बिहार चुनाव से पहले वोट चोरी आरोप लगा रहा विपक्ष वोटर लिस्ट रिवीजन के मुद्दे को लेकर सड़कों पर है. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव 'वोटर अधिकार यात्रा' पर निकले हैं. इस यात्रा में मधुबनी से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी शामिल हुईं. अब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) के प्रमुख एमके स्टालिन भी वोटर अधिकार यात्रा में शामिल होने जा रहे हैं.
तमिलनाडु के सीएम 27 अगस्त को मिथिलांचल के दरभंगा में वोटर अधिकार यात्रा में शामिल होंगे. कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इसकी जानकारी देते हुए कहा था कि वोटर अधिकार यात्रा वोट चोरी के खिलाफ ऐतिहासिक आंदोलन का रूप ले चुकी है. उन्होंने दावा किया था कि यह यात्रा न सिर्फ बिहार, बल्कि पूरे देश के लोगों को आकर्षित कर रही है और कांग्रेस के साथ ही इंडिया ब्लॉक के घटक दलों के प्रमुख नेता भी इस यात्रा में शामिल होंगे.
डीएमके प्रमुख के वोटर अधिकार यात्रा में शामिल होने के कार्यक्रम को लेकर अब यह चर्चा शुरू हो गई है कि ऐसे में जब बिहार के चुनाव करीब हैं, स्टालिन के आने से महागठबंधन को सियासी नफा होगा या नुकसान? इस चर्चा का आधार है डीएमके की सनातन और हिंदी विरोधी इमेज. 2024 के लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सितंबर, 2023 में उदयनिधि स्टालिन सनातन उन्मूलन सम्मेलन में शामिल हुए थे.
सनातन विरोधी टैग
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इस कार्यक्रम में उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को सामाजिक न्याय और समानता के खिलाफ बताते हुए कहा था कि इसका सिर्फ विरोध नहीं किया जाना चाहिए, इसे समाप्त ही कर देना चाहिए. डेंगू, मलेरिया, मच्छर या कोविड का हम सिर्फ विरोध नहीं कर सकते. इसे मिटाना है और वैसे ही हमें सनातन को भी मिटाना है. उदयनिधि के इस बयान पर सियासी हंगामा खूब बरपा था. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने लोकसभा चुनाव के दौरान उदयनिधि के बयान को खूब उछाला और कांग्रेस समेत इंडिया ब्लॉक को सनातन विरोधी बताते हुए कठघरे में खड़ा किया.
हिंदी विरोधी इमेज
अधिक पुरानी बात नही हुई, जब तमिलनाडु और केंद्र की सरकारें नई शिक्षा नीति में त्रिभाषा फॉर्मूले को लेकर आमने-सामने आ गई थीं. शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 15 फरवरी को वाराणसी के एक कार्यक्रम में यह ऐलान किया था कि तमिलनाडु जब शिक्षा नीति को पूरी तरह से नहीं अपना लेता, उसे समग्र शिक्षा मिशन के तहत 2400 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित नहीं की जाएगी.
धर्मेंद्र प्रधान के इस बयान के बाद 25 फरवरी को सीएम स्टालिन ने पलटवार करते हुए कहा था कि जरूरत पड़ी तो तमिलनाडु एक और लैंग्वेज वॉर के लिए तैयार है. हम पर हिंदी ना थोपें. तमिलनाडु में जगह-जगह रेलवे स्टेशनों पर हिंदी में लगे बोर्ड्स पर डीएमके समर्थकों ने कालिख पोत दी.
हालांकि, सीएम स्टालिन ने बाद में हिंदी विरोध के सवाल पर यह भी कहा था कि अगर आप इसे हम पर नहीं थोपेंगे, तो हम हिंदी के शब्दों पर कालिख नहीं पोतेंगे. विरोध नहीं करेंगे. तमिलनाडु में बिहार के मजदूर की कथित पिटाई का वीडियो पोस्ट करने के मामले में यूट्यूबर (अब राजनेता) मनीष कश्यप की गिरफ्तारी, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई के कारण स्टालिन की छवि को और नुकसान पहुंचा था.
महागठबंधन को नफा होगा या नुकसान?
तमिलनाडु के सीएम स्टालिन को बिहार में उतारने से महागठबंधन को नफा होगा या नुकसान? इस पर राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि ईस्ट-वेस्ट, नॉर्थ-साउथ... भारत के हर हिस्से का अपना एक सियासी मिजाज है. स्टालिन तमिलनाडु की राजनीति में बड़ा चेहरा हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि वह बिहार में भी लोकप्रिय हों.
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उन्होंने आगे कहा कि बिहार में स्टालिन को जो लोग जानते भी हैं, ज्यादातर के मन में उनकी इमेज बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती. स्टालिन को वोटर अधिकार यात्रा में उतारने के पीछे इंडिया ब्लॉक की अपनी रणनीति होगी. लेकिन मुकाबला जब बीजेपी और एनडीए जैसे प्रतिद्वंद्वी से हो, ऐसे कदम के बैकफायर करने का खतरा भी है.
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वहीं, बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि तमिलनाडु और बिहार, दोनों ही राज्यों की राजनीति भाव प्रधान है. हालांकि, भाव का स्वरूप अलग है. बिहार में धार्मिक आस्था के साथ जातीय भाव का भी प्रभुत्व है. स्टालिन की पेरियार ब्रांड पॉलिटिक्स बिहार में प्रभाव डाल पाएगी या महागठबंधन को सियासी नफा होगा, ऐसा मुझे नहीं लगता.
तमिल सामाजिक न्याय बिहार में कितना फिट
तमिलनाडु की सियासत भी सामाजिक न्याय के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है. डीएमके का सियासी बेस भी यही है और स्टालिन इसका प्रमुख चेहरा हैं. लेकिन तमिलनाडु की सामाजिक न्याय वाली पॉलिटिक्स बिहार में महागठबंधन के लिए कितना काम आती है, स्टालिन कितने कारगर साबित होते हैं? ये बिहार के चुनाव नतीजे ही बताएंगे.