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फिलिस्‍तीनी राष्‍ट्रपति के एक बयान ने हमास की हवा निकाल दी, युद्ध में निर्णायक मोड़

भले ही फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के बयान में भूल सुधार करनी पड़ी हो, लेकिन लब्बोलुआब तो यही है कि हमास फिलिस्तीन के लोगों का कुछ नहीं लगता. अब हमास तो अलग थलग पड़ेगा ही, फिलिस्तीन से सहानुभूति रखने वाले अरब मुल्कों को भी राहत मिलेगी - और आखिरकार अमन की राह की तस्वीर भी साफ दिखेगी.

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क्या हमास पर फिलिस्तीन का ताजा रुख भारत के स्टैंड से प्रेरित है?
क्या हमास पर फिलिस्तीन का ताजा रुख भारत के स्टैंड से प्रेरित है?

इजरायल-हमास जंग के बीच फिलिस्तीन से जो संदेश आया है, बहुतों के लिए राहत देने वाला है. कई मुल्कों की उलझनें खत्म करने वाला है. जंग को जन्म देने वाले हमलावर हमास को अलग थलग करने वाला है - और अंततः अमन का मार्ग प्रशस्त करने वाला भी लगता है. 

7 अक्टूबर, 2023 को हमास के लड़ाकों ने कुछ ही देर में इजरायल पर अचानक हमला बोल दिया था. हमले में इजरायल के करीब 1300 नागरिकों की मौत हो गई थी, और हजारों की संख्या में लोग घायल हो गये. हमले के साथ ही हमास ने करीब 150 इजरायली नागरिकों को बंधक बना लेने का भी दावा किया था.

हमले के बाद, इजरायल की तरफ से हुई कार्रवाई में हमास के 6 कमांडर मारे जा चुके हैं. इजरायली सेना के मुताबिक, 7 अक्टूबर को हमले का नेतृत्व करने वाले हमास कमांडर अली कादी को भी मार गिराया है. 

जंग के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का कहना है कि हमास का खात्मा तो जरूरी है, लेकिन गाजा पट्टी पर इजरायल का कब्जा ठीक नहीं होगा. बाइडेन कहते हैं, हमास ने बर्बरतापूर्ण काम किया है... उसका खात्मा जरूरी है, लेकिन फिलिस्तीनी लोगों के लिए भी अपना मुल्क चाहिये... अपनी अलग सरकार होनी चाहिये.

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भारत का भी पुराना स्टैंड यही रहा है, और ये आज भी कायम है. हमास के हमले को भारत आतंकवादी हमला पहले ही बता चुका है, लेकिन ऐन उसी वक्त फिलिस्तीन और वहां के लोगों के साथ खड़े रहने का भी वादा दोहराया है. 

हमास अब फिलिस्तीन नहीं है, यानी प्रो-हमास माहौल को झटका

फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास और वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो के बीच फोन पर हुई बातचीत से एक बड़ी बात निकल कर आई है. हालांकि, बातचीत के आधार पर पहले जो बयान सामने आया था, उसमें थोड़ा सुधार भी किया गया है. जो भी, जैसे भी हो - अंत भला तो सब भला कहा जा सकता है.

समाचार एजेंसी WAFA की पहली वाली रिपोर्ट में बताया गया था, 'राष्ट्रपति का इस बात पर भी जोर था कि हमास की नीतियां और कार्रवाई फिलिस्तीनी लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं करते... सिर्फ PLO की नीतियां, कार्यक्रम और फैसले ही फिलिस्तीनी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं और वैध हैं.'

लेकिन कुछ घंटों बाद ही एजेंसी की तरफ से महमूद अब्बास के बयान का नया ड्राफ्ट जारी किया गया, 'राष्ट्रपति का इस बात पर भी जोर था कि सिर्फ PLO की नीतियां, कार्यक्रम और फैसले ही फिलिस्तीनी लोगों का असली प्रतिनिधित्व करते हैं और वैध हैं, न कि किसी अन्य संगठन की नीतियां.'

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फिलिस्तीनी राष्ट्रपति के बयान के दोनों ही ड्राफ्ट में मामूली फर्क है, वो भी सिर्फ शब्दों में. बात एक ही है, भाव एक ही है. दूसरे बयान में बस इतना ही किया गया है कि हमास का नाम हटा दिया गया है. निश्चित तौर पर ये कोई कूटनीतिक कदम ही होगा. हमास का नाम लेने और न लेने में फर्क तो है ही.

अब्बास का हमास से किनारा, मतलब अब वो राजनीतिक नहीं, सिर्फ आतंकी संगठन

हमास को अरबी में हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया के नाम से भी जाना जाता है. ये एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है, 1987 में पहले इंतिफादा यानी सशस्त्र विद्रोह के दौरान फिलिस्तीनी शरणार्थी शेख अहमद यासीन ने हमास की स्थापना की थी.

मुद्दे की बात ये है कि महमूद अब्बास ने PLO यानी फिलिस्तीन लिबरेशन संगठन को ही फिलिस्तीनी लोगों का एकमात्र और वैध प्रतिनिधि बताकर हमास से किनारा कर लिया है. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, फिलिस्तीनी राष्ट्रपति अब्बास ने दोनों तरफ के लोगों की हत्या को अस्वीकार कर दिया है, और दोनों ही पक्षों के नागरिकों, कैदियों और बंधक बनाये गये लोगों की रिहाई की अपील भी की है. 

मतलब अब हमास जो कुछ भी कर रहा है, वो फिलिस्तीन के लिए नहीं बल्कि अपने लिये कर रहा है. अब हमास को किसी तरह का राजनीतिक सपोर्ट नहीं हासिल है. हमास अब सिर्फ और सिर्फ एक आतंकवादी संगठन बन कर रह गया है - और ये बात फिलिस्तीन को लेकर पूरी दुनिया के लिए बेहद अहम है. 

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1. जब फिलिस्‍तीनी राष्‍ट्रपति ने किनारा किया तो ईरान का क्‍या बनता है?

इजरायल को भेजे एक खास मैसेज में ईरान का कहना था कि वो हमास-इजरायल जंग को और आगे नहीं बढ़ाना चाहता है. साथ ही, धमकी भी दी थी कि अगर गाजा में इजरायल का ऑपरेशन जारी रहता है, तो उसे भी दखल देना पड़ेगा.

ईरान ने अपना ये संदेश संयुक्त राष्ट्र के जरिये इजरायल को भेजा था. यानी ईरान इजरायल-हमास जंग में प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होता है तो ये जंग और आगे बढ़ सकती है और मामला लंबा चल सकता है. 

2. कतर, सीरिया, पाकिस्‍तान जैसे देशों को अपने एजेंडे से पीछे हटना होगा

इजरायल को ज्यादातर मुस्लिम मुल्क अपना दुश्मन मानते हैं. इन मुस्लिम मुल्कों का कहना है कि इजरायल को फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा करके बनाया गया है. ऐसे देशों में अरब मुल्क हैं, और गैर-अरब मुल्क भी. 

अल्जीरिया, इराक, कुवैत, लीबिया, कतर, ओमान, सोमालिया, यमन और सीरिया जैसे करीब दर्जन भर देश ऐसे हैं जो इजरायल के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं करते. इनके अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, ईरान, इंडोनेशिया, और मालदीव जैसे देश भी इजरायल को  लेकर बिलकुल वैसी ही राय रखते हैं. 

फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के बयान के बाद ऐसे मुल्कों को पहले तो ये तय करना होगा कि वे फिलिस्तीन के साथ हैं, या हमास के साथ? अगर हमास के साथ हैं, फिर तो कोई बात ही नहीं - लेकिन अगर वे खुद को फिलिस्तीन का हमदर्द मानते हैं तो अपना स्टैंड बदलना पड़ेगा. अपने पुराने एजेंडे से पीछे हटना होगा.

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3. हमास के खिलाफ अब बिना किसी बड़ी आशंका के निर्णायक लड़ाई लड़ी जा सकती है

अब तक हमास के खिलाफ कई मुल्क गोल मोल बातें कर रहे थे. एक अंतर्राष्ट्रीय तबके को इस बात का डर भी था कि हमास को कुछ कहा जाये तो अरब और बाकी मुस्लिम मुल्क अपने पर न ले लें, और बात बिगड़ जाये.

अब हमास के खिलाफ खुल कर कदम उठाये जा सकते हैं. आगे से हमास को लेकर कुछ भी कहने का मतलब कतई फिलिस्तीन के लिये कुछ बोलने जैसा होगा - और अब हमास के खिलाफ बगैर किसी लामबंदी की आशंका के निर्णायक लड़ाई लड़ी जा सकती है. 

4. इजरायल-हमास युद्ध के क्षेत्रीय संघर्ष में बदल जाने की संभावना कम हुई

फिलिस्तीन के इस कदम के बाद अब ईरान जैसे मुल्कों को भी अपने स्टैंड के बारे में नये सिरे से सोचना पड़ेगा. अब तक ईरान, इजरायल के खिलाफ हमास का साथ देने और उसकी तरफ से लड़ने की बात कर रहा था, लेकिन अब ईरान जैसे मुल्कों के लिए कोई नया कदम उठाने से पहले दुनिया को ये भी समझाना होगा कि वो क्यों फिलिस्तीन की फिक्र नहीं कर रहा है, और हमास जैसे संगठन के आतंकवादी मंसूबों को आगे बढ़ाना चाहता है? 

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फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के बयान के बाद किसी भी देश के लिए हमास का साथ देने का मतलब आतंकवाद को साथ देना होगा - और ऐसे माहौल में इजरायल-हमास जंग के नये सिरे से क्षेत्रीय संघर्ष में तब्दील हो जाने की संभावन कम हो गयी है. 

5. फिलिस्‍तीनी राष्‍ट्रपति का बयान यहूदी-मुस्लिम रिश्ते की कड़वाहट कम करेगा

शुरू से ही फिलिस्तीन और इजरायल के बीच तनाव भरे माहौल में यहूदी-मुस्लिम रिश्तों में भी कड़वाहट भरी रही है - ऐसे में फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास का ये कदम रिश्तों में सुधार ला सकता है. 

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