scorecardresearch
 

शुभांशु शुक्ला को स्पेस में करने हैं 7 भारतीय प्रयोग, मिशन बार-बार टलने से सेफ रहेंगे नमूने?

एक्सिओम-4 मिशन और शुभांशु शुक्ला के 7 भारतीय प्रयोग भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक बड़ा कदम हैं. हालांकि, सात बार टलने से जैविक नमूनों की सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं. इसरो और नासा इन नमूनों को सुरक्षित रखने और मिशन की सफलता सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं.

Advertisement
X
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर शुभांशु शुक्ला सात भारतीय प्रयोग करने वाले थे. (फाइल फोटोः Axiom Space)
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर शुभांशु शुक्ला सात भारतीय प्रयोग करने वाले थे. (फाइल फोटोः Axiom Space)

भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को एक्सिओम-4 (Ax-4) मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर भेजा जाना था, जहां वे 7 भारतीय वैज्ञानिक प्रयोग करने वाले थे. यह मिशन भारत के लिए ऐतिहासिक है, क्योंकि यह 1984 में राकेश शर्मा के बाद दूसरा मौका है, जब कोई भारतीय अंतरिक्ष में जाएगा.

हालांकि, यह मिशन सात बार टल चुका है. अब नई लॉन्च तारीख 25 जून है. बार-बार टलने की वजह से सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारतीय प्रयोग, खासकर जैविक नमूने, सुरक्षित रह पाएंगे? 

एक्सिओम-4 मिशन: शुभांशु शुक्ला की भूमिका

एक्सिओम-4 एक निजी अंतरिक्ष मिशन है, जिसे नासा, एक्सिओम स्पेस और स्पेसएक्स मिलकर कर रहे हैं. इस मिशन में चार अंतरिक्ष यात्री शामिल हैं...

यह भी पढ़ें: तारीख पर तारीख... शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष स्टेशन तक यात्रा फिर NASA ने टाल दी, जानिए क्यों?

  • कमांडर: पेगी व्हिटसन (पूर्व नासा अंतरिक्ष यात्री, अमेरिका)
  • पायलट: शुभांशु शुक्ला (भारतीय वायुसेना पायलट, इसरो)
  • मिशन विशेषज्ञ: स्लावोश उज्नांस्की-विश्निव्स्की (पोलैंड) और टिबोर कपु (हंगरी)

यह मिशन 14 दिनों का है, जिसमें 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग किए जाएंगे, जिनमें 7 प्रयोग भारत के हैं. शुभांशु शुक्ला भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री होंगे, जो ISS पर पहुंचेंगे. भारत ने इस मिशन के लिए 550 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जो भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षा को दर्शाता है.

Advertisement

7 भारतीय प्रयोग: क्या हैं ये?

शुभांशु शुक्ला ISS पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अन्य भारतीय संस्थानों द्वारा डिज़ाइन किए गए सात प्रयोग करेंगे. ये प्रयोग माइक्रोग्रैविटी (कम गुरुत्वाकर्षण) में जैविक, कृषि और मानव अनुकूलन से जुड़े हैं. ये प्रयोग भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों और पृथ्वी पर अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण हैं. 

यह भी पढ़ें: अब कल शुभांशु शुक्ला को लेकर अंतरिक्ष स्टेशन मिशन पर जाएगा ड्रैगन कैप्सूल, NASA ने घोषित की नई तारीख

मांसपेशियों की हानि का अध्ययन (इंस्टीट्यूट ऑफ स्टेम सेल साइंस एंड रीजेनरेटिव मेडिसिन)

Shubhanshu Shukla Indian Experiment

अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी के कारण अंतरिक्ष यात्रियों की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं. यह प्रयोग मांसपेशियों के नुकसान के कारणों और उपचार की रणनीतियों को समझने के लिए है. इसका उपयोग मंगल मिशनों और पृथ्वी पर मांसपेशी रोगों के इलाज में हो सकता है.

फसलों का विकास (केरल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी)

Shubhanshu Shukla Indian Experiment

छह प्रकार के फसलों के बीज अंतरिक्ष में ले जाए जाएंगे, ताकि उनके विकास और जीन में बदलाव का अध्ययन किया जा सके. यह भविष्य में अंतरिक्ष में खेती के लिए उपयोगी होगा.

बीज अंकुरण (यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, धारवाड़ और IIT धारवाड़)

Shubhanshu Shukla Indian Experiment

यह प्रयोग बीजों के अंकुरण और पोषण में बदलाव का अध्ययन करेगा. अंतरिक्ष से लौटने के बाद इन बीजों को कई पीढ़ियों तक उगाकर जीन और पोषण का विश्लेषण किया जाएगा. 

Advertisement

माइक्रो-जंतुओं की सहनशक्ति (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस)

Shubhanshu Shukla Indian Experiment

टार्डिग्रेड्स (वॉटर बियर्स) नामक छोटे जीवों का अध्ययन होगा, जो अत्यधिक तापमान, विकिरण और अंतरिक्ष के वैक्यूम में जीवित रह सकते हैं. यह प्रयोग अंतरिक्ष में जीवों की सहनशक्ति को समझने में मदद करेगा. 

स्क्रीन का संज्ञानात्मक प्रभाव (इसरो)

Shubhanshu Shukla Indian Experiment

यह अध्ययन अंतरिक्ष में कंप्यूटर स्क्रीन के उपयोग से आंखों की गति, फोकस और मानसिक तनाव पर प्रभाव को देखेगा. यह गहरे अंतरिक्ष मिशनों में अंतरिक्ष यात्रियों की मानसिक स्वास्थ्य और प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद करेगा.

माइक्रोएल्गी का विकास (इसरो)

Shubhanshu Shukla Indian Experiment

तीन प्रकार के माइक्रोएल्गी का अध्ययन होगा, जो भोजन, ईंधन और जीवन समर्थन प्रणालियों के लिए उपयोगी हो सकते हैं. यह प्रयोग अंतरिक्ष में आत्मनिर्भरता के लिए महत्वपूर्ण है.

साइनोबैक्टीरिया का अध्ययन (इसरो)

Shubhanshu Shukla Indian Experiment

दो प्रकार के साइनोबैक्टीरिया के सेलुलर और बायोकेमिकल व्यवहार का माइक्रोग्रैविटी में अध्ययन होगा. यह भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों में ऑक्सीजन और भोजन उत्पादन के लिए उपयोगी हो सकता है.

मिशन के बार-बार टलने की वजह

एक्सिओम-4 मिशन की लॉन्चिंग कई बार टल चुकी है. यह मिशन शुरू में 29 मई 2025 को तय था, लेकिन तकनीकी और सुरक्षा कारणों से इसे सात बार स्थगित किया गया.

  • 29 मई से 8 जून: स्पेसएक्स ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट के इलेक्ट्रिकल हार्नेस में खराबी के कारण पहली बार टाला गया.
  • 8 जून से 10 जून: स्पेसएक्स फाल्कन-9 रॉकेट में लिक्विड ऑक्सीजन (LOX) रिसाव की वजह से देरी हुई.
  • 10 जून से 11 जून: खराब मौसम के कारण लॉन्च टाला गया. इसरो ने बताया कि लॉन्च 11 जून को 5:30 PM IST पर होना था.
  • 11 जून से अनिश्चित: फाल्कन-9 रॉकेट के बूस्टर में फिर से LOX रिसाव पाया गया. इसरो ने इसे ठीक करने और टेस्ट करने की सलाह दी.
  • 19 जून से 22 जून: ISS के ज़्वेज़्दा सर्विस मॉड्यूल (रूसी हिस्सा) में हाल की मरम्मत के बाद नासा को सुरक्षा जांच के लिए और समय चाहिए था.
  • 22 जून से अनिश्चित: नासा ने फिर से मरम्मत के डेटा की समीक्षा के लिए लॉन्च टाल दिया.
  • 25 जून (संभावित): 25 जून को लॉन्च हो सकता है, लेकिन नासा ने अभी पुष्टि नहीं की. नासा ने कहा कि ISS के जटिल और परस्पर जुड़े सिस्टम के कारण, नासा यह सुनिश्चित करना चाहता है कि स्टेशन नए क्रू मेंबर्स के लिए तैयार हो. 

यह भी पढ़ें: जिस ड्रैगन कैप्सूल से सुनीता विलियम्स की हुई थी धरती पर वापसी, उसी से शुभांशु जाएंगे स्पेस स्टेशन...

Advertisement

प्रयोगों की सुरक्षा: क्या खतरा है?

बार-बार टलने से जैविक नमूने (जैसे बीज, माइक्रोएल्गी, टार्डिग्रेड्स) के खराब होने का खतरा है. ये नमूने माइक्रोग्रैविटी में प्रयोग के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए हैं. देरी से उनकी गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है.

जैविक नमूनों का खराब होना: केरल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के बीज और माइक्रोएल्गी जैसे नमूने समय के साथ अपनी व्यवहार्यता खो सकते हैं. इसरो इन नमूनों को ताज़ा करने की कोशिश कर रहा है. टार्डिग्रेड्स भले ही कठोर परिस्थितियों में जीवित रह सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक पृथ्वी पर रखने से उनके प्रयोग के परिणाम प्रभावित हो सकते हैं. 

प्रयोग की सटीकता: देरी से नमूनों की जैविक स्थिति बदल सकती है, जिससे माइक्रोग्रैविटी में प्राप्त परिणामों की विश्वसनीयता कम हो सकती है.

लॉजिस्टिक्स चुनौती: नमूनों को ताज़ा करने और दोबारा तैयार करने में समय और संसाधन लगते हैं, जिससे मिशन की लागत बढ़ सकती है. 

यह भी पढ़ें: SPACE X- AX4 MISSION: अंतरिक्ष में शुभांशु शुक्ला रचेंगे इतिहास, भारत को होगा ये फायदा, देखें

सुरक्षा के उपाय

इसरो की तत्परता: इसरो जैविक नमूनों को ताज़ा करने के लिए तेजी से काम कर रहा है. इसरो ने पहले ही नमूनों को विशेष रूप से संरक्षित किया है, ताकि वे लंबे समय तक सुरक्षित रहें.

Advertisement

नासा और स्पेसएक्स की सावधानी: नासा और स्पेसएक्स ISS और फाल्कन-9 रॉकेट की पूरी तरह जांच कर रहे हैं, ताकि मिशन सुरक्षित हो. LOX रिसाव और ज़्वेज़्दा मॉड्यूल की मरम्मत को ठीक करने के लिए अतिरिक्त टेस्ट किए जा रहे हैं. 

क्रू की सुरक्षा: चारों अंतरिक्ष यात्री फ्लोरिडा में क्वारंटाइन में हैं, जहां उनकी स्वास्थ्य और सुरक्षा की निगरानी हो रही है. एक्सिओम स्पेस ने कहा कि क्रू स्वस्थ और उत्साहित है. 

लॉन्च विंडो: जून 2025 के अंत तक लॉन्च विंडो उपलब्ध है. अगर यह मिस हो गया, तो अगला मौका जुलाई के मध्य में होगा.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement