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राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने का क्या मतलब है? क्या शंकराचार्य के पास ऐसी कोई पावर है

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि जब कोई व्यक्ति लगातार हिंदू धर्मग्रंथों का अपमान करता है और सफाई देने से बचता है, तो उसे हिंदू धर्म में जगह नहीं दी जा सकती. उन्होंने साफ किया कि अब राहुल गांधी का मंदिरों में विरोध होना चाहिए और पुजारियों से अपील की कि वे उनसे पूजा-पाठ न कराएं क्योंकि वे अब खुद को हिंदू कहने के अधिकारी नहीं हैं.

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राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने का ऐलान
राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने का ऐलान

शंकराचार्य को हिंदू धर्म का संरक्षक और प्रचारक माना जाता है और इसी मकसद के साथ आदि शंकराचार्य ने इस परंपरा की शुरुआत की थी. ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने रविवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने का ऐलान कर दिया. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने आरोप लगाए कि राहुल गांधी ने मनुस्मृति का अपमान किया है और नोटिस देने के बावजूद अपने बयान पर न तो खेद जताया और न ही कोई सफाई दी.

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राहुल गांधी को किया बहिष्कृत

ज्योतिर्मठ पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि राहुल गांधी ने संसद में मनुस्मृति को लेकर जो बयान दिया, उससे संपूर्ण सनातन धर्मावलंबी आहत हैं. शंकराचार्य ने कहा कि राहुल गांधी संसद में कहते हैं बलात्कारी को बचाने का फॉर्मूला संविधान में नहीं बल्कि मनुस्मृति में लिखा है. इसके बाद शंकराचार्य ने कहा कि राहुल गांधी को तीन महीने पहले एक नोटिस भेजा गया था, जिसमें उनसे सफाई मांगी गई थी कि उन्होंने मनुस्मृति को लेकर जो बात कही है, वह कहां लिखी है? लेकिन इतने समय के बाद भी न तो राहुल गांधी ने कोई जवाब दिया और न ही माफी मांगी. 

ये भी पढ़ें: राहुल गांधी पर भड़के शंकराचार्य अविमुक्‍तेश्वरानंद, कांग्रेस नेता को हिंदू धर्म से बहिष्‍कृत करने का किया ऐलान

शंकराचार्य ने कहा कि जब कोई व्यक्ति लगातार हिंदू धर्मग्रंथों का अपमान करता है और सफाई देने से बचता है, तो उसे हिंदू धर्म में स्थान नहीं दिया जा सकता. उन्होंने साफ किया कि अब राहुल गांधी का मंदिरों में विरोध होना चाहिए और पुजारियों से अपील की कि वे उनसे पूजा-पाठ न कराएं क्योंकि वे अब खुद को हिंदू कहने के अधिकारी नहीं हैं. शंकराचार्य के इस ऐलान के बाद कांग्रेस के विरोधी खुश हैं तो वहीं पार्टी का कहना है कि शंकराचार्य के बयान को गलत तरीके से पेश किया गया.

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शंकराचार्य के बयानों की चर्चा

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने पहली बार किसी राजनेता और राजनीतिक विषय पर ऐसा बयान नहीं दिया है बल्कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर भी बयान देते रहते हैं. हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद उन्होंने 'चौकीदार' शब्द का हवाला देते हुए सीधे पीएम मोदी पर सवाल उठाए थे. यही नहीं शंकराचार्य की ओर से सिंधु नदी समझौता सस्पेंड करने के फैसले पर भी सवाल उठाए गए थे. 

अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का कहना था भारत में सिंधु नदी के पानी को मोड़ने या बनाए रखने के लिए भारत में बुनियादी ढांचे की कमी है और ऐसी सुविधाओं के निर्माण में दो दशक लग सकते हैं. उन्होंने कहा कि सरकार ऐसे फैसले लेकर जनता को बेवकूफ बना रही है. इससे पहले शंकराचार्य अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का भी विरोध कर चुके हैं और वह 22 जनवरी के कार्यक्रम में शामिल भी नहीं हुए थे.

हमले के बाद पीएम मोदी पर सवाल उठाने वाले बयान पर स्वामी गोविंद गिरी महाराज ने अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की तीखी आलोचना की थी. उन्होंने कहा कि वह एक बनावटी शंकराचार्य हैं और आए दिन प्रधानमंत्री का मजाक उड़ाने का पाप करते हैं. यह किसी भी स्वामी का काम नहीं होना चाहिए और हमे उन्हें संत नहीं मानते. गोविंद गिरी ने कहा कि वह कांग्रेस पार्टी के पिट्ठू बन चुके हैं.

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क्या किसी को धर्म से निकाल सकते हैं?

अब शंकराचार्य की ओर से राहुल गांधी पर जो बयान दिया गया है, उसके मायने समझते हैं. पहले जान लें कि सनातन धर्म में शंकराचार्य सबसे बड़े धर्म गुरु माने जाते हैं, बौद्ध धर्म में दलाई लामा और ईसाई धर्म के पोप का जो दर्जा हासिल है, हिंदू धर्म में शंकराचार्य उससे भी कहीं ऊपर आते हैं. देश के चार मठों में इनकी अहम भूमिका है और संत समाज में शंकराचार्य अग्रणी संत हैं. लेकिन क्या वह वास्तव में किसी को धर्म से निकाल सकते हैं?

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जगद्गुरु शंकराचार्य ने जब चारों दिशाओं में चार पीठ बनाये थे तो उन पीठों के लिए एक संविधान भी बनाया था जिसे 'महानुशासनम' कहा जाता है. यह महानुशासनम शंकराचार्यों के अधिकार और दायित्व तय करता है. हालांकि इसमें धर्म की रक्षा और धर्म के प्रचार को लेकर ही ज्यादातर बातों का जिक्र मिलता है. ऐसे में यह कहना कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के पास किसी को धर्म से निकालने को कोई अधिकार है, सही नहीं होगा.

क्या ये सिर्फ राजनीतिक बयान

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने राहुल गांधी को हिंदू धर्म से निकालने का जो ऐलान किया है, वह एकतरह से बेअसर है. क्योंकि हिंदू मंदिरों और सनातन धर्म के अनुयायी भी इसे लेकर एकमत नहीं हैं. ऐसे में राहुल गांधी को मंदिरों में पूजा-पाठ से रोकने की अपील असरदार नहीं है. ऐसा हो सकता है कि बीजेपी शासित राज्यों के मंदिरों में राहुल गांधी को पूजा करने से रोक भी दिया जाए. लेकिन कांग्रेस की सरकार वाले राज्यों में ऐसा होने की संभावना कम है.

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शंकराचार्य के हर बयान या उनके मत पर देशभर में सहमति हो, ऐसा नहीं देखा जाता है. उनके पिछले बयानों का संत समाज से लेकर राजनेता तक विरोध कर चुके हैं. ऐसे में यह साफ है कि उनके इस बयान को भी पिछली बार की तरह राजनीतिक ही माना जाएगा. इसका कांग्रेस और उनके विरोधी स्वागत कर रहे हैं, वहीं राहुल गांधी के समर्थक इसे मानने को तैयार नहीं हैं.

एक मत यह भी है कि अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के पिछले ज्यादातर बयान सत्ता विरोधी रहे हैं और ऐसे में 'बैलेंस एक्ट' के तहत इस बार उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को निशाने पर लिया है, ताकि उनकी निष्पक्षता बरकरार रहे. इससे पहले के बयानों को लेकर शंकराचार्य सत्ताधारी नेताओं के निशाने पर रहे हैं.

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