“वंदे मातरम्” (Vande Mataram) भारत की राष्ट्रीय भावना का प्रतीक है. यह कविता महान लेखक बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 1870 के दशक में अपनी प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ में लिखी थी. इस कविता के शब्द मातृभूमि के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम व्यक्त करते हैं.
“वंदे मातरम्” का अर्थ है “मां, मैं तुझे नमन करता हूं।” इसमें भारत को एक देवी के रूप में चित्रित किया गया है, जो हरियाली, नदियों और समृद्धि से परिपूर्ण है. यह कविता स्वतंत्रता संग्राम के समय देशभक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी. जन आंदोलनों और सभाओं में इसे गाया जाता था, जिससे लोगों में देशभक्ति की भावना प्रबल हुई.
1905 में बंग-भंग आंदोलन के दौरान यह गीत राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया. बाद में 1950 में भारतीय संविधान ने “वंदे मातरम्” को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया.
“वंदे मातरम्” न केवल एक कविता है, बल्कि भारत की आत्मा, संस्कृति और एकता का अमर प्रतीक है.
वंदे मातरम भारत के इतिहास में आजादी के संघर्ष का प्रतीक है, जिसे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने रचा था और यह देश की आत्मा बन चुका है. लेकिन आज यह गीत राजनीति के केंद्र में है, जब जमियत उलेमाए हिंद के मुखिया मौलाना महमूद मदनी ने इस गीत पर सवाल उठाए. मदनी के बयान ने राजधानी दिल्ली में तीव्र प्रतिक्रिया को जन्म दिया है, वहीं बीजेपी ने इसे भड़काऊ करार दिया.
संसद का शीतकालीन सत्र सोमवार को शुरू हो गया है. ऐसे समय जब महत्वपूर्ण बिलों पर चर्चा होनी चाहिए थी, 'वंदेमातरम' और 'संचार सारथी' का मुद्दा सामने है. जाहिर है कि इन दोनों मुद्दों के शोर-शराबों में कई अहम मुद्दे पीछे छूट जाएंगे.
भारत के राष्ट्र गीत वंदे मातरम के 150 वर्षों के अवसर पर संसद के शीतकालीन सत्र में एक खास चर्चा आयोजित होगी. लोकसभा में यह चर्चा इस सप्ताह गुरुवार या शुक्रवार को हो सकती है. जिसके लिए कुल दस घंटे का समय निर्धारित होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस महत्वपूर्ण बहस में हिस्सा लेंगे.
वंदे मातरम के मुद्दे पर ममता बनर्जी के सपोर्ट की असली वजह पश्चिम बंगाल में अगले साल होने जा रहा विधानसभा चुनाव है. संसद में विशेष चर्चा को भी टीएमसी ने गौरवपूर्ण बताया है - वरना, ममता बनर्जी की राय तो 'जय श्रीराम' के नारे पर रिएक्शन जैसा भी हो सकता था.
वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर लोकसभा में इस हफ्ते विशेष चर्चा होगी. इस चर्चा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भाषण देंगे. यह चर्चा गुरुवार या शुक्रवार को हो सकती है और इसके लिए कुल 10 घंटे का समय निर्धारित किया गया है.
वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर लोकसभा में इस सप्ताह विशेष चर्चा होगी, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बोलेंगे. इसके लिए स्पीकर ओम बिड़ला ने 10 घंटे का समय आवंटित किया है. संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू की अगुवाई में हुई सर्वदलीय बैठक में इस पर सहमति बनी.
मौलाना महमूद मदनी ने भोपाल के कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट से लेकर जिहा द तक और एसआईआर से लेकर वक्फ कानून तक पर तीखी टिप्पणी की. जहां मदनी ने वंदे मातरम पर भी तंज किया, जिसके 150 साल पूरे होने पर देश भर में कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. लेकिन मदनी ने आज जब 'जिंदा कौम' का जिक्र किया तो उन्होंने कहीं ना कहीं ये संदेश दिया कि वंदे मातरम् को स्वीकार नहीं किया जाएगा. देखें शंखनाद.
वंदे मातरम गीत जो स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक है, वर्तमान में राजनीति के केंद्र में है. जमीयत उलेमा हिंद के महमूद मदनी के बयान से विवाद बढ़ा है. बीजेपी ने उनके बयान को भड़काऊ बताया है. संसद सत्र में वंदे मातरम पर चर्चा हो सकती है. राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि इस गीत को लेकर अलग-अलग राय रख रहे हैं कि क्या इसे धार्मिक या राजनीतिक नजरिये से देखा जाना चाहिए. देखें दंगल.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने बाबरी मस्जिद और तलाक जैसे मामलों के फैसलों को लेकर न्यायपालिका पर सरकार के दबाव में काम करने का आरोप लगाया. उन्होंने 1991 के उपासना स्थल अधिनियम के बावजूद हुई कार्रवाइयों पर सवाल उठाए और कहा कि सुप्रीम कोर्ट तभी तक ‘सुप्रीम’ है जब तक वह संविधान की रक्षा करता है.
वंदे मातरम्... ये वो क्रांति उद्घोष है जिसके असर से अंग्रेज कांपे थे. बंकिम चंद्र चटर्जी रचित वंदे मातरम् गीत भारत का राष्ट्रगीत है. इस महामंत्र के 150 वर्ष पूरे हुए हैं. और सोमवार से शुरू हो रहे संसद के शीत सत्र में सरकार इस पर चर्चा कराने की तैयारी कर रही है. लेकिन जब वंदे मातरम् की बात हो रही है, बात राजनीति की भी आ जाती है. क्योंकि कुछ मुस्लिम संगठनों का मजहब के नाम पर वंदे मातरम् पर विरोध जगजाहिर है. तो हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये बयान दिया था 1937 में वंदे मातरम् के टुकड़े कर विभाजन का बीज बोया गया. 1937 में कांग्रेस अधिवेशन में वंदे मातरम् गीत के सिर्फ दो Stanza गाए गए थे, और इतना ही 1950 में राष्ट्रगीत के तौर पर स्वीकार किया गया.
आज वंदे मातरम के प्रकाशन के 150 वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा दावा करते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, 'वंदे मातरम के इस विभाजन ने, देश के विभाजन के बीज भी बो दिए थे.' पीएम मोदी ने कहा कि 1937 में कांग्रेस ने मोहम्मद अली जिन्ना जैसे मुस्लिम नेताओं के विरोध के कारण गीत के उन हिस्सों को हटा दिया, जिनमें मां दुर्गा की स्तुति थी. इस अवसर पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पलटवार करते हुए कहा कि आरएसएस और बीजेपी ने अपनी शाखाओं में कभी वंदे मातरम नहीं गाया.
वंदे मातरम से जुड़ा विवाद मुख्य रूप से पूर्ण गीत के दूसरे भाग से जुड़ा है, जिसमें मां दुर्गा की स्तुति और हिंदू प्रतीकों का उल्लेख था. बीजेपी का आरोप है कि 1937 में नेहरू की अध्यक्षता वाली कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने राष्ट्रीय एकता के लिए केवल पहले दो छंदों को ही राष्ट्रगान के रूप में अपनाया जबकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस पूर्ण गीत के पक्षधर थे.
पीएम नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने पर स्मरणोत्सव की शुरुआत की है. उन्होंने दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि 1937 में वंदे मातरम् के महत्वपूर्ण पदों को इससे अलग कर दिया गया था. इस गीत की आत्मा को इससे अलग कर दिया गया था.
1773 में बंगाल में भयंकर अकाल और अंग्रेजों के अत्याचारों के बीच संन्यासियों ने विद्रोह किया, जो बाद में सशस्त्र संघर्ष में बदल गया. बंकिम चंद्र चटर्जी ने इस आंदोलन को 'आनंदमठ' उपन्यास में जीवंत किया, जिसमें मातृभूमि की भावना और 'वंदे मातरम्' गीत की उत्पत्ति का वर्णन है.
देशभक्ति की भावना और राष्ट्रीय एकता के प्रतीक गीत 'वंदे मातरम' को आज 150 वर्ष पूरे हो गए. इस ऐतिहासिक अवसर पर पुरी (ओडिशा) के मशहूर सैंड आर्टिस्ट मानस कुमार साहू ने एक अनोखे अंदाज में एक वीडियो बनाया. उन्होंने रेत से खूबसूरत सैंड आर्ट तैयार की, जिसमें राष्ट्रगीत के सफर और उसकी भावनात्मक विरासत को जीवंत कर दिया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रगीत के डेढ़ सौ साल के उत्सव की शुरुआत के मौके पर कहा कि 'वंदे मातरम' सिर्फ एक गीत नहीं है, बल्कि देश के संकल्पों को पूरा करने की भावना का प्रतीक है.