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भारत का दिया साथ तो PAK से बनाई दूरी... जानें कैसे इंडिया का 'पक्का दोस्त' साबित हुआ रूस

पीएम मोदी ने बेबाक अंदाज में पुतिन के सामने एक बार फिर रूस-यूक्रेन युद्ध का न सिर्फ जिक्र किया बल्कि शांति की अपील की. उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सामने 2 मिनट तक बोले और इस दौरान उनका सबसे ज्यादा जोर रूस-यूक्रेन युद्ध की समाप्ति पर रहा.

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ब्रिक्स समिट से पहले पीएम मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ द्विपक्षीय वार्ता की. (PTI Photo)
ब्रिक्स समिट से पहले पीएम मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ द्विपक्षीय वार्ता की. (PTI Photo)

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए दो दिवसीय दौरे पर रूस के कजान शहर में पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दुनिया की नजरें टिकी हैं. सब देखना चाहते हैं कि दुनिया में जारी संघर्ष और तनाव को कम करने के लिए भारत क्या भूमिका निभाता है. इजरायल का हमास और हिज्बुल्लाह के साथ जंग हो या रूस-यूक्रेन युद्ध, दोनों संघर्षों के और फैलने का खतरा मंडरा रहा है. 

दुनिया की नजर भारत पर क्यों है इसे समझने के लिए कजान में पीएम मोदी और रूस के राष्ट्रपति पुतिन के बीच की मुलाकात पर गौर करना होगा. भारत और रूस के बीच हुई इस द्विपक्षीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का ऐसा अंदाज देखने को मिला जिसे देखकर अमेरिका का जलना तय है. द्विपक्षीय बैठक के दौरान पुतिन ने कुछ ऐसा कह दिया कि पीएम मोदी खिलखिलाकर हंसने लगे.

पीएम मोदी ने की रूस-यूक्रेन युद्ध के समाधान की अपील

पीएम मोदी ने बेबाक अंदाज में पुतिन के सामने एक बार फिर रूस-यूक्रेन युद्ध का न सिर्फ जिक्र किया बल्कि शांति की अपील की. उन्होंने कहा, 'रूस-यूक्रेन संघर्ष के मुद्दे पर हम लगातार संपर्क में रहे हैं. हमारा मानना है कि समस्याओं का समाधान शांति से ही होना चाहिए. भारत का प्रयास सदैव मानवता को प्राथमिकता देने का होता है. भारत यूक्रेन संघर्ष के समाधान और शांति बहाली के लिए हर संभव मदद को तैयार है.' प्रधानमंत्री मोदी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सामने 2 मिनट तक बोले और इस दौरान उनका सबसे ज्यादा जोर रूस-यूक्रेन युद्ध की समाप्ति पर रहा. 

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कजान एयरपोर्ट पर पहुंचे तो उनका स्वागत लड्डू और ब्रेड-नमक के साथ किया गया. होटल पहुंचने पर भारतीय पोशाक पहने रूसी कलाकारों ने सांस्कृतिक प्रस्तुति के साथ प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत किया. दोपहर 4 बजे के आसपास पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की मुलाकात हुई. मोदी कार से उतकर पुतिन के पास गए और उन्हें गले लगाया. इसके बाद वह पल आया जब पुतिन ने भारत और रूस के संबंधों को लेकर कुछ ऐसा कहा जिसे सुनकर पीएम मोदी खिलखिलाकर हंस पड़े. पुतिन ने कहा, 'भारत और रूस के संबंध इस कदर प्रगाढ़ हैं कि मुझे लगता है आप मेरी बात बिना ट्रांसलेटर के भी समझ सकते हैं.'

यह भी पढ़ें: 'हमारे रिश्ते ऐसे कि हमें ट्रांसलेटर की जरूरत नहीं...' जब पुतिन की बात पर खिलखिला उठे पीएम मोदी

पिछले 3 महीनों में प्रधानमंत्री मोदी की यह दूसरी रूस यात्रा

भारत और रूस के बीच करीबी को इसी बात से समझा जा सकता है कि पिछले 3 महीनों में प्रधानमंत्री मोदी दूसरी बार रूस पहुंचे हैं. इससे पहले जब वह जुलाई में रूस गए थे तो उन्होंने पुतिन को सलाह दी थी कि बम-बंदूक और गोलियों से शांति संभव नहीं है. इसके तुरंत बाद वह यूक्रेन के दौरे पर भी गए थे, जहां उन्होंने राष्ट्रपति वलोदिमीर जेलेंस्की से कहा था, 'मैंने पुतिन से आंख में आंख मिलाकर कहा कि ये जंग का समय नहीं है.' दुनिया के किसी दूसरे नेता ने शायद ही मॉस्को में पुतिन से मुलाकात के तुरंत बाद यूक्रेन जाकर जेलेंस्की से मुलाकात की हो.

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हमास और हिज्बुल्लाह के बाद इजरायल, ईरान से भी मिसाइल हमलों का बदला ले सकता है. इधर उत्तर कोरिया के सैनिकों की रूस में मौजूदगी ने दुनिया को डरा दिया है. क्योंकि रूस की तरफ से उत्तर कोरिया के सैनिकों का यूक्रेन युद्ध में उतरना तीसरे विश्व युद्ध के खतरे को बढ़ाता है. इसीलिए ब्रिक्स में दुनिया में जारी संघर्षों के समाधान के लिए भारत क्या करता है, इस पर दुनिया की नजरें टिकी हैं. भारत-रूस संबंध आपसी विश्वास और सम्मान पर आधारित हैं. बहुत कम ऐसे मौके आए हैं, जब दोनों देशों के बीच किसी मुद्दे पर सहमति ना बनी हो. एक दूसरे से हजारों किलोमीटर दूर होने के बावजूद दोनों देशों के बीच रक्षा, आर्थिक और कूटनीतिक संबंध काफी मजबूत हैं. 

वैश्विक स्तर पर कभी भारतीय हितों के खिलाफ नहीं रहा रूस

वैश्विक स्तर पर रूस ने भारत के हितों के खिलाफ कभी कोई काम नहीं किया है. चाहे पाकिस्तान के साथ 1971 की जंग हो या फिर 1999 का कारगिल युद्ध, हर बार रूस ने भारत का साथ दिया. रूस अब एशिया की ओर तेजी से रुख कर रहा है. चीन पर उसकी निर्भरता बढ़ रही है, लेकिन भारत की कीमत पर वह चीन के साथ नहीं जाना चाहता. दोस्ती की एक और मिसाल पाकिस्तान से रूस की दूरी है. व्लादिमीर पुतिन कई बार भारत आ चुके हैं, लेकिन आजतक पाकिस्तान नहीं गए. ईंधन और ऊर्जा क्षेत्र में रूस आज भारत का सबसे भरोसेमंद साथी बन चुका है. भारत के लिए रूस से दोस्ती चीन और अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के साथ संतुलन बनाने के काम आती है. 

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चीन के खिलाफ भारत की सैन्य कूटनीतिक कामयाबी की चर्चा

जो चीन आए दिन दक्षिण चीन सागर में अपने पड़ोसी देशों को डराता रहता है, ताइवान को हड़पने की तैयारी में जुटा है, वह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत के साथ मई 2020 के पहले की स्थिति बहाल करने पर कैसे राजी हो गया? कूटनितिक और रक्षा मामलों के विशेषज्ञ सुशांत सरीन कहते हैं, 'भारत ऐसा देश है जो चीन की धौंस-धमकी के सामने घुटने नहीं टेकता. इसका ही नतीजा है कि ड्रैगन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थिति सामान्य करने के लिए मजबूर हुआ है.' चीन के खिलाफ भारत की इस सैन्य और कूटनीतिक कामयाबी की चर्चा दुनियाभर में हो रही है. 

अप्रैल 2020 में चीन की सेना ने पूर्वी लद्दाख में कम से कम 6 जगहों पर अतिक्रमण किया था. इसके जवाब में भारत की सेना ने उन चोटियों पर कब्जा कर लिया, जो चीन के लिए रणनीतिक लिहाज से काफी जोखिम भरा था. इस दबाव में चीन की सेना दो साल पहले अतिक्रमण वाले 4 स्थानों परे पीछे हट गई. लेकिन देपसांग और डेमचोक में गतिरोध पिछले साढ़े 4 साल से बकरार था, जो दोनों देशों के बीच हुए हालिया समझौते के बाद अब सुलझता दिख रहा है. हांलाकि चीन को लेकर विश्वास का संकट अब भी बरकरार है. 

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India China Relations

भारत-चीन के बीच LAC पर तनाव कम करने के लिए समझौता

भारत चीन के साथ 3488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है. जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में भारत की सीमा चीन से लगती है. भारत और चीन की सरहद तीन सेक्टरों में बंटी हुई है- पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मिडिल सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड और पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश. दोनों देशों के बीच अब तक पूरी तरह से सीमांकन नहीं हुआ है, क्योंकि कई इलाकों को लेकर दोनों के बीच मतभेद है. इसी का फायदा उठाकर चीन कोविड महामारी के दौरान LAC पर युद्धाभ्यास नाम पर धोखे से आ बैठा. लेकिन भारत की जवाबी कार्रवाई ने ड्रैगन को चौंका दिया. 

चीन की इस हरकत ने न सिर्फ भारत को एलएसी से जुड़ी चुनौती के बारे में सतर्क किया, बल्कि बॉर्डर इलाके में बुनियादी ढांचे को पुख्ता करने के लिए प्रेरित किया. भारत ने अपने सभी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर तेजी से बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान दिया. सड़कें, हेलीपैल और एयरफील्ड बनाए. इसने चीन और पाकिस्तान को परेशान कर दिया. इसके अलावा भारत द्वारा उठाए गए कदमों से चीन को बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है. इससे भी चीन पर दबाव बना है. भारत और चीन की तरफ से हालिया समझौते पर विस्तार से कुछ भी नहीं बताया गया है. लेकिन इतना तो तय है कि दोनों देश सीमा पर तनाव कम करने के लिए गंभीर हैं. 

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