वंदे मातरम् पर संसद में बहस चल रही है. आप चाहें तो चर्चा को संयोग से भी जोड़ सकते हैं, और प्रयोग से भी. संयोग ये है कि पिछले ही महीने (7 नवंबर को) वंदे मातरम् की रचना के 150 साल पूरे हुए हैं, और आने वाले बंगाल विधानसभा चुनाव को देखते हुए वंदे मातरम् पर चर्चा को प्रयोग भी मान सकते हैं.
विधानसभा चुनाव से वंदे मातरम् को रचनाकर्म के बंगाल कनेक्शन से जोड़कर देख सकते हैं. वंदे मातरम् के रचयिता बंकिंम चंद्र चटर्जी बंगाल के ही रहने वाले थे, और ये रचना भी तात्कालिक परिस्थितियों में राजनीतिक महत्व रखती है. दिलचस्प बात ये है कि ममता बनर्जी भी चर्चा का विरोध की जगह समर्थन कर रही हैं.
लोकसभा में चर्चा की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंदे मातरम् पर भी कांग्रेस को ठीक वैसे ही घेरा जैसे इमरजेंसी पर कठघरे में खड़ा करते रहे हैं. कांग्रेस की तरफ से मोदी को जवाब भी दिया गया है, और राहुल गांधी के गठबंधन साथी होने के कारण अखिलेश यादव ने भी पलटवार किया है.
लेकिन, ममता बनर्जी का कहना है कि उनको संसद में हो रही चर्चा से कोई दिक्कत नहीं है. ममता बनर्जी की बातों से तो ऐसा लगता है, जैसे वो प्रधानमंत्री मोदी की पहल का स्वागत कर रही हों. क्या इसलिए, क्योंकि मोदी ने वंदे मातरम् की चर्चा के बहाने कांग्रेस पर फिर से हमला बोला है.
उत्तर बंगाल के दौरे पर निकलने से पहले ममता बनर्जी कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर मीडिया से बात कर रही थीं. जब संसद में मोदी के वंदे मातरम् पर चर्चा की शुरुआत करने की बात चली, तो बोलीं, 'वो ये सब करें... हमें कोई दिक्कत नहीं है.'
ये ठीक है कि पश्चिम बंगाल के साथ साथ असम, केरल और तमिलनाडु में भी अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के निशाने पर अभी कांग्रेस की आई है, जबकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने तो जैसे कांग्रेस की एंट्री पर भी पाबंदी लगा रखी है.
ऐसे में जबकि पश्चिम बंगाल में चुनाव होने जा रहे हैं, और वहां सत्ता पर हर सूरत में काबिज होना बीजेपी की सबसे बड़ी प्राथमिकता है, वंदे मातरम् पर प्रधानमंत्री मोदी से ममता बनर्जी को कोई दिक्कत नहीं है, तो कांग्रेस और अखिलेश यादव को दिक्कत क्यों है?
मोदी ने 'कांग्रेस' नाम लेकर किस किस को घेरा?
लोकसभा में वंदे मातरम् पर चर्चा की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, भारत पर जब-जब संकट आए देश वंदे मातरम् की भावना के साथ आगे बढ़ता रहा... जब देश की आजादी को कुचलने की कोशिश हुई, संविधान की पीठ पर छूरा घोंप दिया गया, आपातकाल थोपा गया तो यही वंदे मातरम् की ताकत थी कि देश खड़ा हुआ... देश पर जब भी युद्ध थोपे गए, संघर्ष की नौबत आई यही वंदे मातरम् का भाव था कि देश का जवान सीमाओं पर अड़ गया और मां भारती का झंडा फहराता रहा, विजय प्राप्त करता रहा.
वंदे मातरम् के बहाने मोदी ने चुनावी राज्य बंगाल का भी जिक्र कर दिया, अंग्रेजों से लेकर पाकिस्तान तक चर्चा में शामिल हो गए - और इमरजेंसी का नाम लेकर कांग्रेस पर भी सीधा हमला बोल दिया.
कांग्रेस पर सीधा इल्जाम लगाते और प्रहार करते हुए मोदी ने कहा, 'कांग्रेस ने वंदे मातरम् के टुकड़े किए.'
बोले, तुष्टीकरण की राजनीति के दबाव में कांग्रेस वंदे मातरम के बंटवारे के लिए झुकी. कांग्रेस को एक दिन भारत के बंटवारे के लिए भी झुकना पड़ा, कांग्रेस ने आउटसोर्स कर लिया है... दुर्भाग्य से कांग्रेस की नीतियां वैसी की वैसी ही है. INC चलते-चलते MNC हो गया.
मोदी कहते हैं, जिन-जिन के साथ कांग्रेस (शब्द) जुड़ा है, वे वंदे मातरम पर विवाद कड़ा करते हैं... जब कसौटी का काल आता है, तभी यह सिद्ध होता है कि हम कितने दृढ़ है, कितने सशक्त हैं.
तो क्या मोदी कांग्रेस के साथ साथ तृणमूल कांग्रेस को भी टार्गेट किया है? कांग्रेस नाम तो ममता बनर्जी की पार्टी में भी जुड़ा है, शरद पवार और अजीत पवार की पार्टी के नाम में भी जुड़ा हुआ है.
अपने भाषण में मोदी ने जिन्ना से लेकर नेहरू तक का भी जिक्र किया, जिसके केंद्र में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् है. मोदी ने कहा, मोहम्मद अली जिन्ना ने लखनऊ से 15 अक्टूबर 1936 को वंदे मातरम् के खिलाफ नारा बुलंद किया... कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखा... बजाय इसके कि नेहरू मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों को करारा जबाब देते, उसकी निंदा करते... उन्होंने वंदे मातरम् की ही पड़ताल शुरू कर दी.
मोदी आगे कहते हैं, नेहरू ने पांच दिन बाद नेताजी को चिट्ठी लिखी... जिन्ना की भावना से सहमति जताते हुए लिखा कि वंदे मातरम् की आनंदमठ वाली पृष्ठभूमि से मुसलमानों को चोट पहुंच सकती है. वे लिखते हैं... ये जो बैकग्राउंड है, इससे मुस्लिम भड़केंगे. कांग्रेस का बयान आया, 26 अक्टूबर को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक होगी... वंदे मातरम् के उपयोग की समीक्षा होगी. प्रस्ताव के खिलाफ लोगों ने देश भर में प्रभात फेरियां निकालीं, लेकिन कांग्रेस ने वंदे मातरम् के टुकड़े कर दिए... इतिहास गवाह है, कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेक दिए.
क्यों लगा, जैसे अखिलेश यादव ही 'विपक्ष के नेता' हों!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण खत्म होने के बाद स्पीकर ने कांग्रेस नेता गौरव गोगोई का नाम लिया. गौरव गोगोई ने प्रधानमंत्री मोदी के भाषण का अपने तरीके से अच्छा जवाब भी दिया, लेकिन उनके बाद जब अखिलेश यादव खड़े हुए, और बोलने लगे तो सुनकर लगा जैसे विपक्ष के नेता की भूमिका भी निभा रहे हों. शब्दों से न सही, तेवर तो बिल्कुल वैसे ही दिखे.
गौरव गोगोई ने कहा, प्रधानमंत्री के भाषण से दो ही बातें समझ आईं... पहला, ऐसा लगा जैसे उनके राजनीतिक पूर्वज ही अंग्रेजों से लड़ रहे थे... और दूसरा, वंदे मातरम् को राजनीतिक रूप से विवादित करना चाहते हैं.'
बोले, आप हर बार नेहरू जी और कांग्रेस पर निशाना साधते हैं, लेकिन जितनी कोशिश कर लें, नेहरू जी पर दाग नहीं लगा पाएंगे.
गौरव गोगोई ने कहा, आप 1937 के कांग्रेस अधिवेशन की बात करते हैं, लेकिन मैं पूछना चाहता हूं, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में आपके राजनीतिक पूर्वज कहां थे? मुस्लिम लीग ने वंदे मातरम का पूर्ण बहिष्कार करने की मांग की थी. हमारे नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद साहब ने कहा था, मुझे वंदे मातरम से कोई आपत्ति नहीं... यही फर्क है हमारे मौलाना आजाद और मुस्लिम लीग में... उस समय हिंदू महासभा ने भी वंदे मातरम की आलोचना की थी.
गौरव गोगोई और अखिलेश यादव के शब्द तो मिलते जुलते थे, लेकिन लहजा बिल्कुल अलग था. गौरव गोगोई संयम बरत रहे थे, लेकिन अखिलेश यादव शुरू से ही तल्ख तेवर अपना चुके थे. और, धीरे धीरे आक्रामक होते गए.
अखिलेश यादव ने कहा, सत्ता पक्ष हर चीज पर कब्जा करना चाहता है... ये लोग हर बात का श्रेय लेने चाहते हैं. जो महापुरुष इनके नहीं हैं, ये उन्हें भी कब्जाने की कोशिश करते हैं. बातों से लगता है कि वंदे मातरम इन्हीं का बनवाया हुआ गीत है.
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कहा, वंदे मातरम सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं है, बल्कि इसका पालन करने के लिए है... जिन्होंने कभी आजादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया, वे वंदे मातरम का महत्व कैसे समझेंगे?
और जब प्रियंका गांधी ने मोर्चा संभाला
कुछ देर बाद कांग्रेस की तरफ से मोर्चा संभाला वायनाड सांसद प्रियंका गांधी ने. प्रियंका गांधी का कहना था कि आज मोदी जी वो प्रधानमंत्री नहीं हैं, जो पहले के प्रधानमंत्री हुआ करते थे. बोलीं, आपका मकसद है, इसी अतीत में मंडराते रहें... जो हो चुका है, जो बीत चुका है... ये सरकार वर्तमान, भविष्य की ओर देखना नहीं चाहती.
मोदी के भाषण पर तंज भरी तारीफ करते हुए प्रियंका गांधी कहती हैं, चर्चा को प्रधानमंत्री ने शुरू किया, भाषण दिया... कहने में कोई झिझक नहीं है कि भाषण अच्छा देते हैं, बस थोड़ा लंबा है... बस एक कमजोरी है उनकी... तथ्यों के मामले में कमजोर हो जाते हैं. मैं तो जनता की प्रतिनिधि हूं, कलाकार नहीं.
और फिर, प्रियंका गांधी ने अपनी तरफ से मोदी के भाषण का फैक्ट चेक किया. उस दौर की क्रोनोलॉजी समझाई. देखा जाए तो गौरव गोगोई और प्रियंका गांधी ने कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री के भाषण का जवाब दिया, लेकिन अयोध्या के सांसद के साथ संसद पहुंचे अखिलेश यादव के भाषण से लगा वो विपक्ष की तरफ से हमला बोल रहे हैं.