उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने एक बार फिर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को यूपी से चुनाव लड़ने की अपील की है. कुछ दिन पहले दिल्ली में हुई एक बैठक में यूपी कांग्रेस के नेताओं ने पार्टी नेतृत्व को सलाह दी थी कि सिर्फ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ही नहीं कांग्रेस के बड़े नेताओं को यूपी से ही चुनाव लड़ना चाहिये. ऐसे बड़े नेताओं में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का भी नाम शुमार था - और ये तब की बात है जब सोनिया गांधी के राज्यसभा जाने का फैसला सबको नहीं बताया गया था. उस मीटिंग में यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय सहित तमाम बड़े नेता शामिल हुए थे.
अब कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश के प्रभारी अविनाश पांडे की अध्यक्षता में लखनऊ में हुई चुनाव समिति की बैठक के बाद अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीटों से गांधी परिवार के सदस्यों को ही लोकसभा चुनाव लड़ने की सिफारिश की गई है.
7 मार्च को लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कांग्रेस के 39 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की गई थी, जिसमें जातीय समीकरणों को जोर देकर प्रचारित किया गया. केरल से खुद भी अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करते हुए कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने तब कहा था, 39 उम्मीदवारों में से 15 सामान्य वर्ग से हैं... और 24 एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग से. बीजेपी पहले ही 195 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी कर चुकी है. लोकसभा चुनावों की तारीख जल्दी ही घोषित किये जाने की संभावना जताई जा रही है.
जहां तक गांधी परिवार की बात है, अभी तक सिर्फ राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने की ही घोषणा की गई है. वो एक ही सीट से इस बार चुनाव लड़ेंगे या किसी दूसरी सीट का भी प्लान है, अभी तक तस्वीर साफ नहीं है.
और प्रियंका गांधी वाड्रा की बात करें तो अब तक ये भी नहीं साफ है कि वो लोक सभा चुनाव लड़ेंगी भी या नहीं. सुनने में तो ये भी आ रहा है कि कांग्रेस के कई सीनियर नेता चुनाव लड़ना ही नहीं चाहते. क्या वास्तव में कांग्रेस के बड़े नेताओं को भी हार का डर सता रहा है? वैसे राज्यसभा चुनावों से पहले प्रियंका गांधी के भी हिमाचल प्रदेश से राज्यसभा भेजे जाने की चर्चा चल रही थी. और बाद में यहां तक कहा गया कि सोनिया गांधी या प्रियंका गांधी अगर हिमाचल प्रदेश से उम्मीदवार होतीं, तो नतीजे अभिषेक मनु सिंघवी के मामले से अलग हो सकते थे.
बीच में एक चर्चा ये भी रही कि अमेठी और रायबरेली से गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ेगा. मुश्किल ये है कि अगर गांधी परिवार अमेठी और रायबरेली से दूरी बनाता है, तो कांग्रेस पूरे उत्तर भारत से कट जाएगी - और दक्षिण भारत में भी कांग्रेस का उतना प्रभाव नहीं है कि वो उत्तर भारत के सपोर्ट की भरपाई कर सके.
मौजूदा राजनीतिक हालात में कांग्रेस के सामने बड़े ही सीमित विकल्प हैं. और ये बात कांग्रेस को फिर से खड़ा करने के लिए ही नहीं, कांग्रेस का अस्तित्व बचाये रखने के लिए भी है, और कांग्रेस में गांधी परिवार का दबदबा बनाये रखने के हिसाब से भी - ऐसे में ये पांच संभावनाएं बन रही हैं, जिन्हें चाहे तो गांधी परिवार अपना सकता है.
1. दक्षिण भारत से राहुल, उत्तर भारत से प्रियंका गांधी चुनाव लड़ें
राहुल गांधी को वायनाड से कांग्रेस उम्मीदवार घोषित कर दिये जाने के बाद, गांधी परिवार चाहे तो प्रियंका गांधी वाड्रा को उत्तर भारत में खड़ा करने का प्रयास कर सकता है. राहुल गांधी को वैसे भी दक्षिण भारत की राजनीति ज्यादा सूट करती है - और वो तो खुलेआम ये भी जाहिर कर चुके हैं कि उत्तर भारत के लोगों के मुकाबले दक्षिण भारत के लोगों की राजनीतिक समझ बेहतर है.
प्रियंका गांधी वैसी भी शुरू से ही यूपी की राजनीति में सक्रिय रही हैं. पहले उनका दायरा अमेठी और रायबरेली तक सीमित हुआ करता था, 2019 में जब कांग्रेस महासचिव बनाई गईं तो उनको पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था, और बाद की विशेष परिस्थितियों में वो पूरे यूपी की प्रभारी बन गई थीं.
2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी प्रियंका गांधी ने कांग्रेस का नेतृत्व किया था. बल्कि, कांग्रेस नेतृत्व भी उनके मामलों में दखल नहीं दे रहा था. प्रियंका गांधी ने कई प्रयोग भी किये लेकिन कामयाबी नहीं मिली - अगर वो खुद चुनाव मैदान में उतरती हैं तो पुराने अनुभव का उनको फायदा मिल सकता है.
2. राहुल गांधी अमेठी, प्रियंका गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ें
एक कंडीशन ये हो सकती है कि राहुल गांधी वायनाड के साथ साथ इस बार भी अमेठी से भी चुनाव लड़ें, और सोनिया गांधी के राज्यसभा चले जाने के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा इस बार रायबरेली से चुनाव लड़ने मैदान में उतरें.
अमेठी का नतीजा क्या होता है, उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण ये होगा कि राहुल गांधी पर मैदान छोड़ कर भाग जाने जैसी तोहमत नहीं लगेगी. अगर अमेठी के लोग फिर से राहुल गांधी को हाथों-हाथ लिये तो नतीजा अलग भी हो सकता है.
3. राहुल गांधी रायबरेली, प्रियंका गांधी अमेठी से चुनाव लड़ें
कहने की जरूरत नहीं गांधी परिवार के वारिस तो राहुल गांधी ही हैं. अमेठी की विरासत सोनिया गांधी ने राहुल गांधी के लिए ही छोड़ी थी, और अब जबकि रायबरेली भी खाली है, राहुल गांधी अगर सोनिया गांधी की विरासत संभालना चाहते हैं, तो पूरा स्कोप है.
हो सकता है अमेठी की हार से राहुल गांधी के मनोबल में थोड़ी कमी आई हो, लेकिन रायबरेली में तो ऐसी कोई बात है नहीं. वहां पूरा फ्रेश माहौल मिलेगा. और ऐसा भी नहीं है कि रायबरेली में बीजेपी की तरफ से स्मृति ईरानी जैसा कोई मजबूत उम्मीदवार ही आ रहा है.
और वैसे भी स्मृति ईरानी को भी तो अमेठी फतह करने में पूरे पांच साल लगे थे. अगर बीजेपी रायबरेली से ऐसे किसी को उम्मीदवार बनाती है, तो भी जरूरी नहीं कि पहले प्रयास में ही वो बाजी मार ले.
4. प्रियंका गांधी भी दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ें
किन्हीं राजनीतिक वजहों से ही सही, ममता बनर्जी ने तो प्रियंका गांधी को वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की सलाह दे रखी है. और पिछली बार तो ये शिगूफा खुद प्रियंका गांधी ने ही छोड़ा था - और काफी दिनों तक उस पर चर्चा चलती रही.
अगर प्रियंका गांधी भी चाहें तो वो भी राहुल गांधी तरह दो सीटों से चुनाव लड़ सकती हैं, ठीक वैसे ही जैसे पहली बार सोनिया गांधी भी अमेठी के साथ साथ कर्नाटक की बेल्लारी लोकसभा सीट से नामांकन दाखिल किया था. और दोनों जगहों से जीतीं भी.
प्रियंका गांधी अगर अमेठी या रायबरेली से चुनाव लड़ने का मन बनाती हैं, तो उनके पास भी दक्षिण भारत की किसी एक सीट से चुनाव लड़ने का विकल्प तो रहेगा ही. जैसे राहुल गांधी अमेठी के साथ वायनाड से चुनाव लड़े थे, प्रियंका गांधी भी चाहें तो तेलंगाना या कर्नाटक की किसी लोक सभा सीट से बड़े आराम से चुनाव लड़ सकती हैं.
5. प्रियंका गांधी ही अमेठी और रायबरेली दोनों सीटों से चुनाव लड़ें
ये भी तो जरूरी नहीं कि प्रियंका गांधी की दो सीटों में एक उत्तर भारत और एक दक्षिण भारत से ही हो, ऐसा भी तो हो सकता है कि कांग्रेस महासचिव अमेठी और रायबरेली दोनों ही जगहों से चुनाव लड़ जायें.
अगर एक सीट से चुनाव हार भी जाती हैं, तो भी कोई बात नहीं दूसरी सीट की संभावना तो बनी ही रहेगी.
और अगर दोनों सीटों से जीत जाती हैं, तो बाद में कोई और चुनाव लड़ लेगा - और अगर राहुल गांधी सिर्फ वायनाड से ही चुनाव लड़े और अमेठी की तरह सीपीआई की एनी राजा ने वहां भी मामला फंसा दिया तो राहुल गांधी के लिए भी एक सुरक्षित सीट बची रहेगी.