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भारत-पाकिस्तान में इतना पॉल्यूशन है, पड़ोसी अफगानिस्तान में क्यों नहीं? कितना है वहां AQI

भारत-पाकिस्तान में प्रदूषण ज्यादा है क्योंकि यहां आबादी घनी (दिल्ली-लाहौर जैसे मेगा-सिटी), उद्योग (कपड़ा-ईंट भट्टे) सक्रिय हैं. पराली जलाना आम है. गंगा मैदान में हवा फंस जाती है. अफगानिस्तान में कम आबादी (ज्यादातर गांव), सीमित उद्योग, छोटे स्तर की खेती, पहाड़ी इलाका हवा बहने देता है. हालांकि धूल-लकड़ी जलाना समस्या है.

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काबुल शहर की ये रंगीन तस्वीर वहां के मौसम का हाल बयां करती है. (File Photo: Getty)
काबुल शहर की ये रंगीन तस्वीर वहां के मौसम का हाल बयां करती है. (File Photo: Getty)

वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन गया है. खासकर भारत और पाकिस्तान के बड़े शहरों जैसे दिल्ली और लाहौर में तो सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है. लोग मास्क पहनते हैं. स्कूल बंद हो जाते हैं. अस्पतालों में सांस की बीमारियों से परेशान लोगों की संख्या बढ़ जाती हैं. लेकिन पड़ोसी देश अफगानिस्तान में यह समस्या कम क्यों दिखती है? क्या वहां हवा साफ रहती है?  

प्रदूषण क्या है और क्यों होता है?

सबसे पहले, AQI समझ लें. AQI हवा की गुणवत्ता मापने का एक नंबर है. 0 से 50 तक अच्छा, 51-100 तक मध्यम, 101-150 तक संवेदनशील लोगों के लिए खराब, 151-200 तक अस्वास्थ्यकर, 201-300 तक बहुत अस्वास्थ्यकर और 300 से ऊपर खतरनाक.

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प्रदूषण के मुख्य कारण हैं: गाड़ियों का धुआं, फैक्टरियों का कचरा, फसल जलाना और मौसम की वजह से हवा का फंसना.

Afghanistan pollution

भारत और पाकिस्तान में यह समस्या ज्यादा क्यों? क्योंकि यहां आबादी बहुत ज्यादा है. भारत में 140 करोड़, पाकिस्तान में 24 करोड़. बड़े-बड़े शहर हैं. तेजी से विकास हो रहा है. लेकिन अफगानिस्तान (आबादी करीब 4 करोड़) में ये चीजें कम हैं. 

आबादी और शहर: भारत और पाकिस्तान में प्रदूषण ज्यादा होने के मुख्य कारणों में आबादी और शहरों की ज्यादा डेनसिटी शामिल है, जहां दिल्ली जैसे 3 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले मेगा-सिटी और लाहौर जैसे 1.3 करोड़ के शहरों में गाड़ियों की भारी संख्या और लगातार निर्माण कार्य से धूल-धुआं फैलता रहता है. 

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अफगानिस्तान में आबादी कम होने से ज्यादातर इलाके गांवों पर आधारित हैं, काबुल जैसे 40 लाख आबादी वाले सबसे बड़े शहर में भी ट्रैफिक बहुत कम है, जिससे प्रदूषण नियंत्रित रहता है.

उद्योग और फैक्टरियां: भारत-पाकिस्तान में कपड़ा मिलें, ईंट भट्टे और रसायन कारखाने धुएं का बड़ा स्रोत हैं, लेकिन अफगानिस्तान में उद्योग सीमित हैं. यहां ज्यादातर खेती और पशुपालन होता है. खनन भी छोटे स्तर पर है जो प्रदूषण को कम रखता है.

Afghanistan pollution

फसल जलाना: भारत-पाकिस्तान में गंभीर समस्या है, खासकर पंजाब क्षेत्र में अक्टूबर-नवंबर के दौरान पराली (फसल अवशेष) जलाने से धुंध पूरे इलाके में फैल जाती है. अफगानिस्तान की खेती में कम मशीनी का इस्तेमाल होता है, इसलिए जलाना होता भी है तो छोटे स्तर पर सीमित रहता है.

मौसम और भूभाग: गंगा के मैदानी इलाकों में हवा का फंसना (इनवर्शन प्रभाव) सर्दियों में धुंध को लंबे समय तक बांधे रखता है. अफगानिस्तान का पहाड़ी इलाका हवा को आसानी से बहने देता है, हालांकि काबुल की घाटी में थोड़ा प्रदूषण फंसता है.

अन्य कारण: भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पार प्रदूषण का आदान-प्रदान प्रमुख है, जो एक-दूसरे को प्रभावित करता है. अफगानिस्तान में धूल भरी आंधियां और सर्दियों में लकड़ी या गोबर जलाने की प्रथा है, फिर भी कुल मिलाकर ये कारक प्रदूषण को कम रखते हैं.

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Afghanistan pollution

ये कारण बताते हैं कि भारत-पाकिस्तान में प्रदूषण सालाना 50-70% ज्यादा होता है. अफगानिस्तान में औसत PM2.5 (बारीक कण) 50-60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहता है, जबकि दिल्ली में 100-300 तक पहुंच जाता है. लेकिन अफगानिस्तान भी पूरी तरह साफ नहीं— वहां गरीबी की वजह से लोग कोयला या गोबर जलाते हैं, जो सर्दियों में समस्या बढ़ाता है.

प्रदूषण से नुकसान और समाधान

प्रदूषण से फेफड़े खराब होते हैं. बच्चे और बूढ़े बीमार पड़ते हैं. भारत-पाकिस्तान में हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं. अफगानिस्तान में भी यही समस्या है लेकिन कम है. 

अच्छी बात: तीनों देश मिलकर काम कर सकते हैं. जैसे, पराली न जलाएं, इलेक्ट्रिक गाड़ियां बढ़ाएं और पेड़ लगाएं. अफगानिस्तान सीख सकता है भारत के ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान से. 

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