अरावली पर्वतमाला (Aravali Hills) भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक मानी जाती है. इसका निर्माण आज से लगभग 150 करोड़ वर्ष पहले हुआ था, जो इसे हिमालय से भी कहीं अधिक पुराना बनाता है. अरावली पर्वतमाला उत्तर-पश्चिम भारत में फैली हुई है और इसकी लंबाई लगभग 670 किलोमीटर है. यह गुजरात के पालनपुर से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली होते हुए समाप्त होती है.
अरावली का भौगोलिक और पर्यावरणीय महत्व अत्यंत बड़ा है. यह पर्वतमाला थार मरुस्थल को पूर्वी भारत की उपजाऊ भूमि में फैलने से रोकने में एक प्राकृतिक दीवार का कार्य करती है. साथ ही, यह क्षेत्र मानसून के प्रभाव को संतुलित करने और भूजल स्तर बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. अरावली के जंगल वर्षा जल को संचित करने में सहायक होते हैं, जिससे आसपास के इलाकों में पानी की उपलब्धता बनी रहती है.
अरावली क्षेत्र जैव विविधता से भरपूर है. यहां कई प्रकार के पेड़-पौधे, औषधीय वनस्पतियां और वन्य जीव पाए जाते हैं. तेंदुआ, सियार, नीलगाय, लोमड़ी और अनेक पक्षी प्रजातियां अरावली की पहचान हैं. इसके अलावा यह पर्वतमाला खनिज संपदा के लिए भी जानी जाती रही है, हालांकि अत्यधिक खनन ने इसके अस्तित्व पर संकट पैदा किया है.
आज अरावली पर्वतमाला पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रही है. अवैध खनन, अतिक्रमण, जंगलों की कटाई और शहरीकरण के कारण इसका प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अरावली का संरक्षण नहीं किया गया, तो इसका सीधा असर जलवायु, भूजल और मानव जीवन पर पड़ेगा.
अरावली केवल पहाड़ों की श्रृंखला नहीं, बल्कि भारत की पारिस्थितिकी का एक मजबूत आधार है. इसका संरक्षण आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ पर्यावरण और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए बेहद आवश्यक है.
अरावली बचाओ आंदोलन अब और तेज हो गया है. आज जयपुर में कांग्रेस ने बड़ा प्रदर्शन किया जबकि उदयपुर में भी इस आंदोलन को लेकर खास तौर पर प्रदर्शन देखने को मिला है, सोशल मीडिया पर चल रहे अरावली संरक्षण अभियान अब सड़कों पर भी जोर पकड़ रहा है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस मामले में सफाई देते हुए कहा कि अरावली को लेकर भ्रम फैलایا जा रहा है और पर्वत माला की सुरक्षा करना हमारा दायित्व है.
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा मंजूर की है. आसपास की जमीन से 100 मीटर ऊंची पहाड़ी ही अरावली मानी जाएगी. यह फॉर्मूला राजस्थान में 2003 से लागू है, जो अमेरिकी विशेषज्ञ रिचर्ड मर्फी के सिद्धांत पर आधारित है. पर्यावरणविदों का डर है कि इससे छोटी पहाड़ियां संरक्षण से बाहर हो जाएंगी और खनन बढ़ेगा. #SaveAravalli मुहिम तेज हो गई है.
अरावली पर्वतमाला के संरक्षण के लिए आंदोलन में तेजी आई है. जयपुर में कांग्रेस ने बड़ा प्रदर्शन किया. सोशल मीडिया पर सेव अरावली आंदोलन चल रहा है और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस विषय पर सफाई दी है. उन्होंने स्पष्ट किया कि 'अरावली को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है और पर्वतमाला की सुरक्षा करना हमारा दायित्व है.'
टीकाराम जूली का कहना है कि अरावली राजस्थान की जीवनधारा है जो रेगिस्तान को रोकने का काम करती है और वर्षा के पानी को जमीन के अंदर रिचार्ज करती है. यह लू से बचाव भी करती है और वैज्ञानिकों ने माना है कि बिना अरावली के दिल्ली समेत कई इलाके रेगिस्तान बन सकते थे. लेकिन केंद्र सरकार ने कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को माइन्स के लिए खोलने की सिफारिश की है जो उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए हो रही है.
अरावली पर एक युवक का कहना है कि हवा में लगातार बढ़ते प्रदूषण के बीच हम खुद ही उसे जहर बनाते रहे और दोष मौसम पर ड़ालते रहे. अरावली पहाड़ियों की रक्षा की जरूरत है क्योंकि उनकी कटाई से वातावरण पर बुरा असर पड़ता है. सरकार ऊंची इमारतों और संरचनाओं पर नियंत्रण लगाने की बात करती है, लेकिन अभी तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.
जयपुर में अरावली पहाड़ियों के संरक्षण के लिए रविवार को बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ. सैकड़ों लोग शहर के विभिन्न इलाकों में सरकार से अरावली सुरक्षा की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि अरावली की उपेक्षा से पर्यावरण संतुलन प्रभावित हो रहा है जो स्थानीय जीवन के लिए खतरा बन गया है.
राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली पर लिए गए पैसले को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होनें इस फैसले को बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण बताया साथ ही कहा कि अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं बल्कि जीवन रेखा है, जो राजस्थान सहित कई राज्यों के पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है. इस फैसले से प्रदूषण बढ़ेगा और आने वाली पीढ़ी प्रभावित होगी.
Aravali Hills Issue Explain: अरावली की पहाड़ियों को लेकर सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हो रही है. बताया जा रहा है कि अरावली का अस्तित्व संकट में है. ऐसे में जानते हैं कि आखिर अरावली का मामला क्या है...
अरावली भूजल को रिचार्ज करती है, जंगलों और वन्यजीवों को आश्रय देती है और करोड़ों लोगों को सांस लेने लायक हवा उपलब्ध कराती है. आज यही अरावली एक बार फिर सियासत, कानून और पर्यावरण के टकराव का केंद्र बन गई है. सोशल मीडिया से लेकर सड़कों पर हंगामा मचा हुआ है.
केंद्र सरकार के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने समिति की उस सिफारिश को स्वीकार किया है, जिसके तहत संरक्षित क्षेत्र, इको-सेंसिटिव जोन, टाइगर रिजर्व, आर्द्रभूमि और इनके आसपास के क्षेत्रों में खनन पर पूरी तरह रोक रहेगी. केवल राष्ट्रीय हित में आवश्यक, रणनीतिक और गहराई में स्थित खनिजों के लिए सीमित छूट दी जा सकती .
सोशल मीडिया पर इस समय अरावली का मुद्दा छाया हुआ है. 650 किलोमीटर में फैली अरावली की वही हरी-भरी पहाड़ियां जो दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के कई हिस्सों को थार रेगिस्तान की तपन से बचाती हैं.
अरावली की पहाड़ियों में छिपी कुछ ऐसी जगहें हैं, जहां ठंडी हवा, इतिहास और प्रकृति एक साथ सांस लेते हैं. अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं, बल्कि राजस्थान की पहचान है. आखिर कौन-सी हैं ये जादुई जगहें और क्या है उनकी खास बात
अरावली पर्वतमाला को बचाने के लिए पूरे राजस्थान में आंदोलन तेज हो गया है. जयपुर में कांग्रेस ने बड़ी रैली निकाली और कोटपुतली समेत कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए. पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने माना कि कुछ भ्रम फैलाया जा रहा है, लेकिन कहा कि अरावली की सुरक्षा पूरी तरह से की जा रही है. सौ मीटर की नई परिभाषा के कारण लोगों में चिंता बढ़ी है क्योंकि इससे खनन का रास्ता खुल सकता है. देखें रिपोर्ट.
अरावली पर्वतमाला की सुरक्षा के लिए आंदोलन तेजी से आगे बढ़ रहा है. जयपुर में कांग्रेस ने बड़ा प्रदर्शन किया है और सोशल मीडिया पर भी सेव अरावली आंदोलन सक्रिय है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने अरावली को लेकर फैले भ्रम को स्पष्ट किया है. उन्होंने कहा है कि अरावली संवेदनशील क्षेत्र है और इसमें कोई छूट नहीं दी गई है. अरावली पर्वतमाला भारत के चार राज्यों में फैला हुआ है और यहां माइनिंग पर सख्त नियम लागू हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को अरावली की समान परिभाषा देने को कहा है जो पर्वत की संरचना को पूरी तरह से संरक्षण प्रदान करती है. कुछ लोगों ने सौ मीटर की परिभाषा को गलत समझाया है लेकिन वास्तव में यह सुरक्षा उस पर्वत की पूरी ऊंचाई और नीचे तक फैली हुई है. इस आंदोलन के माध्यम से अरावली पर्वतमाला को बचाने की महती भूमिका निभाई जा रही है.
अरावली पर्वत तब बने थे जब गंगा नहीं थी. हिमालय नहीं था. महाद्वीप जुड़ रहे थे. जीवन की उत्पत्ति की शुरुआत हो रही थी. 250 करोड़ साल पुरानी इन पर्वतमालाओं की हाइट छोटी करने की बात कही जा रही है. ये तो ऐसा ही है जैसे इस दुनिया से छोटी ऊंचाई वाले जीवों को खत्म करने की बात कह दी जाए. जानिए इस फोल्डेड माउंटेन रेंज की कहानी...