डीआरडीओ (DRDO) ने प्रलय मिसाइल के एयर लॉन्च्ड वर्जन पर काम शुरू किया है, जो भारत की रणनीतिक हमले की क्षमता को बढ़ा सकता है. प्रलय एक क्वासी-बैलिस्टिक मिसाइल है, जो 6.1 मैक की रफ्तार से उड़ान भरती है. यानी 7473 किलोमीटर प्रतिघंटा. एक बार ये मिसाइल बन गई तो दुश्मन कुछ सेकेंड में खत्म.
हालांकि इसे फाइटर जेट से लॉन्च करना आसान नहीं है. आइए समझते हैं कि यह तकनीक कितनी जटिल है. भारत इस क्षेत्र में कैसे आगे बढ़ रहा है.
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प्रलय मिसाइल क्या है?
प्रलय एक शॉर्ट-रेंज सरफेस-टू-सरफेस मिसाइल (SRSSM) है, जिसे डीआरडीओ ने विकसित किया है. यह 150 से 500 किलोमीटर की दूरी तक लक्ष्य को नष्ट कर सकती है. यह हाइपरसोनिक मिसाइल है. वर्तमान में यह 5 टन वजनी है. ट्रक से लॉन्च की जाती है. इसके पास एडवांस गाइडेंस सिस्टम है, जो इसे सटीक निशाना लगाने में मदद करता है.
हवाई लॉन्च संस्करण क्यों जरूरी है?
हवाई लॉन्च संस्करण से भारत को कई फायदे मिल सकते हैं...
लेकिन यह तकनीक बहुत चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि बैलिस्टिक मिसाइल को हवा से लॉन्च करना क्रूज मिसाइल (जैसे ब्रह्मोस-ए) से ज्यादा जटिल है.
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तकनीकी चुनौतियां क्या हैं?
वजन कम करना: प्रलय मिसाइल का वजन 5 टन है, जो फाइटर जेट के लिए बहुत भारी है. इसे हल्का करना होगा. करीब 2-3 टन तक. इसके लिए हल्के मटीरियल जैसे कार्बन फाइबर या टाइटेनियम का इस्तेमाल होगा.
डिजाइन में बदलाव: मिसाइल के पंखों और आकार को फिर से डिजाइन करना होगा ताकि हवा में अलग होने और स्थिर रहने में मदद मिले.

भारी केंद्र (CoG): मिसाइल के वजन केंद्र को संतुलित करना होगा ताकि हवाई जहाज से छोड़े जाने के बाद यह सुरक्षित रहे.
प्रोप्ल्शन सिस्टन: हवा में सुरक्षित ज्वलन (इग्निशन) के लिए नया तंत्र बनाना होगा, जो जोखिम भरा है.
स्थिरता और उड़ान: ब्रह्मोस-ए सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जो हल्की और स्थिर होती है. लेकिन प्रलय हाइपरसोनिक और प्रति मीटर भारी है, जिससे इसे हवा से छोड़ने और प्रोप्लशन शुरू करने में दिक्कत होगी. हवा में मिसाइल का संतुलन बनाए रखना और सही दिशा में उड़ान भरना मुश्किल होगा.
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उड़ान परीक्षण और समयसीमा

भारत के लिए यह कदम क्यों खास है?
चुनौतियां और उम्मीदें
यह प्रोजेक्ट तकनीकी रूप से बहुत मुश्किल है. वजन कम करने और स्थिरता सुनिश्चित करने में समय लगेगा. साथ ही, परीक्षणों में असफलता का जोखिम भी है. लेकिन डीआरडीओ की टीम पहले भी ब्रह्मोस और अग्नि मिसाइलों में सफलता हासिल कर चुकी है, जो आशा जगाती है. अगर 2028-2029 तक यह तकनीक कामयाब होती है, तो भारत की सैन्य ताकत में क्रांतिकारी बदलाव आएगा.