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'पर्यावरण की अनदेखी नहीं', अरावली विवाद पर भूपेंद्र यादव की सफाई

केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने अरावली पर सुप्रीम कोर्ट फैसले पर सफाई देते हुए कहा कि अफवाहें गलत हैं. 100 मीटर ऊंचाई वाली पहाड़ियां और ढलान संरक्षित रहेंगी. NCR में खनन पूरी तरह बंद है. सिर्फ 0.19% क्षेत्र में सीमित खनन संभव है. अरावली में 20 अभयारण्य और 4 टाइगर रिजर्व सुरक्षित है. सरकार ग्रीन अरावली के लिए प्रतिबद्ध है.

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अरावली रेंज को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सफाई देते हुए. (Photo: Getty/Arun Kumar-India Today)
अरावली रेंज को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सफाई देते हुए. (Photo: Getty/Arun Kumar-India Today)

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने अरावली पर्वत श्रृंखला पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को लेकर फैली अफवाहों और गलत सूचनाओं का खंडन किया है. मंत्री ने कहा कि अरावली हमारे देश की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला है.

प्रधानमंत्री की अगुवाई वाली सरकार हमेशा से हरी-भरी अरावली को बढ़ावा देती रही है. कुछ लोग कोर्ट के फैसले पर जानबूझकर गलत सूचना फैला रहे हैं, लेकिन मैंने फैसले को गंभीरता से पढ़ा है. स्पष्ट करना चाहता हूं कि कोई छूट नहीं दी गई है.

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कोर्ट का फैसला वैज्ञानिक संरक्षण पर आधारित

भूपेंद्र यादव ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में अरावली के संरक्षण के लिए वैज्ञानिक मूल्यांकन के आधार पर फैसला दिया है. यह पहली बार है जब सरकार के हरित आंदोलन को मान्यता मिली है. कोर्ट ने खनन के सीमित उद्देश्य के लिए एक तकनीकी समिति बनाई है.

Aravalli Supreme Court Decision

100 मीटर नियम और संरक्षित क्षेत्र

100 मीटर का मुद्दा "ऊपर से नीचे" तक है, यानी आसपास की जमीन से 100 मीटर या ज्यादा ऊंची भू-आकृति ही अरावली पहाड़ी मानी जाएगी. इसके आधार से लेकर पूरी ढलान तक का क्षेत्र संरक्षित होगा. अगर दो पहाड़ियां 500 मीटर के दायरे में हैं, तो बीच का क्षेत्र भी अरावली रेंज का हिस्सा होगा. एनसीआर क्षेत्र में कोई खनन अनुमति नहीं है. फैसले के पैरा 38 में साफ कहा गया है कि जरूरी जरूरतों को छोड़कर कोई नया खनन पट्टा नहीं दिया जाएगा.

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वन्यजीव संरक्षण और न्यूनतम खनन

अरावली में 20 वन्यजीव अभयारण्य और 4 टाइगर रिजर्व हैं, जो पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे. कुल अरावली क्षेत्र लगभग 1.44 लाख वर्ग किलोमीटर है, जिसमें सिर्फ 0.19 प्रतिशत क्षेत्र में ही खनन की संभावना हो सकती है. 90 प्रतिशत से ज्यादा क्षेत्र संरक्षित जोन में आएगा.

अफवाहों का खंडन

मंत्री ने कहा कि फैसले में सभी गलत आरोपों और अफवाहों को स्पष्ट कर दिया गया है. अवैध खनन ही अरावली के लिए सबसे बड़ा खतरा है. अब निगरानी और मजबूत होगी. सरकार ग्रीन अरावली के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. 20 नवंबर 2025 के फैसले से चारों राज्यों में एकसमान नियम लागू हुए हैं, जो पहले दुरुपयोग का कारण बन रहे थे.

पहले ये बात कही थी

सुप्रीम कोर्ट ने अरावली क्षेत्र में अवैध खनन से जुड़े लंबे समय से लंबित मामलों की सुनवाई के दौरान मई 2024 में एक समिति का गठन किया था, ताकि एक समान परिभाषा की सिफारिश की जा सके. दरअसल, खनन की अनुमति देते समय अलग-अलग राज्य अलग-अलग मानदंडों का पालन कर रहे थे.

यह समिति पर्यावरण मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में गठित की गई थी, जिसमें राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली के प्रतिनिधियों के साथ तकनीकी संस्थानों के सदस्य शामिल थे. समिति ने पाया कि केवल राजस्थान में अरावली की एक औपचारिक परिभाषा पहले से मौजूद है, जिसे वह वर्ष 2006 से लागू कर रहा है.

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इस परिभाषा के अनुसार, स्थानीय भू-आकृति से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई तक उठे भू-आकारों को पहाड़ी माना जाता है और ऐसी पहाड़ियों को घेरने वाले bounding contour के भीतर आने वाले पूरे क्षेत्र में खनन पर रोक होती है, भले ही उस घेरे के भीतर मौजूद भू-आकारों की ऊंचाई या ढलान कुछ भी हो.

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