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Agni-Prime Missile: भारत की खतरनाक परमाणु मिसाइल का परीक्षण, एक साथ कई टारगेट को बना सकती है निशाना

भारत की नए जेनरेशन की बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि प्राइम का डीआरडीओ ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम आइलैंड पर सफल परीक्षण किया. परीक्षण में सटीकता, रडार सिस्टम, टेलिमेट्री आदि की जांच की गई. सभी मानकों पर मिसाइल खरी उतरी. आइए जानते हैं इस मिसाइल की ताकत, रेंज और स्पीड?

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ये है अग्नि-प्राइम मिसाइल जिसका परीक्षण डीआरडीओ ने किया है. (फाइल फोटोः डीआरडीओ)
ये है अग्नि-प्राइम मिसाइल जिसका परीक्षण डीआरडीओ ने किया है. (फाइल फोटोः डीआरडीओ)

भारत की स्ट्रैटेजिक फोर्सेस कमांड और डीआरडीओ ने मिलकर ओडिशा के डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप पर अग्नि प्राइम (Agni-Prime) बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया है. परीक्षण सात जून 2023 की शाम साढ़े सात बजे किया गया. इससे पहले ही इस इलाके में नो फ्लाई जोन (NOTAM) घोषित कर दिया गया था. 

इसे अग्नि-पी (Agni-P) के नाम से भी बुलाते हैं. आइए जानते हैं कि आखिरकार इस मिसाइल की खासियत क्या है? यह अग्नि सीरीज की नई पीढ़ी की मिसाइल है. जिसकी रेंज एक से दो हजार किलोमीटर है. 34.5 फीट लंबी मिसाइल पर एक या मल्टीपल इंडेपेंडटली टारगेटेबल रीएंट्री व्हीकल (MIRV) वॉरहेड लगा सकते हैं. 

MIRV यानी एक ही मिसाइल से कई टारगेट्स पर हमला किया जा सकता है. यह मिसाइल उच्च तीव्रता वाले विस्फोटक, थर्मोबेरिक या परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है. मिसाइल की नाक पर 1500 से 3000 किलोग्राम वजन के वॉरहेड लगाए जा सकते हैं. यह दो स्टेज के रॉकेट मोटर पर चलने वाली मिसाइल है. 

तीसरा स्टेज यानी दुश्मन की मौत का सामान

तीसरा स्टेज MaRV है यानी मैन्यूवरेबल रीएंट्री व्हीकल. यानी तीसरे स्टेज को दूर से नियंत्रित करके दुश्मन के टारगेट पर सटीक हमला किया जा सकता है. इसे बीईएमएल-टट्रा ट्रांसपोर्टर इरेक्टर लॉन्चर से दागा जाता है. इसे तब बनाया गया जब चीन ने डीएफ-12डी और डीएफ-26बी मिसाइलें बनाईं. इसलिए भारत ने एरिया डिनायल वेपन के तौर पर इस मिसाइल को बनाया. 

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बाकी अग्नि मिसाइलों से हल्की है अग्नि-प्राइम

जानकारी मिली है कि अग्नी-I एक सिंगल स्टेज मिसाइल थी, वहीं अग्नि प्राइम की दो स्टेज होती हैं. अग्नि प्राइम का वजन इसके पिछले वर्जन से हल्का भी है. 4 हजार किलोमीटर की रेंज वाली अग्नि-IV और पांच हजार किलोमीटर की रेंज वाली अग्नि-V से इसका वजन हल्का है. बता दें कि अग्नि-I का 1989 में परीक्षण किया गया था. फिर 2004 से इसे सेना में शामिल किया गया. उसकी रेंज 700-900 किलोमीटर के बीच थी.

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