घर की चौखट से हजारों मील दूर, कनाडा में विराजेंगी बर्दवान की 'दुर्गा', सिद्धार्थ पाल के सपने को मिला अंतरराष्ट्रीय मंच

पश्चिम बंगाल के बर्दवान के कुम्हार कलाकार सिद्धार्थ पाल की बनाई दुर्गा प्रतिमा पहली बार विदेश भेजी गई है. यह प्रतिमा कनाडा के ओंटारियो में पूजी जाएगी. इससे पहले उनकी लक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमाएं नॉर्वे तथा शिव की प्रतिमा अमेरिका गई थी. सिद्धार्थ ने पत्नी तंद्रा पाल के साथ मिलकर 20 दिन में फाइबरग्लास से प्रतिमा तैयार की.

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बर्दवान की कला ने जीता दिल!(Photo: Screengrab) बर्दवान की कला ने जीता दिल!(Photo: Screengrab)

सुजाता मेहरा

  • बर्दवान,
  • 15 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:09 PM IST

पश्चिम बंगाल के पूर्व बर्दवान जिले के एक कुम्हार की कला अब सीमाओं को लांघकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंच गई है. बर्दवान के बेचारहाट इलाके के रहने वाले कलाकार सिद्धार्थ पाल की बनाई देवी दुर्गा की प्रतिमा इस बार विदेश भेजी गई है. यह प्रतिमा कनाडा के ओंटारियो में पूजी जाएगी. इससे पहले उनकी बनाई लक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमा नॉर्वे, जबकि भगवान शिव की प्रतिमा अमेरिका पहुंच चुकी है, लेकिन दुर्गा की प्रतिमा पहली बार विदेश में पूजी जाएगी.

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दरअसल, सिद्धार्थ पाल पिछले कई वर्षों से मिट्टी और फाइबर से देवी-देवताओं की मूर्तियां बना रहे हैं. इस बार उन्हें अपनी भतीजी के जरिए कनाडा से संपर्क प्राप्त हुआ. उन्होंने बताया कि वहां रहने वाले प्रवासी बंगालियों ने उनसे प्रतिमा की तस्वीरें मांगी थीं. तस्वीरें पसंद आने के बाद ऑर्डर की पुष्टि हुई. हालांकि शुरुआत थोड़ी देर से हुई, लेकिन विदेश भेजे जाने की वजह से उन्होंने बाकी सारे काम रोक दिए और दिन-रात मेहनत कर 20-22 दिनों में प्रतिमा तैयार कर दी. आमतौर पर ऐसे काम में डेढ़ महीने से ज्यादा का वक्त लगता है.

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लगभग 2.5 किलोग्राम वजनी, 30 इंच चौड़ी और 20 इंच ऊंची इस प्रतिमा को खासतौर पर फाइबरग्लास से तैयार किया गया. विदेश भेजे जाने की वजह से इसे मजबूती देने के लिए मिट्टी और प्लास्टर ऑफ पेरिस से पहले सांचा बनाया गया, फिर उस पर फाइबर, रसायनों और कांच के ऊन का उपयोग किया गया. इस काम में उनकी पत्नी तंद्रा पाल ने भी बराबरी से सहयोग किया.

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सिद्धार्थ पाल ने बताया कि हर साल उन्हें उम्मीद रहती थी कि उनकी बनाई दुर्गा प्रतिमा एक दिन विदेश जाएगी. इस बार उनका सपना सच हो गया. भले ही वे खुद कनाडा नहीं जा सके, लेकिन उनकी प्रतिमा हज़ारों मील दूर वहां रहने वाले बंगालियों तक पहुंची है. उन्होंने कहा कि कोलकाता और पश्चिम बंगाल के कई जिलों में उनकी मूर्तियां पहले से ही पूजी जाती रही हैं.

परंपरा की चमक अंतरराष्ट्रीय मंच पर

लेकिन इस बार उनकी कला प्रवासी बंगालियों के बीच जाकर उन्हें घर की खुशबू और उत्सव का एहसास कराएगी. उनकी पत्नी तंद्रा पाल ने भी कहा कि जब उनकी मेहनत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही जा रही है तो गर्व महसूस होता है. यह प्रतिमा न सिर्फ़ बर्दवान बल्कि बंगाल की लोक कला और परंपरा की चमक को भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले गई है. प्रवासी समुदाय के लिए यह मूर्ति दुर्गा पूजा जैसे बड़े त्योहार को और खास बना देगी. कलाकार सिद्धार्थ पाल और उनके परिवार के लिए यह पल जीवनभर यादगार रहेगा.

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