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'भारत के हक का पानी भी बाहर जा रहा था, लेकिन अब...' सिंधु जल संधि निलंबन पर पहली बार बोले PM मोदी

पीएम मोदी का यह बयान सरकार द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करने की घोषणा के कुछ दिनों बाद आया है. यह विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता की गई एक ऐतिहासिक जल-साझाकरण संधि है, जिस पर 1960 में पाकिस्तान के साथ हस्ताक्षर किए गए थे. इसे पहलगाम में हुए घातक आतंकवादी हमले के बाद निलंबित कर दिया गया, जिसमें 26 नागरिकों की जान चली गई थी.

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प्रधानमंत्री मोदी ने एक कार्यक्रम में कई मुद्दों पर बात की  (File Photo)
प्रधानमंत्री मोदी ने एक कार्यक्रम में कई मुद्दों पर बात की (File Photo)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के साथ दशकों पुरानी सिंधु जल संधि को निलंबित करने के भारत के फैसले के बाद मंगलवार को अपनी पहली सार्वजनिक टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि भारत के लिए निर्धारित पानी अब देश के भीतर ही रहेगा और उसका इस्तेमाल किया जाएगा. एक निजी न्यूज चैनल के कार्यक्रम में बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, "पहले भारत के हक का पानी भी बाहर जा रहा था. अब भारत का पानी, भारत के हक में बहेगा, भारत के हक में रुकेगा और भारत के ही काम आएगा."

यह बयान सरकार द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करने की घोषणा के कुछ दिनों बाद आया है. यह विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता की गई एक ऐतिहासिक जल-साझाकरण संधि है, जिस पर 1960 में पाकिस्तान के साथ हस्ताक्षर किए गए थे. इसे पहलगाम में हुए एक घातक आतंकवादी हमले के बाद निलंबित कर दिया गया, जिसमें 26 नागरिकों की जान चली गई थी.

संधि को रोकने का निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा पर सरकार की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था, सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (CCS) द्वारा लिया गया था. अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को अपना समर्थन देना बंद नहीं कर देता, तब तक निलंबन प्रभावी रहेगा. संधि की स्थापना के बाद से यह पहली बार है कि भारत ने आधिकारिक तौर पर इसके कार्यान्वयन को रोक दिया है. यह उसके कूटनीतिक रुख में एक महत्वपूर्ण बदलाव है. लगातार तनाव के कारण वर्षों से समीक्षा के लिए समय-समय पर आह्वान के बावजूद, संधि अब तक अछूती रही है.

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सख्त फैसले लेने में हिचकिचाहट के लिए पिछली सरकारों की आलोचना करते हुए पीएम मोदी ने मंगलवार को कहा, "एक समय था जब कोई भी जरूरी कदम उठाने से पहले लोग सोचते थे कि दुनिया क्या सोचेगी. वे सोचते थे कि उन्हें वोट मिलेगा या नहीं, उनकी सीट सुरक्षित रहेगी या नहीं. इन कारणों से बड़े सुधारों में देरी हुई. कोई भी देश इस तरह आगे नहीं बढ़ सकता. देश तभी आगे बढ़ता है जब हम राष्ट्र को सबसे पहले रखते हैं."

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