखेंगे कि क्या समुद्र के भीतर भी इंसानी बस्ती बसाई जा सकती है! लंबे समय ये साइंटिस्ट स्पेस में कॉलोनी बनाने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन धरती पर मौजूद समुद्र से बचते रहे.
5 नवंबर 2025 को शेंझोउ-20 स्पेसक्राफ्ट को अंतरिक्ष के कचरे ने टक्कर मारी. इसकी वजह से चीन के तीन अंतरिक्ष यात्री की वापसी टल गई है. तीनों स्पेस स्टेशन पर ही हैं. हीट शील्ड की जांच की जा रही है. इंजीनियर मरम्मत या बिना क्रू के वापसी प्लान कर रहे. लोअर अर्थ ऑर्बिट में लाखों कचरे से खतरा बढ़ गया है.
जिराफ के आकार का एक एस्टेरॉयड धरती के इतने करीब से गुजरा कि इसने खलबली मचा दी. हालांकि इसके आने और जाने के पता वैज्ञानिकों को घंटों बाद चला. ये स्पेस स्टेशन जितनी दूरी से निकला. किस्मत अच्छी थी कि ये कि किसी सैटेलाइट या स्पेस स्टेशन से नहीं टकराया.
चीन 5-10 सालों में स्पेस रेस में अमेरिका को पीछे छोड़ सकता है. 'रेडशिफ्ट' रिपोर्ट कहती है कि चीन का तियांगोंग स्पेस स्टेशन, चंद्रमा मिशन और सैटेलाइट तेजी से बढ़ रहे हैं. NASA का बजट कटने से अमेरिका पिछड़ रहा. चीन ने 2024 में $2.86 बिलियन खर्च किए. अगर अमेरिका न जागा, तो CNSA नई NASA बनेगी.
Shubhanshu Shukla भले ही धरती पर लौट चुके हों, लेकिन उनकी चुनौतियां अभी कम नहीं हुई हैं.
शुभांशु शुक्ला 18 दिनों तक स्पेस स्टेशन पर रहे. इस दौरान वो 60 अलग-अलग एक्सपेरिमेंट का हिस्सा बने. ISRO के सात प्रयोग किए. पीएम नरेंद्र मोदी, इसरो चीफ और स्कूल के बच्चों से बात की. उनके मिशन वैज्ञानिक शोध, जनसंपर्क और भारत के गगनयान मिशन के लिए तैयारी शामिल थी.
Shubhanshu Shukla ने International Space Station पर 18 दिनों में कौन-कौन से प्रयोग किए?
अंतरिक्ष से लौटने पर PM Modi ने Shubhanshu Shukla को दी बधाई, कहा- “गगनयान मिशन की दिशा में मील का पत्थर”
Shubhanshu Shukla की स्पेस से वापसी पर माता-पिता हुए भावुक, कही दिल छू लेने वाली बात.
शुभांशु शुक्ला ने 15 जुलाई दोपहर 3:00 बजे कैलिफोर्निया तट पर लैंड कर लिया है. 18 दिन की ISS यात्रा के बाद ड्रैगन कैप्सूल 27000 किमी/घंटा की रफ्तार से वायुमंडल में प्रवेश कर गया. इस दौरान तापमान 1600°C के आसपास रहा. ड्रैगन कैप्सूल पैराशूट से समुद्र में उतरा.
शुभांशु शुक्ला की समुद्र में लैंडिंग भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक सुनहरा अध्याय जोड़ती है. ग्रेस यान के साथ उनकी वापसी न केवल वैज्ञानिक उपलब्धि है, बल्कि देश के लिए प्रेरणा भी है. 10 दिन के आइसोलेशन के बाद वे नॉर्मल लाइफ में लौटेंगे, लेकिन उनकी यह यात्रा हमेशा याद रखी जाएगी.
अंतरिक्ष स्टेशन से धरती पर पहुंचे Shubhanshu Shukla, समंदर में सुरक्षित लैंड हुआ GRACE
ड्रैगन और Ax-4 क्रू 15 जुलाई 2025 को सैन डिएगो तट पर स्प्लैशडाउन के साथ पृथ्वी पर लौटेंगे. सोनिक बूम के साथ उनकी वापसी एक यादगार पल होगी. अंतरिक्ष में ग्रुप फोटो का अनोखा तरीका और वैज्ञानिक प्रयोगों का डेटा इस मिशन को खास बनाते हैं.
Ax-4 मिशन के अंतर्गत भारत के शुभांशु शुक्ला 15 जुलाई 2025 को पृथ्वी पर लौटे. स्पेसएक्स ड्रैगन यान ने सैन डिएगो तट पर सफल स्प्लैशडाउन किया. जानें वापसी की पूरी प्रक्रिया, मिशन का सफर और शुक्ला के लिए आगे की योजना.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से अपना मिशन पूरा कर धरती पर लौट रहे हैं एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला. चारों एस्ट्रोनॉट के साथ उनका ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट 15 जुलाई यानि आज दोपहर करीब 3 बजे कैलिफोर्निया में स्प्लैशडाउन करेगा.
जिस International Space Station पर 18 दिन तक रहे शुभांशु शुक्ला, जानिए उसकी खासियत.
एक्सिओम मिशन 4 का समापन ड्रैगन के ISS से अलग होने के साथ हुआ, जो एक नई शुरुआत का संकेत है. शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम 15 जुलाई को पृथ्वी पर लौटेगी, अपने साथ 60 से अधिक प्रयोगों का डेटा लेकर. यह मिशन न केवल वैज्ञानिक उपलब्धि है, बल्कि भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में एक नया अध्याय भी है.
भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला एक्सिओम मिशन 4 के तहत ISS से 14 जुलाई 2025 को लौटेंगे. स्पेसएक्स ड्रैगन यान 263 किग्रा कचरा लाएगा. दो अंतरिक्ष यात्री ISS पर रहेंगे. नासा शाम 4:15 बजे IST से अनडॉकिंग का सीधा प्रसारण करेगा. मिशन में भारत, पोलैंड, हंगरी के अंतरिक्ष यात्रियों ने 60+ प्रयोग किए.
भारत के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से मिशन पूरा कर धरती पर लौट रहे हैं. कैलिफोर्निया के समंदर में उनका कैप्सूल स्प्लैशडाउन करेगा. उनके परिवार ने आजतक से खास बातचीत में खुशी, गर्व और भावनाओं से भरे अनुभव साझा किए. मां-पिता-बहन सभी ने शुभांशु की अंतरिक्ष यात्रा को यादगार बताया.
Space Station से जल्द वापस आएंगे Shubhanshu Shukla और तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री, जानिए वो अपने साथ क्या क्या लेकर आएंगे.