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भागीरथी, खीरगंगा, अलकनंदा, ऋषिगंगा... उत्तराखंड की नदियां क्यों तबाही का कारण बन रहीं?

उत्तराखंड की नदियां और पहाड़ प्रकृति का अनमोल तोहफा हैं, लेकिन इंसानी लापरवाही और जलवायु परिवर्तन ने इन्हें तबाही का हथियार बना दिया है. भागीरथी, अलकनंदा और ऋषिगंगा जैसी नदियां, जो कभी जीवन का आधार थीं, अब गलत नीतियों और पर्यावरण की अनदेखी के कारण खतरा बन रही हैं. वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि अगर हम समय रहते सतर्क नहीं हुए, तो ऐसी आपदाएं और बढ़ेंगी.

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2013 में केदारनाथ, 2021 में ऋषिगंगा और अब धराली, उत्तराखंड की नदियां अक्सर उफान पर आ रही है. पहाड़ गिर रहे हैं. (Graphics: ITG)
2013 में केदारनाथ, 2021 में ऋषिगंगा और अब धराली, उत्तराखंड की नदियां अक्सर उफान पर आ रही है. पहाड़ गिर रहे हैं. (Graphics: ITG)

उत्तराखंड, जिसे 'देवभूमि' के नाम से जाना जाता है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, हिमालय की ऊंची चोटियों और पवित्र नदियों जैसे गंगा, यमुना, भागीरथी, अलकनंदा और ऋषिगंगा के लिए प्रसिद्ध है. लेकिन हाल के वर्षों में ये नदियां और पहाड़, जो कभी जीवनदायिनी माने जाते थे, अब बार-बार तबाही का कारण बन रहे हैं.

बाढ़, भूस्खलन और ग्लेशियर टूटने जैसी घटनाएं उत्तराखंड में आम हो गई हैं. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या इसके पीछे प्रकृति का प्रकोप है या इंसानी गलतियां? इस लेख में हम वैज्ञानिक तथ्यों और शोध पत्रों के आधार पर इस सवाल का जवाब समझने की कोशिश करेंगे.

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उत्तराखंड में बार-बार आपदाएं: एक नजर

उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन इनकी तीव्रता और बारंबारता पिछले कुछ दशकों में बढ़ी है. उदाहरण के लिए...

dharali uttarkashi flash flood

  • 2013 केदारनाथ त्रासदी: भारी बारिश और मंदाकिनी नदी में बाढ़ ने हजारों लोगों की जान ले ली. भारी तबाही हुई.
  • 2021 चमोली हादसा: ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में ग्लेशियर टूटने से आई बाढ़ ने तपोवन बांध को नष्ट कर दिया और कई लोगों की जान चली गई.
  • 2023 में भूस्खलन और बाढ़: बारिश के मौसम में कई जगहों पर भूस्खलन और नदियों का उफान देखा गया, जिससे सड़कें, पुल और घर बह गए.

तबाही के कारण: प्रकृति और इंसान का गठजोड़

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वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के अनुसार, उत्तराखंड में होने वाली तबाही के पीछे प्राकृतिक और मानवीय कारणों का मिश्रण है. आइए, इसे विस्तार से समझते हैं...

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1. भूगर्भीय अस्थिरता और हिमालय की संरचना

हिमालय एक युवा पर्वत श्रृंखला है, जो भूगर्भीय रूप से अभी भी सक्रिय है. शोध बताते हैं कि हिमालय की ऊंचाई हर साल 4-5 मिलीमीटर बढ़ रही है क्योंकि भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट्स आपस में टकरा रही हैं. इस टकराव से भूकंपीय हलचल होती है, जो चट्टानों को कमजोर करती है.

वैज्ञानिक तथ्य: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के एक अध्ययन के अनुसार, उत्तराखंड में छोटे-छोटे भूकंप (3.0-4.0 तीव्रता) अक्सर आते हैं. ये भूकंप भविष्य में 7.0 तीव्रता के बड़े भूकंप का संकेत हो सकते हैं.

प्रभाव: इन भूकंपीय हलचलों से पहाड़ों की चट्टानें कमजोर होकर टूटती हैं, जिससे भूस्खलन और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है. खासकर अलकनंदा और भागीरथी नदियों के किनारे बसे इलाके इसकी चपेट में आते हैं.

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2. ग्लेशियरों का पिघलना और जलवायु परिवर्तन

उत्तराखंड की नदियां जैसे भागीरथी, अलकनंदा और ऋषिगंगा हिमनदों (ग्लेशियर्स) से निकलती हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण ये ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नदियों में अचानक बाढ़ की स्थिति बन रही है.

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वैज्ञानिक तथ्य: नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च के एक शोध के अनुसार, हिमालय के ग्लेशियर हर साल 0.5-1% की दर से सिकुड़ रहे हैं. गंगोत्री ग्लेशियर, जो भागीरथी नदी का स्रोत है, पिछले 50 सालों में करीब 1.5 किमी पीछे खिसक चुका है.

2021 चमोली आपदा का उदाहरण: एक ग्लेशियर के टूटने से ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक बाढ़ आई, जिसने तपोवन बांध को तबाह कर दिया. शोधकर्ताओं ने इसे ग्लेशियर पिघलने और चट्टानों के टूटने का संयुक्त प्रभाव बताया.

3. मानवीय गतिविधियां: प्रकृति पर बोझ

उत्तराखंड में बढ़ते पर्यटन, अनियोजित निर्माण और जलविद्युत परियोजनाएं तबाही को और बढ़ा रही हैं...

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अनियोजित निर्माण और खनन: पहाड़ों में सड़कें, सुरंगें और बांध बनाने के लिए बड़े पैमाने पर ड्रिलिंग और विस्फोट किए जाते हैं. इससे चट्टानें कमजोर होती हैं. भूस्खलन का खतरा बढ़ता है.

उदाहरण: चमोली जिले में रांति पहाड़ का 550 मीटर चौड़ा हिस्सा 2021 में टूट गया, जिससे तपोवन में भारी तबाही हुई. पर्यावरणविदों का कहना है कि यह बांध निर्माण के कारण हुआ.

पर्यटन का दबाव: उत्तराखंड में हर साल 4 करोड़ से ज्यादा पर्यटक आते हैं, खासकर बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे तीर्थ स्थलों पर. इससे जंगलों की कटाई, कचरा और प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ता है.

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जलविद्युत परियोजनाएं: अलकनंदा और भागीरथी नदियों पर कई बांध बनाए गए हैं. ये बांध नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को रोकते हैं, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ता है. एक अध्ययन के अनुसार, उत्तराखंड में 70 से ज्यादा जलविद्युत परियोजनाएं हैं, जिनमें से कई भूकंप संवेदनशील क्षेत्रों में हैं.

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4. मौसम का बदलता मिजाज

उत्तराखंड में भारी बारिश और बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, पिछले 20 सालों में उत्तराखंड में मॉनसून की बारिश की तीव्रता 20-30% बढ़ी है.... 

प्रभाव: भारी बारिश से नदियां जैसे मंदाकिनी, अलकनंदा और भागीरथी उफान पर आती हैं, जिससे बाढ़ और भूस्खलन होता है. 2013 की केदारनाथ त्रासदी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जब मंदाकिनी नदी ने भारी तबाही मचाई.

वैज्ञानिक तथ्य: एक शोध पत्र में बताया गया कि हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने की घटनाएं जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रही हैं, क्योंकि गर्म हवा अधिक नमी को पकड़ती है, जिससे अचानक भारी बारिश होती है.

क्या हैं समाधान?

उत्तराखंड की नदियों और पहाड़ों को तबाही का कारण बनने से रोकने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं...

  • टिकाऊ विकास: सड़कों और बांधों का निर्माण भूकंप और पर्यावरण को ध्यान में रखकर करना चाहिए. वैज्ञानिकों का सुझाव है कि छोटे और पर्यावरण-अनुकूल बांध बनाए जाएं.
  • ग्लेशियर निगरानी: ग्लेशियरों की निगरानी के लिए सैटेलाइट और सेंसर का उपयोग बढ़ाना चाहिए ताकि अचानक बाढ़ की चेतावनी पहले मिल सके.
  • पर्यटन नियंत्रण: तीर्थ स्थलों पर पर्यटकों की संख्या सीमित करनी चाहिए और कचरे के प्रबंधन के लिए सख्त नियम लागू करने चाहिए.
  • जंगल और पर्यावरण संरक्षण: जंगलों की कटाई रोककर और पेड़ लगाकर भूस्खलन को कम किया जा सकता है. उत्तराखंड में 60% से ज्यादा क्षेत्र वनों से घिरा है, लेकिन अवैध कटाई इसे कमजोर कर रही है.
  • स्थानीय जागरूकता: स्थानीय लोगों को आपदा प्रबंधन की ट्रेनिंग देनी चाहिए ताकि वे मुश्किल हालात में तुरंत कार्रवाई कर सकें.
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