उत्तराखंड के उत्तरकाशी (Uttarkashi) जिले में स्थित धराली (Dharali) एक खूबसूरत और शांत पहाड़ी गांव है, जो गंगोत्री जाने वाले मार्ग पर हर्षिल घाटी के समीप स्थित है. समुद्र तल से लगभग 2,700 मीटर की ऊंचाई पर बसे इस गांव को प्रकृति प्रेमियों, ट्रेकिंग के शौकीनों और उन लोगों के लिए स्वर्ग माना जाता है जो भीड़भाड़ से दूर शांति और आध्यात्म की तलाश में होते हैं.
5 अगस्त 2025 को धराली में बादल फटने के कारण पहाड़ों से आए मलबे से कई घर तबाह हो गए. इस घटना में लगभग 4 लोगों की मौत हो गई और करीब 100 लोग लापता हैं (Dharali Cloud Burst Flood).
धराली चारों ओर से ऊंचे देवदार और चीड़ के जंगलों से घिरा हुआ है. भागीरथी नदी यहां से कुछ ही दूरी पर बहती है, जो इस जगह की खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. सर्दियों में यह गांव बर्फ की सफेद चादर से ढक जाता है और गर्मियों में यहां हरियाली का नज़ारा मंत्रमुग्ध कर देता है.
धराली न सिर्फ एक पर्यटन स्थल है, बल्कि यह गांव उत्तराखंड के प्रमुख सेब उत्पादन क्षेत्रों में से एक है. यहां के सेब स्वाद में इतने बेहतरीन होते हैं कि देशभर में इनकी बड़ी मांग रहती है. इसके अलावा धराली की राजमा भी बहुत प्रसिद्ध है, जिसे इसके शुद्ध और ठंडे वातावरण में उगाया जाता है.
धराली धार्मिक दृष्टि से भी खास महत्व रखता है. यह गंगोत्री धाम की यात्रा के मार्ग में आता है, और बहुत से श्रद्धालु यहां रुककर प्रकृति की शांति में ईश्वर को याद करते हैं. पास ही स्थित हर्षिल भी प्रसिद्ध पर्यटन और धार्मिक स्थल है, जिससे धराली और भी ज्यादा आकर्षक बन जाता है.
इस साल हम भारतीयों ने 273 दिनों में से 270 दिन भयानक मौसम की मार झेली है. जिसमें लू, बाढ़, ठंड, लैंडस्लाइड शामिल है. इससे सभी 36 राज्य प्रभावित हुए हैं. सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ हिमाचल प्रदेश. यहां 217 दिन ऐसे खतरनाक मौसम देखे गए. यह संकट अब रोजमर्रा का हाल बन गया है. कारण मौसम का बदलना है, जो हमारी हरकतों से बदल रहा है.
2025 में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की नमी का हिमालय पार कर तिब्बत तक पहुंचना एक असामान्य और महत्वपूर्ण घटना है. सैटेलाइट चित्रों और वैज्ञानिकों की जांच से पता चलता है कि ग्लोबल वॉर्मिंग और पश्चिमी विक्षोभों की बढ़ती संख्या इसके पीछे हो सकती है. यह घटना दक्षिण एशिया के मौसम, खेती और पर्यावरण पर गहरा असर डाल सकती है.
हिमालय हर दिन आपदाओं का सामना कर रहा है. 2025 का मॉनसून उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में भारी तबाही लाया. भूस्खलन, फ्लैश फ्लड और बादल फटने से 632 लोग मारे गए. ऊंचे इलाकों में बारिश बढ़ने से ग्लेशियरों का मलबा बह रहा है, जिससे बाढ़ आ रही है. फ्लैश फ्लड के रास्तों की पहचान और पर्यावरण-अनुकूल विकास जरूरी है.
हिमालयी राज्य उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर भारी बारिश, भूस्खलन, बादल फटने और फ्लैश फ्लड से जूझ रहे हैं. अगस्त 2025 में उत्तर-पश्चिम भारत में 265 मिमी बारिश हुई, जो 2001 के बाद सबसे ज्यादा है. IMD ने सितंबर में 109% ज्यादा बारिश की चेतावनी दी है. विकास मॉडल गलत है, मौसम पूर्वानुमान बेहतर है लेकिन चेतावनी पर अमल न होने से नुकसान बढ़ता है.
धराली और किश्तवाड़ में बादल फटने से मची तबाही के बाद अब जम्मू के डोडा जिले में क्लाउडबस्ट की घटना सामने आई है. इलाके में बादल फटने से चार लोगों की मौत हो चुकी है और कई मकान सैलाब में बह गए हैं.
2025 के सात महीनों में मौसमी आपदाओं ने भारत को हिला दिया. 1626 मौतें, 1.57 लाख हेक्टेयर फसलें बर्बाद और हजारों मवेशियों का नुकसान इस तबाही की गंभीरता दिखाता है. उत्तराखंड, हिमाचल और अन्य राज्य इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए.
चमोली के थराली में बादल फटने से भारी तबाही हुई है. थराली बाजार, तहसील परिसर और कई घरों में मलबा घुस गया, गाड़ियां भी दब गईं. सागवाड़ा गांव में एक युवती की मौत हुई है और एक व्यक्ति लापता है. थराली-ग्वालदम और थराली-सागवाड़ा मार्ग बंद हैं. SDRF की टीम राहत कार्य में लगी है.
चमोली के थराली में बादल फटने से भारी नुकसान हुआ है. थराली बाजार और तहसील परिसर में मलबा आने से गाड़ियां दब गईं और कई घर क्षतिग्रस्त हो गए. हादसे में एक व्यक्ति की मौत की खबर है, जबकि एक शख्स लापता बताया जा रहा है. प्रशासन और एसडीआरएफ, एनडीआरएफ की टीमें राहत और बचाव कार्य में जुटी हुई हैं.
पिछले दो दशकों में भारत ने हाइड्रो-मौसमी आपदाओं के कारण भारी नुकसान झेला है. हजारों लोगों की जान, लाखों पशु, मकान और फसलें बर्बाद हुई हैं. राहत खर्च बढ़ रहा है, लेकिन आपदाओं की तीव्रता और आवृत्ति भी बढ़ रही है. जलवायु परिवर्तन और अनियोजित विकास इस समस्या को और गंभीर बना रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक, बादल फटने के 7 खतरनाक जोन देश के लिए चुनौती बने हुए हैं. फ्लैश फ्लड और भूस्खलन जैसे खतरे जान-माल और संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियां इस समस्या को बढ़ा रही हैं.
किश्तवाड़ में बादल फटने की घटना चशोटी और पड्डर क्षेत्र में हुई, जो 1818 से 3888 मीटर ऊंचे पहाड़ों और चिनाब नदी से घिरी है. इसकी भौगोलिक स्थिति इसे खतरनाक बनाती है, खासकर बारिश के मौसम में. राहत कार्य जारी है, लेकिन 40 लोगों के शव मिले हैं. सरकार को अब लंबे समय की योजना बनानी होगी ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदी से बचा जा सके.
चशोती में फ्लैश फ्लड का कारण अभी रहस्य बना हुआ है. बादल फटना या ग्लेशियर झील टूटना दोनों संभावित कारण हो सकते हैं, लेकिन बिना सैटेलाइट डेटा के कुछ कहना जल्दबाजी होगी. मौसम निगरानी केंद्रों की कमी और हिमालय की जटिल भौगोलिक स्थिति इसे और पेचीदा बनाती है.
पहाड़ों पर बादल फटने की घटनाएं अब आम होती जा रही हैं, जो प्रकृति और मानव के बीच असंतुलन का संकेत हैं. मंडी-धराली से कठुआ-किश्तवाड़ तक की तबाही हमें सिखाती है कि हमें प्रकृति के साथ तालमेल बनाना होगा. सरकार और समाज को मिलकर जलवायु परिवर्तन से निपटने और बेहतर तैयारी के लिए कदम उठाने होंगे.
SDRF और NIM की टीम ने एक अध्ययन में धराली-हर्षिल में आई आपदा के कारणों को लेकर चौंकाने वाला खुलासा किया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि श्रीकांत पर्वत के आधार के पास लगभग 4,800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित क्षेत्र से तीन दिशाओं से भारी मात्रा में मलबा नदी की सतह की ओर आ रहा था, जिसके कारण हिमनद नीचे खिसक गया.
खराब मौसम और लगातार हो रही बारिश के बावजूद सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी, बीआरओ और अन्य एजेंसियां राहत व बचाव कार्य में जुटी हैं. प्रभावित क्षेत्रों में फंसे लोगों तक खाने-पीने का सामान और जरूरी राहत सामग्री पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टरों और नौकाओं की मदद ली जा रही है.
उत्तरकाशी ज़िले का धराली गांव 5 अगस्त को कुदरत के कहर का गवाह बना. खीर गंगा से आए बाढ़ के उफानों ने पूरे गांव को दहला दिया. अब तक सामने आए छह अलग-अलग वीडियो बताते हैं कि किस तरह कुछ ही घंटों में गांव में तबाही का मंजर खड़ा हो गया.
5 अगस्त को उत्तरकाशी ज़िले के धराली गांव में कुदरत का कहर अनगिनत बार टूटा, लेकिन अब तक 6 घटनाओं के वीडियो सामने आए हैं, जिनमें खीर गंगा में आई भयानक बाढ़ और उफान के मंजर को साफ देखा जा सकता है
भारतीय सेना ने हर्षिल सैन्य शिविर में कीचड़ में फंसे अपने लापता जवानों की तलाश के लिए खोजी कुत्तों और थर्मल स्कैनर को भी तैनात किया है. लापता नौ जवानों की तलाश अभी भी जारी है.
उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में 5 अगस्त को कुदरत ने छह बार प्रहार किया. दोपहर 1:30 बजे पहली बार आई बाढ़ और जलजले ने गांव में तबाही मचाई. बार-बार आए जलजले से पुल, मोबाइल टावर और बिजली व्यवस्था ध्वस्त हो गई. ग्रामीणों में अफरातफरी मच गई और संपर्क पूरी तरह से टूट गया.
उत्तराखंड के धराली में आपदा के 9वें दिन भी रेस्क्यू ऑपरेशन पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाया है. खराब मौसम और संचार नेटवर्क ठप होने के कारण राहत कार्यों में बाधा आ रही है.
उत्तराखंड के धराली में आपदा के 9वें दिन भी रेस्क्यू ऑपरेशन पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाया है. खराब मौसम और संचार नेटवर्क ठप होने के कारण राहत कार्यों में दिक्कतें आ रही हैं.