उत्तरकाशी
उत्तरकाशी (Uttarkashi) भारत के राज्य उत्तराखंड (Uttarakhand) का एक जिला है और इसका मुख्यालय उत्तरकाशी शहर है. यह गढ़वाल मंडल का एक हिस्सा है. इस जिले का क्षेत्रफल 8,016 वर्ग किलोमीटर है (Uttarkashi Geographical Area).
उत्तरकाशी जिले में टिहरी गढ़वाल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का आंशिक हिस्सा (Lok Sabha constituency) और तीन विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र शामिल हैं (Assembly constituency).
2011 जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक उत्तरकाशी की जनसंख्या (Uttarkashi Population) तीन लाख से ज्यादा है और यहां प्रति वर्ग किलोमीटर 41 लोग रहते हैं (Density). यहां का लिंग अनुपात (Sex Ratio) 958 है. यहां की 75.81 फीसदी जनसंख्या साक्षर है. उत्तरकाशी में पुरुष 88.79 फीसदी और महिलाओं की साक्षरता दर 62.35 फीसदी है (Uttarkashi literacy).
उत्तरकाशी जिला हिमालय रेंज की ऊंचाई पर बसा हुआ है और इस जिले में गंगा और यमुना दोनों नदियों का उद्गम है. यहां पर हर साल हजारों तीर्थयात्री स्नान करने आते हैं. उत्तरकाशी, गंगोत्री जाने के मुख्य मार्ग में पड़ता है. यहां बहुत से मंदिर हैं और इसे एक तीर्थयात्रा केंद्र माना जाता है. इस जिले के उत्तर और उत्तर-पश्चिम में हिमाचल प्रदेश, उत्तर-पूर्व में तिब्बत, पूर्व में चमोली जिला, दक्षिण-पूर्व में रूद्रप्रयाग जिला, दक्षिण में टिहरी गढ़वाल जिला और दक्षिण-पश्चिम में देहरादून जिला पड़ते हैं (Uttarkashi Geographical location).
उत्तरकाशी के पर्यटक स्थलों में गंगोत्री धाम, यमुनोत्री धाम, गोमुख, नेलांग वैली, गरतांग गली, डोडिताल झील और दयारा बुग्याल प्रसिद्ध हैं (Uttarkashi Tourist Place).
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में दर्दनाक घटना सामने आई है. यहां रहने वाली एक महिला घास काटने जंगल गई थी. अचानक झाड़ियों में छिपे भालू को देखकर घबरा गई और जान बचाने के लिए भागी. भागते समय वह फिसलकर गहरी खाई में जा गिरी, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई.
सर्दियों में बर्फ से ढके पहाड़ों की सैर का मजा ही कुछ और है. अगर आप भी पहली बार ट्रेकिंग करने का सोच रहे हैं, तो भारत में कई आसान और बेहद खूबसूरत विंटर ट्रेक हैं, जहां के नजारे दिल जीत लेते हैं.
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में एक रेस्टोरेंट कर्मचारी का बटर नान पर थूकते हुए वीडियो वायरल होने से बवाल मच गया है. हिंदू संगठनों ने इसे 'थूक जिहाद' बताते हुए कड़ी कार्रवाई की मांग की है. पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया है.
उत्तरकाशी में एक रेस्टोरेंट कर्मचारी का बटर नान पर थूकते हुए वीडियो वायरल होने से हंगामा मच गया. हिंदू संगठनों ने इसे ‘थूक जिहाद’ बताते हुए विरोध और बंद का आह्वान किया.पुलिस ने आरोपी युवक के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है.
उत्तराखंड के ग्रामीण सालों से सड़क की कमी के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी चीजों के लिए जूझ रहे हैं. लिवाड़ी–फिताड़ी सड़क अधूरी होने से स्थानीय लोगों की जिंदगी कठिनाई और जोखिम में है.
उत्तरकाशी में महसूस किए गए इन झटकों से लोगों में थोड़ी हलचल देखी गई. हालांकि, भूकंप की तीव्रता कम (3.6) होने के कारण जान-माल के नुकसान की कोई खबर नहीं है.
उत्तरकाशी में पत्रकार राजीव प्रताप सिंह की मौत सड़क हादसे से जुड़ी पाई गई है. एसआईटी जांच में सामने आया कि 18 सितंबर की रात उन्होंने शराब पीकर नशे की हालत में कार चलाई और हादसे का शिकार हुए.
उत्तरकाशी के स्वतंत्र पत्रकार राजीव प्रताप सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है. 'डेली उत्तराखंड लाइव' नामक चैनल चलाने वाले राजीव स्थानीय मुद्दों को उठाते थे. पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज और सीडीआर विश्लेषण के आधार पर इसे प्रथम दृष्टया एक दुर्घटना बताया है. हालांकि, परिवार पुलिस की जांच से संतुष्ट नहीं है और इसे दुर्घटना मानने से इनकार कर रहा है.
उत्तरकाशी पुलिस ने पत्रकार राजीव प्रताप की मौत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर दावा किया है कि उन्हें जिस तरह की चोट लगी है ऐसी चोटें अक्सर दुर्घटना के दौरान लगती है. एसपी सरिता डोभाल ने कहा है कि राजीव प्रताप 18 सितंबर की रात 11:39 बजे अकेले गाड़ी चलाते हुए दिखे थे.
राजीव प्रताप के भाई आलोक प्रताप सिंह के मुताबिक, जिला अस्पताल की खराब व्यवस्था उजागर करने के बाद उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई थी. उनका यह भी कहना है कि कार की क्षति और चोटें हादसे की थ्योरी से मेल नहीं खाती है.
आईआईटी रुड़की की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी जिलों में भूकंप और भूस्खलन का सबसे ज्यादा खतरा है. 2013 की केदारनाथ आपदा और हालिया घटनाओं के बाद सरकार ने सभी एजेंसियों को अलर्ट मोड पर रखा है और राहत-बचाव कार्यों के लिए तैयार रहने के निर्देश दिए हैं.
उत्तरकाशी के नौगांव में बादल फटने से बड़ा नुकसान हुआ है. एक घर मलबे में दब गया है और कई वाहन भी मलबे में फंसे हुए हैं. जम्मू-कश्मीर के सोनमर्ग में भी बादल फटा है, जिससे दोनों ही जगहों पर सैलाब का सितम जारी है. घटना पर दुख प्रकट करते हुए, राहत कार्य तेजी से करने के निर्देश दिए गए हैं.
देश के कई हिस्सों में भारी बारिश से जनजीवन प्रभावित हुआ है. उत्तरकाशी के नौगांव में बादल फटने से भारी तबाही हुई है. एक घर मलबे में दब गया है और कई वाहन फंस गए हैं. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घटना पर दुख व्यक्त करते हुए राहत कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं.
पहाड़ों से लेकर मैदान तक लगातार बारिश और बादल फटने से जनजीवन अस्त-व्यस्त है. उत्तरकाशी के नौगांव में बादल फटने से भारी नुकसान हुआ है. एक घर पूरी तरह से मलबे में दब गया है और कई वाहन फंसे हुए हैं. जम्मू-कश्मीर के सोनमर्ग के पास भी बादल फटने की खबर है.
उत्तरकाशी जिले के नौगांव में बादल फटने से भारी तबाही हुई है. यमुनोत्री नेशनल हाईवे से लगे नौगांव कस्बे में अचानक अतिवृष्टि के कारण पहाड़ी से पानी का तेज बहाव नीचे आया, जिससे 12 से अधिक मकान मलबे में दब गए. कई दोपहिया वाहन और सड़क निर्माण सामग्री भी मलबे की चपेट में आ गई.
उत्तरकाशी के नौगांव में बादल फटने से भारी तबाही हुई है. पहाड़ी राज्यों में आसमान से आफत बरस रही है. नौगांव में बादल फटने के कारण कुछ घरों को काफी नुकसान पहुंचा. एसडीआरएफ की टीमें राहत और बचाव काम में लगातार जुटी हुई हैं. मलबे के साथ पानी इतनी तेजी से बह रहा है जैसे पूरी नदी उतर आई हो.
उत्तरकाशी के नौगांव बाज़ार में अतिवृष्टि से तबाही मच गई. गधेरे (छोटे नाले) उफान पर आ गए और मलबा रिहायशी इलाकों में घुस गया. मलबे में एक मकान दब गया, कई घरों-दुकानों में पानी भर गया और वाहन बह गए. प्रशासन और आपदा प्रबंधन टीमें राहत-बचाव कार्य में लगी हुई हैं. इस हादसे के बाद दिल्ली-यमुनोत्री हाईवे बंद करना पड़ा, जिससे ट्रैफिक जाम हो गया.
2025 के सात महीनों में मौसमी आपदाओं ने भारत को हिला दिया. 1626 मौतें, 1.57 लाख हेक्टेयर फसलें बर्बाद और हजारों मवेशियों का नुकसान इस तबाही की गंभीरता दिखाता है. उत्तराखंड, हिमाचल और अन्य राज्य इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए.
कृत्रिम झील के कारण आस-पास के सभी होटल और घर जलमग्न हो गए और पानी नदी के पुल के ऊपर तक पहुंच गया. ओजरी, पुजारगांव, पाली, खराडी और कुथनोर तथा निचले इलाकों के लोगों को सतर्क रहने और नदी के पास जाने से बचने को कहा गया है.
पहाड़ों पर बादल फटने की घटनाएं अब आम होती जा रही हैं, जो प्रकृति और मानव के बीच असंतुलन का संकेत हैं. मंडी-धराली से कठुआ-किश्तवाड़ तक की तबाही हमें सिखाती है कि हमें प्रकृति के साथ तालमेल बनाना होगा. सरकार और समाज को मिलकर जलवायु परिवर्तन से निपटने और बेहतर तैयारी के लिए कदम उठाने होंगे.
SDRF और NIM की टीम ने एक अध्ययन में धराली-हर्षिल में आई आपदा के कारणों को लेकर चौंकाने वाला खुलासा किया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि श्रीकांत पर्वत के आधार के पास लगभग 4,800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित क्षेत्र से तीन दिशाओं से भारी मात्रा में मलबा नदी की सतह की ओर आ रहा था, जिसके कारण हिमनद नीचे खिसक गया.