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नीलकंठ, त्रिपुरारी और गंगाधर... 'शिव पुराण' से कैनवस पर उतरी महादेव की चित्रकथा

समीक डे ने अपनी पेंटिंग्स को पेपर पर इंक और एक्रेलिक के जरिए उकेरा है. 12*17 इंच के कैनवस पर ये चित्रकारी अपनी बारीकियों के साथ बहुत खूबसूरत बन पड़ी हैं और साथ ही शिव पुराण की कथाओं के रहस्य को खुद में समेट पाने में सक्षम हैं. इन तस्वीरों में बारीकियों की डिटेलिंग को परखना है तो कलाकार की खास पेंटिंग 'त्रिपुरारी' को देखिए.

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महादेव शिव की पुराण कथाओं को चित्रकार समीक डे ने चित्रों का स्वरूप दिया है. इस चित्र में 'त्रिपुरारि' शिव को दिखाया गया है.
महादेव शिव की पुराण कथाओं को चित्रकार समीक डे ने चित्रों का स्वरूप दिया है. इस चित्र में 'त्रिपुरारि' शिव को दिखाया गया है.

पवित्र सावन मास, जिसे श्रावण के नाम से भी जाना जाता है, हिंदी महीनों के क्राम पांचवां महीना है. ये एक संयोग भी है कि महादेव शिव को समर्पित महीने का क्रम पांचवां है और शिव का परमसिद्ध मंत्र 'ओम नमः शिवाय' भी पंचाक्षरी है. इस मास में शिव परिचर्चा के सुनने यानी श्रवण करने का अधिकाधिक महत्व होने के कारण ही, इसे श्रावण कहा गया और जब प्रकृति खुद ब खुद महादेव का अपने वर्षाजल से अभिषेक करती है तो ऐसे में कला समुदाय महादेव के प्रभाव से क्यों अछूता रहे, जिसकी उत्पत्ति का ही कारण शिव हैं. 

डिजिटल पेंटिंग प्रदर्शनी, सर्वव्यापी शिव
सावन की इसी महीने में चित्रकार समीक डे की डिजिटल प्रदर्शनी का आना भी शिवलिंगम पर चढ़ाए गए फूल के ही जैसा है. शिवजी की कथा और उनके अलग प्रसंगों पर आधारित चित्रों-पेंटिंग्स की एक डिजिटल प्रदर्शनी ऑनलाइन मीडियम के जरिए लोगों तक पहुंच रही है. Shiva All Encompassing ( सर्वव्यापी शिव) नाम से इस डिजिटल प्रदर्शनी को 'एहसास' सोशल प्लेटफॉर्म पर लेकर आया है. यह प्रदर्शनी कलाकार समीक डे के चित्रों की एकल प्रदर्शनी है, जिसे मनीषा गवाड़े ने तैयार किया है.

Samik De Art
गंगाधर शिव, गंगा अवतरण की कथा

इस प्रदर्शनी में भगवान शिव के अलग-अलग रूपों को दर्शाया गया है. मनीषा बताती हैं कि सावन का एक महत्वपूर्ण प्रसंग समुद्र मंथन से जुड़ा है. पुराणों के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तो उसमें से हलाहल नामक विष निकला. यह विष इतना खतरनाक था कि वह पूरे संसार को नष्ट कर सकता था. तब भगवान शिव ने उस विष को पी लिया ताकि संसार की रक्षा हो सके. इस कारण उनका गला नीला पड़ गया, और उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा.

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पौराणिक कथाओं का खूबसूरत चित्रांकन
समीक डे की एक खास पेंटिंग इस कहानी को बहुत ही खूबसूरत और रंगों के जरिए बेहद गहराई से समझाती है, और यही प्रसंग इस प्रदर्शनी का मुख्य आकर्षण है. यह डिजिटल प्रदर्शनी मनीषा गवाड़े की एक खास पहल का हिस्सा है. वे हर साल एहसास के माध्यम से ऐसी ऑनलाइन प्रदर्शनियां आयोजित करती हैं, इस पहल के जरिए दूरियां और सीमाएं कोई बाधा नहीं बनतीं, बल्कि लोग अपने घरों से ही इन खूबसूरत कलाकृतियों को देख सकते हैं. बीते कुछ वर्षों में यह पहल डिजिटल भारतीय कला जगत में एक महत्वपूर्ण आयोजन बन चुकी है. यह न केवल ऑनलाइन मंचों की ताकत को दर्शाती है, बल्कि भारतीय कला और कहानियों की गहराई को भी सामने लाती है.

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समीक डे की पेटिंग वृषभ वाहन शिव

बारीकियां जिनसे खूबसूरत बन पड़ी है कलाकृति
समीक डे ने अपनी पेंटिंग्स को पेपर पर इंक और एक्रेलिक के जरिए उकेरा है. 12*17 इंच के कैनवस पर ये चित्रकारी अपनी बारीकियों के साथ बहुत खूबसूरत बन पड़ी हैं और साथ ही शिव पुराण की कथाओं के रहस्य को खुद में समेट पाने में सक्षम हैं. इन तस्वीरों में बारीकियों की डिटेलिंग को परखना है तो कलाकार की खास पेंटिंग 'त्रिपुरारी' को देखिए. 

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त्रिपुर के विनाश की कथा
शिव पुराण की कथा कहती है कि तारकासुर के पुत्रों तारकाक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष ने ब्रह्माजी से वरदान में अपने लिए तीन अलग-अलग लोक मांग लिए. ये तीनों लोग सत्व गुण, रज गुण, और तमो गुण से बने थे. इसलिए इनकी धातु और रंग भी सुनहले, श्वेत और ताम्र थे. इस तरह तीनों जब त्रिलोक में उत्पात मचाने लगे, तब शिवजी ने देवताओं की प्रार्थना पर त्रिपुर का विनाश करने का निर्णय लिया. एक तय मुहूर्त पर जब तीनों राक्षसों के लोक एक सीध में आए तब शिवजी ने अपने पिनाक धनुष से एक ही बार में एक साथ तीनों का नाश कर दिया. इस तरह शिव 'पिनाकपाणि' और 'त्रिपुरारि' कहलाए.

पेंटिंग इस कथा को बहुत ही व्यावहारिक तरीके से सामने रखती है. शिव एक रथ पर हैं. रथ को स्वयं ब्रह्मा चला रहे हैं, इस रथ के पहिए सूर्य और चंद्र हैं. शिवजी के हाथों में विशाल पिनाकी धनुष है. धनुष की प्रत्यंचा उनके कान तक खींची हुई है. तीर पर विष्णु बैठे हैं, जो 'नारायण अस्त्र' का प्रतीक है. तीर के निशाने पर सोने-चांदी और तांबई रंग के तीन गोल पिंड दिख रहे हैं, यही त्रिपुर है. पेंटिंग का इतनी बारीकी से बना होना इस बात की गवाही है कि कूची का कलाकार पौराणिक आख्यानों की बारीकी को लेकर भी चैतन्य है. 

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त्रिपुर का नाश करते पिनाकपाणि, त्रिपुरारि महादेव शिव

गंगाधर शिव, महादेव का कल्याणकारी अवतार
ठीक इसी तरह, समीक डे की एक पेंटिंग गंगाधर है. शिव महायोगी के वेश में हैं. जटाएं खुलकर दूर तक फैल गई हैं, जो कैनवस के आखिरी छोर तक हैं और शायद वहां भी जहां शिव नहीं हैं. क्या शिव के अनंत स्वरूप को दर्शाने के लिए ये बारीकी काफी नहीं है? इन जटाओं का रंग हल्का आसमानी हो गया है और रंग का स्ट्रोक इस आसमानी आभा को भीतर की ओर ढकेल रहा है. ये धारदार बहाव गंगा के अवतरण का प्रतीक है. नीली-आसमानी आभा, जल का ही संकेत हैं और इस जल का स्त्री रूप में मानवीकरण किया गया है. जटाओं में गंगा, अपने मकर वाहन पर बैठी हैं. इस जल से नीचे की धरती भीगती हुई आगे बढ़ रही है. राजा भगीरथ तापस वेश में हैं और प्रसन्नता में शंखनाद कर रहे हैं. गंगा अवतरण का यह दृश्य खूबसूरत बन पड़ा है और शिव, गंगाधर अवतार में नजर आ रहे हैं.

इसके अलावा समीक डे की कूची, शिवजी के अर्धनारीश्वर, चंद्रशेखर, शिवा और शक्ति, ऊर्जा बिंदु, महादेव-पार्वती, वृषभवाहन शिव जैसे पौराणिक शैव आख्यानों को बड़ी ही खूबसूरती से उतारती है. 

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महादेव-पार्वती, शाश्वत युगल... Samik De Art



समीक डे की यह प्रदर्शनी भगवान शिव की भक्ति, उनकी शक्ति और उनके विभिन्न रूपों को दर्शाती है. हर पेंटिंग में शिव के अलग-अलग स्वरूपों को जीवंत किया गया है, जो दर्शकों को आध्यात्मिक और कलात्मक अनुभव प्रदान करती हैं. यह प्रदर्शनी सावन के महीने में भगवान शिव के भक्तों के लिए एक उपहार है. यह कला और भक्ति का अनूठा संगम है, जो ऑनलाइन मंच के जरिए सभी तक पहुंच रहा है.
 

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