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‘अयोध्या 2.0' और भारतीय राजनीति में काशी और मथुरा जैसे मुद्दों के बदलते मायने

अयोध्या का माहौल लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से काफी बदला-बदला महसूस किया जा रहा है. ऐसा लगता है जैसे विपक्ष जश्न मना रहा हो, और बीजेपी बैठे बैठे मजबूरी में तमाशा देख रही हो - जैसे अचानक सब कुछ नये मिजाज का हो गया हो, और बीजेपी को हर फासले का ध्यान रखना पड़ रहा हो.

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अखिलेश यादव अयोध्या से सपा सांसद अवधेश प्रसाद को राष्ट्रीय नेता के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हैं.
अखिलेश यादव अयोध्या से सपा सांसद अवधेश प्रसाद को राष्ट्रीय नेता के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हैं.

राम मंदिर के उद्घाटन समारोह को अगर बीजेपी के मंदिर आंदोलन की पूर्णाहूति मान लें, तो अब विपक्ष का अयोध्या आंदोलन शुरू हो गया है - अयोध्या 2.0.

लोकसभा चुनाव से पहले और चुनाव के बाद, 2024 में ही अयोध्या के दो अलग अलग रंग देखने को मिले हैं. खास बात ये है कि दोनों ही रंग राजनीतिक हैं, अब आप चाहे इसे संयोग कहिये, या अयोध्या आंदोलन में शुरू हुआ नया प्रयोग. 

एक रंग 22 जनवरी को अयोध्या में देखने को मिला था, और दूसरा 24 जून को संसद भवन में. अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के निशाने पर पूरा विपक्ष था, और संसद के नये सत्र के पहले दिन पूरे विपक्ष ने मोदी और बीजेपी को निशाने पर ले रखा था. 

अयोध्या के लोगों ने ही बीजेपी को सिर-आंखों पर बिठा कर केंद्र की सत्ता में 2014 में दोबारा भेजा था, लेकिन दस साल में ही अपना प्रतिनिधि बदल लिया - और उस पार्टी के उम्मीदवार को संसद भेज दिया, जिसके नेता मुलायम सिंह यादव को अभी तक कारसेवकों पर गोली चलवाने के लिए याद किया जाता है, लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में अयोध्या के लोगों ने बीजेपी को हरा कर ये साबित कर दिया है कि राम मंदिर उद्धाटन समारोह के बहिष्कार का विपक्ष का फैसला गलत नहीं था. 

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राम मंदिर समारोह का बायकॉट कोई मामूली फैसला नहीं था. चुनावी साल में विपक्ष का ये बहुत बड़ा राजनीतिक स्टैंड था, जो काफी जोखिम भरा लगा था - लेकिन लगता है विपक्षी गठबंधन INDIA के नेताओं ने जनता का मूड तभी अच्छी तरह भांप लिया था. 

मंदिर के उद्घाटन के मौके पर सख्त स्टैंड लेने के साथ ही विपक्ष ने संविधान बचाने को भी मुद्दा बनाया था, और संसद भवन में ये नजारा भी एक साथ देखने को मिला. विपक्ष के सांसदों के हाथों में संविधान की कॉपी थी, और अयोध्या के नये सांसद अवधेश प्रसाद सभी के आकर्षण के केंद्र बने हुए थे. 

समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी मौके का पूरा फायदा उठाया. वैसे भी ये मौका भी तो यूपी के लोगों ने ही दिया है, विशेष रूप से अयोध्यावासियों ने, सपा उम्मीदवार अवधेश प्रसाद को संसद भेजकर. 2014 से फैजाबाद लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते आ रहे लल्लू सिंह को अवधेश प्रसाद ने इस बार शिकस्त दे डाली है.   

संसद में दाखिल होते वक्त अखिलेश यादव के एक हाथ में संविधान की कॉपी थी, और दूसरे हाथ से वो अवधेश प्रसाद का हाथ पकड़े हुए थे. अवधेश प्रसाद भी अपने हाथ में संविधान लिये हुए थे - और कुछ ही देर बाद विपक्ष की तरफ की अगली ही पंक्ति में अखिलेश यादव और अवधेश प्रसाद के साथ राहुल गांधी भी बैठे हुए थे. तीनों यूपी के सांसद - यूपी के दोंनो लड़के और अयोध्या के सांसद.

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अयोध्या, अखिलेश और मुलायम सिंह यादव

18वीं लोकसभा के पहले सत्र में अखिलेश यादव को अवधेश प्रसाद का हाथ थामे संसद भवन की सीढ़ियां चढ़ते देखा गया - और तभी ये साफ हो गया कि फैजाबाद के एक विधायक सिर्फ सांसद ही नहीं बने हैं, बल्कि वो राष्ट्रीय स्तर के नेता बन चुके हैं - और इसके साथ एक बात और भी साफ हो गई कि अखिलेश यादव भी यूपी की जीत के साथ पिता की तरह राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाने जा रहे हैं. 

लोकसभा चुनाव कैंपेन के दौरान एक वाकया याद आता है. भाषण के दौरान अखिलेश यादव ने अवधेश प्रसाद को पूर्व विधायक बोल दिया था. जब अखिलेश यादव को ध्यान दिलाया, तो भूल सुधार भी सपा नेता ने राजनीतिक लहजे में ही किया था. 

अखिलेश यादव ने गलती से मिस्टेक मानने के बजाय बोला था, 'आपको पूर्व विधायक इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आप अयोध्या के सांसद बनने जा रहे हैं.'

अब तो ऐसा लग रहा है जैसे अखिलेश यादव की जबान फिसली नहीं थी, बल्कि तब उनकी जबान पर सरस्वती बैठी हुई थीं. 

राम मंदिर आंदोलन के दौरान बीजेपी नेता मुलायम सिंह यादव को मौलाना मुलायम तक कहा करते थे. और 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी एक इंटरव्यू में मुलायम सिंह को अखिलेश यादव के अब्बा कह कर संबोधित किया था.

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ये भी देखा गया है कि चुनावों से पहले मुलायम सिंह यादव लोगों को ये याद दिलाना नहीं भूलते थे कि अयोध्या में कारसेवकों पर गोली किसने चलाई थी, और ये दलील देना भी नहीं भूलते थे कि यूपी के मुख्यमंत्री रहते ऐसा क्यों किया था. 

आज मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव संसद पहुंच कर फैजाबाद के सांसद अवधेश प्रसाद के साथ अयोध्या के नये किस्से सुनाने की कोशिश कर रहे हैं. 

5 अगस्त, 2020 को राम मंदिर भूमि पूजन और 22 जनवरी, 2024 के राम मंदिर उद्घाटन समारोह को याद करें तो मोदी और योगी अयोध्या का चेहरा ही सामने आता है, लेकिन अवधेश प्रसाद के बहाने अखिलेश यादव अब अयोध्या का नया चेहरा बनने की कोशिश कर रहे हैं.  

2017 में सपा और कांग्रेस के बीच हुआ चुनावी गठबंधन टूटने को लेकर यहां तक सुना गया था कि राहुल गांधी, अखिलेश यादव का फोन ही नहीं उठा रहे थे - और अब ये देखने को मिल रहा है कि सोनिया गांधी भी अखिलेश यादव की पार्टी की तारीफ कर रही हैं. वैसे भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को रायबरेली और अमेठी में मिली जीत के पीछे तो समाजवादी पार्टी ही है. 

संसद में जब अखिलेश यादव ने अवधेश प्रसाद का परिचय कराया तो सोनिया गांधी ने बधाई दी. अखिलेश यादव ने जब कहा कि वो संविधान की बड़ी किताब लेकर आये हैं, तो सोनिया का जवाब धा - इस बार उनकी पार्टी भी बड़ी होकर आई है. समाजवादी पार्टी ने यूपी में सबसे ज्यादा 37 लोकसभा सीटें जीती है, और कांग्रेस को 6 सीटें मिली हैं. 

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अयोध्या के बाद काशी और मथुरा में क्या होने वाला है

संसदीय क्षेत्र का नाम अब भी फैजाबाद ही है. हालांकि, जिले का नाम बदल कर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या कर दिया है, और यही वजह है कि फैजाबाद के सांसद को  अयोध्या का ही सांसद कहा जा रहा है. काशी यानी वाराणसी से बीजेपी उम्मीदवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर काफी कम हुआ है, लेकिन मथुरा में हेमा मालिनी के मामले में मामूली फर्क ही दर्ज किया गया है. वैसे भी जिस तरह वाराणसी में हार जीत का कम अंतर दर्ज किया गया है, अगर मोदी की जगह बीजेपी का कोई और उम्मीदवार होता तो रिजल्ट अयोध्या जैसा भी हो सकता था. 

धार्मिक महत्व से इतर अगर मथुरा के सियासी अहमियत की बात करें, तो बीजेपी के बड़े नेता अक्सर दूरी बनाते देखे गये हैं. हालांकि, योगी आदित्यनाथ होली पर वहां भी वैसे ही जाते रहे हैं, जैसे दिवाली पर गोरखपुर रवाना होने से पहले अयोध्या. 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तो काशी और मथुरा से पहले ही दूरी बना चुका है. जिस दिन अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने साफ कर दिया था कि काशी और मथुरा के मुद्दे से संघ को कोई मतलब नहीं है. अयोध्या मसले से संघ जुड़ा था, और आंदोलन मंजिल तक पहुंच चुका है, इसलिए संघ फिर से राष्ट्र और व्यक्ति निर्माण के अपने काम में लग जाएगा. 

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पहले ये बीजेपी और अयोध्या को एक ही सिक्के के दो पहलू की तरह देखा जा रहा, लेकिन अब एक नया पहलू भी जुड़ गया है. पहले अयोध्या की बातें पक्ष में हुआ करती थीं, लेकिन अभी सब बीजेपी के खिलाफ है - विपक्ष अयोध्या को लेकर बीजेपी के नारे को ही कुछ ऐसे समझा रहा है कि अयोध्या की तरह ही आगे वाराणसी और मथुरा में बीजेपी को शिकस्त देंगे.

ऊपर से मौसम का मिजाज भी बीजेपी पर भारी पड़ा है. पहली ही बारिश में राम पथ पर जगह जगह गड्ढे और अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन की दीवार गिरने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर हो रही हैं - और राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास का वो बयान भी जिसमें वो पानी के कारण दर्शन पूजन बंद होने की आशंका जता रहे हैं.

सत्येंद्र दास ने कहा था कि मंदिर की छतों से पानी टपक रहा है, और यहां तक दावा किया कि गर्भगृह में जहां रामलला विराजमान हैं, वहां भी पानी भर गया... एक-दो दिन में इंतजाम नहीं हुए, तो दर्शन-पूजन की व्यवस्था बंद करनी पड़ेगी.

लेकिन राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र ने सत्येंद्र दास के दावों को खारिज कर दिया है. नृपेंद्र मिश्र इस दिनों निर्माण कार्यों की समीक्षा के लिए अयोध्या में ही हैं. 

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सत्येंद्र दास के दावों को लेकर नृपेंद्र मिश्र ने कहा, मैंने मंदिर की पहली मंजिल से बारिश का पानी टपकते देखा है... हम ये उम्मीद कर रहे थे, क्योंकि मंदिर की दूसरी मंजिल पूरी तरह से खुली हुई है. पहली मंजिल पर निर्माण कार्य चल रहा है, इसलिए मंदिर के गर्भगृह में नाली बंद कर दी गई है... मंदिर के गर्भगृह से पानी मैन्युअल तरीके से निकाला जा रहा है.

चुनाव से पहले जो विपक्ष बिखरा हुआ नजर आ रहा था, अब पूरी तरह एकजुट नजर आ रहा है. जहां तक अवधेश प्रसाद की बात है, तो अखिलेश यादव पहले से ही उनको अहमियत देते नजर आये हैं. यूपी विधानसभा में भी अखिलेश यादव, अवधेश प्रसाद को बगल में भी बैठाते रहे हैं - और वही संदेश संसद में देने की कोशिश कर रहे हैं. बस दायरा बढ़ गया है.

विपक्ष की तरफ से बार बार ये संदेश देने की कोशिश हो रही है कि बीजेपी अयोध्या हार गई है, और लोग ये भी न भूलें कि काशी यानी वाराणसी में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत का मार्जिन बहुत कम रहा. 

अगर कुछ नहीं बदला है तो वो है अयोध्या को लेकर बीजेपी का दिया हुआ स्लोगन - अयोध्या तो बस झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है. 

ये स्लोगन पहले भी राजनीतिक ही था, अब भी राजनीतिक ही है, लेकिन मायने बदल गये हैं - जैसे सब कुछ नये मिजाज का हो गया हो, और बीजेपी को हर फासले का ध्यान रखना पड़ रहा हो.

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