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मोहन भागवत ने की 2 से ज्यादा बच्चों की पैरवी, बोले-जिस समाज की प्रजनन दर 2.1 से कम हुई वो विलुप्त हो गए

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि दो नहीं बल्कि कम से कम तीन बच्चे होने चाहिए. उन्होंने जनसंख्या को लेकर चिंता जताई है. सरसंघचालक ने कहा कि प्रजनन दर 2.1 से नीचे चली जाती है, तो वह समाज दुनिया से नष्ट हो जाता है.

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संघ प्रमुख मोहन भागवत
संघ प्रमुख मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने जनसंख्या बढ़ोतरी की दर में गिरावट (प्रजनन दर) पर चिंता जताई है. एक कार्यक्रम के दौरान संघ प्रमुख ने कहा कि जनसंख्या बढ़ोतरी की दर में गिरावट चिंता का विषय है. उन्होंने कहा कि जनसांख्यिकी नियम करता है कि जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से कम नहीं होनी चाहिए.

भागवत ने कहा, 'आधुनिक जनसंख्या विज्ञान कहता है कि जब किसी समाज की जनसंख्या (प्रजनन दर) 2.1 से नीचे चली जाती है, तो वह समाज दुनिया से नष्ट हो जाता है. वह समाज तब भी नष्ट हो जाता है जब कोई संकट नहीं होता है. इस तरह से, कई भाषाएं और समाज नष्ट हो गए. जनसंख्या 2.1 से नीचे नहीं जानी चाहिए.'

दो से अधिक बच्चों की वकालत

मोहन भागवत ने आगे कहा, 'हमारे देश की जनसंख्या नीति वर्ष 1998 या 2002 में तय की गई थी. इसमें यह भी कहा गया है कि जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे नहीं होनी चाहिए. इसलिए यदि हम 2.1 की जनसंख्या वृद्धि दर चाहते हैं, तो हमें दो से अधिक बच्चों की जरूरत है. फिर भागवत ने ये भी कहा कि तीन तो होने ही चाहिए. ऐसा ही जनसंख्या विज्ञान भी कहता है. संख्या महत्वपूर्ण है क्योंकि समाज का बने रहना जरूरी है.

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क्या 2.1 प्रजनन दर

भारत में आदर्श प्रजनन दर 2.1 है, जिसका अर्थ है कि एक महिला को अपने जीवनकाल में औसतन 2.1 बच्चे यानि 2 से अधिक होने चाहिए. यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्धारित किया गया है और यह एक देश की जनसंख्या को स्थिर रखने के लिए आवश्यक प्रजनन दर है. अगर ऐसा नहीं होता है तो उस समाज में जनसंख्या असंतुलन होने का खतरा मंडरा जाता है. प्रजनन दर (फर्टिलिटी रेट) एक देश या क्षेत्र में प्रति महिला औसत बच्चों की संख्या को दर्शाता है. यह आंकड़ा आमतौर पर प्रति महिला 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग में औसत बच्चों की संख्या के रूप में व्यक्त किया जाता है.

संघ पहले भी करता रहा है ऐसी वकालत

इसके पहले भी कई मौकों पर आरएसएस यह कहता रहा है कि देश की एक समान जनसांख्यिकीय योजना न होने के चलते देश पर आबादी के असंतुलन का खतरा मंडरा रहा है जो भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत है.

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दरअसल जनसंख्याविदों मानते हैं किइस सदी के अंत तक भारत की आबादी गिरकर एक अरब 10 करोड़ रह जायेगी. वर्ष 2030 तक भारत के सबसे ज़्यादा युवा जनसंख्या वाला देश बने रहने की संभावना है. उसके बाद भारत में युवा कम होते जाएंगे. शायद यही कारण है कि जनसंख्या नियंत्रण के संबंध में चल रही सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में केंद्र ने कहा था कि परिवार नियोजन को अनिवार्य बनाने के कानून बनाने के पक्ष में सरकार नहीं है.

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