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भारत में पहले से कम बच्चे पैदा कर रहे हैं मुस्लिम, हिंदुओं की भी प्रजनन दर घटी: रिसर्च

भारत के सभी धार्मिक समूहों के प्रजनन दर में बड़ी गिरावट देखने को मिली है. ये दावा प्यू रिसर्च सेंटर का है. इस रिसर्च सेंटर की नई स्टडी के अनुसार, भारत में महिलाओं की प्रजनन दर में पिछले 25 सालों में ही जबरदस्त बदलाव देखने को मिला है और इनमें भारत के सभी प्रमुख धर्मों की महिलाएं शामिल हैं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो क्रेडिट: getty images
प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो क्रेडिट: getty images
स्टोरी हाइलाइट्स
  • भारत में हर समुदाय की महिलाओं में गिरा प्रजनन दर
  • कई फैक्टर्स के चलते महिलाओं के प्रजनन दर में कमी

भारत के सभी धर्मों की महिलाओं में प्रजनन दर में बड़ी गिरावट देखने को मिली है. प्यू रिसर्च सेंटर की नई स्टडी के अनुसार, भारत में महिलाओं की प्रजनन दर में पिछले 25 सालों में जबरदस्त बदलाव देखने को मिला है और इनमें भारत के सभी प्रमुख धर्मों की महिलाएं शामिल हैं. 

इस रिसर्च सेंटर की नई स्टडी के अनुसार, 1951 के बाद से देश की धार्मिक संरचना में मामूली बदलाव ही देखने को मिला है. भारत की 1.2 अरब की जनसंख्या में 94 प्रतिशत लोग हिंदू और मुस्लिम समुदाय से आते हैं. इसके अलावा बाकी 6 प्रतिशत लोग ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन धर्म के हैं. 

प्यू सेंटर ने नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे और जनगणना के उपलब्ध आंकड़ों के जरिए ये रिसर्च जारी की है. इस स्टडी में प्यू रिसर्च सेंटर ने देश की धार्मिक संरचना में बदलाव और इन बदलाव के कारणों को पता लगाने की कोशिश की है. साल 1947 में भारत का विभाजन हो गया था और साल 1951 में पहली बार स्वतंत्र भारत की जनगणना हुई थी. 

साल 1951 में भारत की आबादी लगभग 36 करोड़ थी. दस साल पहले यानी 2011 में हुई जनगणना में भारत की आबादी बढ़कर एक अरब, 21 करोड़ हो चुकी थी. इस दौरान हर धर्म की आबादी में वृद्धि देखने को मिली थी.

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साल 1951 से 2011 तक हिंदुओं की जनसंख्या 30 करोड़ से बढ़कर 96 करोड़ के आसपास हो गई. इसके अलावा मुस्लिम आबादी साल 1951-2011 के बीच 3.5 करोड़ से बढ़कर 17 करोड़ के आसपास हो गई.

वहीं, ईसाइयों की जनसंख्या 80 लाख से बढ़कर लगभग 3 करोड़ हो चुकी है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत की कुल आबादी में 79.8 फीसदी हिंदू हैं जबकि मुस्लिमों की आबादी 14.2 फीसदी है. जहां दुनिया के 94 फीसदी हिंदू भारत में रहते हैं, वहीं इंडोनेशिया के बाद दुनिया की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी भारत में बसती है.

हिंदू और मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर में भारी गिरावट

अगर प्रमुख धार्मिक समूहों की बात की जाए तो मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर सबसे अधिक है. साल 2015 में प्रति मुस्लिम महिला औसतन 2.6 बच्चों को जन्म देती थी.

इसके बाद हिंदुओं की प्रजनन दर (प्रति महिला 2.1 बच्चे) है. वहीं, जैनों के बीच प्रजनन दर (1.2) सबसे कम है. इस रिसर्च में कहा गया है कि अब भी पैटर्न काफी हद तक वैसा ही है, जैसा साल 1992 में था.

उस दौरान मुसलमानों की प्रजनन दर सबसे ज्यादा (4.4) थी. वहीं, इसके बाद हिंदुओं की प्रजनन दर (3.3) थी. हालांकि, अब भारत के अलग-अलग धार्मिक समुदायों में बच्चे पैदा करने में अंतर आम तौर पर पहले की तुलना में बहुत कम हो चुका है. 

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सीनियर प्यू रिसर्चर स्टेफनी क्रेमर का कहना है कि हैरानी वाली बात ये है कि महज एक जेनरेशन के अंदर ही 25 साल से कम उम्र की मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर में भारी गिरावट आई है.

90 के दशक की शुरुआत में भारत में एक महिला औसतन 3.4 बच्चों को जन्म देती थी, जो 2015 में घटकर 2.2 रह गया.

इस दौरान प्रति हिन्दू महिला में बच्चे जन्म देने का औसत 3.3 से घटकर 2.1 हो गया. मुस्लिम महिलाओं में तो यह गिरावट और ज्यादा रही. प्रति मुस्लिम महिला में बच्चे जन्म देने का औसत 4.4 से घटकर 2.6 हो गया.   

पिछले 60 सालों में भारत की जनसंख्या में मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी में 4% की वृद्धि हुई जबकि हिंदू हिस्सेदारी में लगभग इतनी ही गिरावट आई.

वहीं, अन्य समूह काफी स्थिर रहे हैं. क्रेमर ने बीबीसी के साथ बातचीत में कहा कि भारत में डेमोग्राफिक बदलाव के मामूली अंतर को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि मुस्लिम महिलाओं के अन्य भारतीय महिलाओं की तुलना में अधिक बच्चे रहे हैं. हालांकि अब इसमें भी काफी हद तक बदलाव देखा जा सकता है.

इस स्टडी में ये भी कहा गया है कि परिवार का आकार कई कारणों से प्रभावित होता है. ऐसे में ये तय करना मुश्किल है कि अकेले धार्मिक फैक्टर प्रजनन क्षमता को किस हद तक प्रभावित कर सकता है. कई देशों के उलट भारत में डेमोग्राफिक बदलाव के लिए माइग्रेशन या धर्म अहम प्रभाव नहीं डालते हैं. 

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महिलाओं की एजुकेशन और आर्थिक स्थिति से भी प्रभावित हो रही जनसंख्या

भारत में जनसंख्या वृद्धि के अन्य कारणों में महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक स्थिति को भी जिम्मेदार बताया गया है. शिक्षित महिलाएं अक्सर करियर में सेटल होने के बाद शादी करती हैं और कम शिक्षित महिलाओं की तुलना में उनका बच्चा काफी समय बाद पैदा होता है.

इसके अलावा आर्थिक स्थिति की बात की जाए तो आमतौर पर गरीब परिवारों के अधिक बच्चे होते हैं ताकि वे घर के कामों और आय के संसाधनों में हाथ बंटा सकें. 

गौरतलब है कि ये स्टडी बहुत अधिक चौंकाने वाली भी नहीं है क्योंकि भारत की कुल प्रजनन दर में पिछले कुछ दशकों से भारी गिरावट देखने को मिली ही है. एक औसत भारतीय महिला की प्रजनन दर अब 2.2 हो चुकी है. ये भले ही अमेरिका(1.6) से कम हो लेकिन साल 1992 के भारत (3.4) और साल 1951 के भारत (5.9) से काफी कम है. 


 

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