खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर हत्याकांड को लेकर भारत और कनाडा में जारी राजनयिक विवाद के बीच ब्रिटिश अखबार फाइनेंशियल टाइम्स ने गुरुवार को दावा किया कि एक और खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की अमेरिका में हत्या की साजिश रची गई थी. लेकिन अमेरिका ने पन्नू की हत्या की साजिश को नाकाम कर दिया.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि साजिश में शामिल होने की चिंताओं को लेकर अमेरिका ने भारत को चेतावनी भी दी है. व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एड्रियन वॉटसन ने कहा कि अमेरिकी सरकार इसे गंभीरता से ले रही है और इस मामले को भारत के समक्ष उठाया है.
ब्रिटिश अखबार की ओर से लगाए गए इन आरोपों पर भारत सरकार ने कहा कि वह सुरक्षा मामलों पर अमेरिका से मिलने वाली सूचनाओं को गंभीरता से लेता है, क्योंकि वे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं पर भी असर डालते हैं.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि भारत-अमेरिका सुरक्षा सहयोग पर हालिया चर्चा के दौरान अमेरिकी ने संगठित अपराधियों, बंदूक चलाने वालों, आतंकवादियों और अन्य लोगों के बीच सांठगांठ से संबंधित कुछ इनपुट साझा किए गए थे. भारत ऐसे इनपुट को गंभीरत को लेता है और संबंधित विभागों द्वारा इसकी जांच की जा रही है.
अमेरिका के प्रति भारत का नरम रुख
भारत की यह प्रतिक्रिया इसलिए अहम हो जाती है क्योंकि अमेरिका की ओर से लगाए गए आरोपों के जवाब में यह प्रतिक्रिया कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के आरोपों पर दी गई प्रतिक्रिया से बिल्कुल है. सितंबर में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने निज्जर की हत्या में भारत का हाथ होने का आरोप लगाया था. 18 जून 2023 को कनाडा के सर्रे शहर में गुरुद्वारे के बाहर निज्जर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के आरोपों पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी. भारतीय विदेश मंत्रालय ने ट्रूडो के आरोपों को बेतुका और मोटिवेटेड करार दिया था. कनाडा ने भारत के एक वरिष्ठ राजनयिक को निष्कासित किया था. जिसके जवाब में भारत ने भी एक वरिष्ठ कनाडाई राजनयिक को निष्कासित कर दिया था.
इसके अलावा भारत ने कनाडा में रह रहे या जाने वाले भारतीय नागरिकों के लिए एक ट्रैवल एडवाजरी भी जारी की थी. इसके बाद भारत ने कनाडा में वीजा सेवाओं को निलंबित कर दिया था. यहां तक कि ई-वीजा सेवाओं को भी रोक दिया था. साथ ही भारत ने कनाडा से अपने 41 राजनयिकों को भी नई दिल्ली से वापस बुलाने के लिए भी मजबूर किया.
भारत के आंतरिक मामलों में कनाडाई राजनयिकों के हस्तक्षेप और संख्या की अधिकता का हवाला देते हुए मोदी सरकार ने कनाडा से नई दिल्ली में अपनी राजनयिकों की संख्या को कम करने के लिए कहा था. मोदी सरकार के इस अल्टीमेटम के बाद कनाडा ने अपने 41 डिप्लोमैट्स को भारत से वापस बुला लिया है.
कनाडा और अमेरिका को दी गई प्रतिक्रिया का लहजा अलग-अलग
कनाडा में खालिस्तानी गतिविधियों और ट्रूडो के आरोपों से जुड़े सवालों का जवाब देते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने यहां तक कह दिया था कि कनाडा आतंकवादी गतिविधियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन गया है. कनाडा को अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा के बारे में सोचने की जरूरत है.
आमतौर पर इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल पाकिस्तान और अफगानिस्तान के लिए किया जाता रहा है. कनाडा के आरोपों पर दी गई प्रतिक्रिया की तुलना अगर अमेरिकी आरोपों पर दी गई प्रतिक्रिया से करें तो यह बिल्कुल ही अलग है.
एफटी की रिपोर्ट के कुछ घंटे बाद अरिंदम बागची ने कहा कि भारत-अमेरिका सुरक्षा सहयोग पर हालिया चर्चा के दौरान अमेरिका ने संगठित अपराध, आतंकवाद और अन्य लोगों के बीच सांठगांठ से संबंधित कुछ इनपुट साझा किए गए थे. भारत ऐसे इनपुट को गंभीरता से लेता है. यह इनपुट दोनों देशों के लिए चिंता का कारण है. क्योंकि यह हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा हितों पर भी प्रभाव डालता है.
कनाडा की तरह अमेरिका को जवाब क्यों नहीं?
कनाडा और अमेरिका की ओर से लगाए गए आरोपों पर विचार करें तो कनाडा के मामले में एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई थी और हत्या की जांच चल रही थी. वहीं, अमेरिका के मामले में हत्या की कथित साजिश है. इसलिए दोनों अपराध की प्रकृति अलग-अलग है. कनाडा के मामले में जस्टिन ट्रूडो ने सीधे भारत सरकार पर उंगली उठाई. वहीं, अमेरिका के मामले में अभी तक सीधे तौर पर भारत सरकार से कोई संबंध नहीं है.
कनाडा के मामले में ट्रूडो ने वहां की संसद में बयान दिया. वहीं, अमेरिका ने एफटी की रिपोर्ट से इनकार भले नहीं किया लेकिन उसने कहा कि हम सहयोगियों के साथ राजनयिक, कानून प्रवर्तन या खुफिया चर्चा पर टिप्पणी नहीं करते हैं. व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एड्रियन वॉटसन ने भी कहा कि अमेरिकी सरकार इसे गंभीरता से ले रही है और इस मामले को भारत के समक्ष उठाया है.
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता एड्रियन वॉटसन ने आगे कहा कि भारत का कहना है कि इस तरह की कार्रवाई उनकी पॉलिसी नहीं है. वॉटसन ने यह भी कहा कि हम समझते हैं कि भारत सरकार इस मामले की जांच कर रही है और आगामी दिनों में वह इस पर बहुत कुछ कहेंगे. हमने उन्हें बता दिया है कि इसके लिए जिम्मेदार लोगों को बख्शा नहीं जाएगा.
कनाडा को सहयोग देने से भी भारत ने किया था इनकार
दोनों की तुलना की जाए तो भारत की प्रतिक्रिया बिल्कुल अलग-अलग है. कनाडा के मामले में भारत ने आरोपों को बेतुका और मोटिवेटेड बताकर सिरे से खारिज कर दिया. इसके अलावा सहयोग करने को लेकर भारत ने कहा कि अगर कुछ जानकारी साझा की जाएगी तो इस पर गौर करेंगे. वहीं, अमेरिका के मामले में भारत की प्रतिक्रिया सहयोग की भावना वाली थी.
इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि भारत और कनाडा के बीच संबंध ज्यादातर आर्थिक और लोगों के बीच ( people-to-people) हैं. जबकि अमेरिका के साथ भारत का संबंध इससे कहीं अधिक व्यापक है. दोनों देशों के बीच रणनीति से लेकर रक्षा तक, अंतरिक्ष से लेकर प्रौद्योगिकी तक, आर्थिक से लेकर लोगों के बीच बहुत ही गहरे संबंध हैं. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है. अमेरिका ने भी अपनी प्रतिक्रिया बहुत संतुलित होकर दी है, कनाडा की तरह नहीं.
दोनों देश सीख चुके हैं सबक
अमेरिका के साथ भारत का संबंध राजनीतिक और आर्थिक रूप से भारत के हितों वाली साझेदारी पर आधारित है. ऐसे में भारत, अमेरिकी चिंताओं के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया नहीं अपना सकता है. जो भारत ने कनाडा के खिलाफ अपनाया है.
विशेषज्ञों की मानें तो जांच के नतीजे दोनों देशों के बीच संबंधों की दिशा तय करेंगे. पिछले कई अनुभवों से दोनों देशों ने कड़वे सबक सीखे हैं. देवयानी खोबरागड़े मामला एक ऐसा ही उदाहरण है जब दोनों देशों के बीच संबंधों में दिसंबर 2013 से मई 2014 तक यानी लगभग छह महीने तक गतिरोध बना रहा.
दरअसल, अमेरिका के एक ग्रैंड जूरी ने भारतीय राजनयिक देवयानी को औपचारिक रूप से आरोपित करते हुए अमेरिका छोड़ने के लिए कह दिया था. इससे लगभग महीने पहले ही देवयानी को अमेरिका में कथित वीजा धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. जिसके जवाब में भारत ने भी एक अमेरिकी राजनयिक को निष्कासित कर दिया था.