अक्षय कुमार स्टारर फिल्म 'केसरी चैप्टर 2' रिलीज हो गई है. इस फिल्म में उन्होंने ब्रिटिशर्स के खिलाफ जालियांवाला बाग में हुए नरसंहार को लेकर केस लड़ने वाले वकील शंकरन नायर का किरदार निभाया है. फिल्म में अक्षय के साथ अनन्या पांडे और आर माधवन भी हैं. करण जौहर के प्रोडक्शन और करण सिंह त्यागी के निर्देशन में बनी 'केसरी चैप्टर 2' कैसी है, पढ़िए हमारे रिव्यू में.
फिल्म का फर्स्ट हाफ है जबरदस्त
‘केसरी चैप्टर 2’ शुरू होती है जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार के सीन से. इस नरसंहार के एक सर्वाइवर के जरिए कहानी की गहराई सेट होती है, जो ब्रिटिश सरकार का हिस्सा बने शंकरन नायर को भी खींच लेती है. नायर के किरदार में अक्षय कुमार में एक गंभीरता नजर आती है. कुछ महत्वपूर्ण सीन्स में क्लोज-अप शॉट्स उनके एक्सप्रेशन के जरिए दर्शकों को कहानी से बांधने की कोशिश करते हैं, जो कामयाब भी होती है. अनन्या पांडे की एंट्री वो फाइनल एंगल है जो ब्रिटिश भारत के बेहद महत्वपूर्ण मुकदमे का माहौल सेट करता है. अनन्या अपनी जगह डटे रहने में कामयाब हैं. इंटरवल से ठीक पहले आर माधवन की एंट्री है जो हमेशा की तरह आते ही स्क्रीन अपने कब्जे में ले लेते हैं. फ़िल्म के सेकंड हाफ में उस केस की कार्रवाई आगे बढ़ेगी जिसमें माधवन और अक्षय आमने सामने होंगे.
फर्स्ट हाफ में फिल्म उस चीज को सॉलिड तरीके से बुनने में कामयाब है, जो इस तरह की कहानियों की जान होता है- ड्रामा. इतिहास में दर्ज एक घटना की गंभीरता को आज के दर्शकों तक पहुंचाने में ‘केसरी 2’ मजबूत साबित होती है. असली कोर्टरूम ड्रामा सेकंड हाफ में होना है और वहां फिल्म का खुद को साबित करना सबसे जरूरी है.
फिल्म के सेकेंड हाफ में हैं कमियां
‘केसरी 2’ का सेकंड हाफ ब्रिटिश सरकार पर शंकरन नायर के केस से शुरू होता है. इस कोर्टरूम ड्रामा में माधवन अपनी परफॉर्मेंस से आपका ध्यान बांधते हैं. अक्षय और अनन्या को भी उनके मजबूत मोमेंट मिलते हैं. मगर इस सेकंड हाफ में कई कमियां भी हैं जो अक्सर कोर्टरूम ड्रामा फिल्मों में पाई जाती हैं. फिल्म के मकसद को पूरा करने के लिए कोर्ट में वकील बनकर खड़ा हुआ किरदार खुद ही पुलिस और जज भी बन जाता है.
‘केसरी 2’ भी इस लालच से नहीं बच पाती और अक्षय-अनन्या फैंटम जासूस बने नजर आते हैं. सेकंड हाफ में एक रेप विक्टिम को कोर्ट में जिस तरह क्रॉस-क्वेश्चन किया गया है, वो खटकता है. जलियांवाला बाग से कनेक्शन रखने वाला एक रेप केस इतिहास में भी दर्ज है और इस केस के फैक्ट इतिहासकारों में बहस का मुद्दा रहे हैं. लेकिन ‘केसरी 2’ इस पूरे सब-प्लॉट को चलताऊ तरीके से डील करती है.
फिर भी मिलेंगे ताली बजाने लायक पल
शंकरन नायर की पूरी कहानी क्या थी, उनका केस किस तरह आगे बढ़ा था, जनरल डायर और उस समय पंजाब के गवर्नर रहे ओ’ड्वायर ने जलियांवाला बाग का सच दबाने के लिए क्या क्या किया, इसके फैक्ट्स फिल्म में गड़बड़ नजर आते हैं. मगर जहां अब व्हाट्सएप पर इतिहास की कोचिंग चल जाती है, वहां एक फिल्म का फैक्ट्स में गड़बड़ होना कोई अलग बात नहीं लगती.
‘केसरी 2’ के ट्रेलर का वादा था जलियांवाला बाग का सच बाहर लाने वाले केस के हीरो को दिखाना. और अक्षय को इस इतिहास आधारित कहानी का हीरो दिखाने के लिए फिल्म काफी लिबर्टी लेती है. ये फैक्चुअली तो दाएं-बाएं हो सकता है, मगर एक फिल्म के तौर पर ‘केसरी 2’ जनता को कई ताली बजाने वाले मोमेंट्स पूरे स्टाइल के साथ डिलीवर करती है. सेकंड हाफ में पेस का भी इशू है और ये फर्स्ट हाफ की सेटिंग से पूरी तरह न्याय नहीं कर पाता.
ऐतिहासिक कहानियों पर बनी फिल्मों की असली कामयाबी इस बात में होती है कि फिल्म देखने के बाद आप उस घटना को और कितना जानना-समझना-पढ़ना चाहते हैं. और इस पैमाने पर ‘केसरी 2’ पूरी तरह खरी उतरती है.