scorecardresearch
 

अफगानिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और अब नेपाल... चार साल में भारत के 4 पड़ोसी देशों में 'तख्तापलट'

काबुल पर तालिबान का कब्जा हो या फिर श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन में प्रदर्शनकारियों के पूल में नहाने की तस्वीरें, इन घटनाओं को कुछ ही साल बीते हैं. लेकिन देखते-देखते भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान से लेकर श्रीलंका, बांग्लादेश और अब नेपाल में सरकार सत्ता से बेदखल हो चुकी है. नेपाल के पीएम ओली ने पद से इस्तीफा दे दिया है और अब भी बड़े पैमाने पर Gen-Z प्रोटेस्ट जारी हैं.

Advertisement
X
भारत के चार पड़ोसी देशों में जनाक्रोश के आगे झुकी सरकार
भारत के चार पड़ोसी देशों में जनाक्रोश के आगे झुकी सरकार

भारत के पड़ोसी देश पिछले चार-पांच साल से अस्थिर बने हुए हैं. पहले अफगानिस्तान, श्रीलंका, फिर बांग्लादेश और अब नेपाल में सत्ता परिवर्तन के लिए देशव्यापी प्रदर्शन हो चुके हैं. नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ शुरू हुए Gen-Z प्रोटेस्ट के बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को पद से इस्तीफा देना पड़ा है. प्रदर्शनकारियों ने नेपाल की संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट पर कब्जा कर लिया है और कई मंत्रियों के घरों पर आगजनी की गई है. पीएम ओली के इस्तीफे के बाद भी लोगों का गुस्सा शांत नहीं हो रहा है. यहां तक कि राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल के निजी आवास पर भी प्रदर्शनकारियों ने कब्जा कर लिया गया है.

नेपाल में पीएम ओली ने छोड़ा पद

नेपाल में अब तक गृह, कृषि और स्वास्थ्य मंत्री समेत पांच मंत्रियों का इस्तीफा हो चुका है. साथ ही विपक्षी दलों के 20 से ज्यादा सांसद अपना सामूहिक इस्तीफा दे चुके हैं. ऐसे में विपक्षी दलों की मांग है कि संसद को भंग करके फिर से चुनाव कराए जाएं. नेपाल में सोशल मीडिया बैन, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के विरोध में सोमवार को शुरू हुए प्रदर्शन के 30 घंटे के भीतर ही प्रधानमंत्री को अपना पद छोड़ना पड़ा है. लेकिन ऐसे ही हालात कुछ साल पहले भारत के अन्य पड़ोसी देशों में भी पनपे थे, जब सत्ता पर आसीन लोगों को जनाक्रोश के सामने सरेंडर करना पड़ा था.

काबुल पर तालिबान का कब्जा

नेपाल जैसे हालात साल 2021 में अफगानिस्तान में भी पनपे थे, जब तालिबान ने काबुल की सत्ता पर कब्जा कर लिया था. अफगानिस्तान में अमेरिका समर्थित सरकार का पतन हो गया और तालिबान का शासन स्थापित हुआ. 2001 में अमेरिका के नेतृत्व में तालिबान को सत्ता से हटाया गया था और अशरफ गनी की सरकार बनी थी. लेकिन 20 साल के संघर्ष के बाद 2020 में अमेरिका-तालिबान समझौते के तहत विदेशी सेना की वापसी तय हुई. दूसरी तरफ तालिबान ने अपनी सैन्य ताकत बढ़ाई और अप्रैल 2021 आते-आते अफगानिस्तान में हमले तेज कर दिए.

Advertisement
Nepal protests
नेपाल में Gen-G क्रांति के बाद पीएम ओली ने दिया इस्तीफा (Photo: PTI)

अगस्त 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान के प्रमुख शहरों को कब्जे में ले लिया. इसके बाद 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने काबुल की तरफ कूच किया. जान बचाने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए और तालिबान ने राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया. अमेरिकी दूतावास से हेलीकॉप्टरों की मदद से लोगों को निकाला गया और इस दौरान काबुल एयरपोर्ट पर भगदड़ मच गई, जिसमें 170 से ज्यादा लोग मारे गए थे.

ये भी पढ़ें: Gen-Z क्रांति से नेपाल में तख्तापलट? दुबई भागने की फिराक में पीएम ओली, प्राइवेट प्लेन तैयार

अफगानिस्तान में सेना की कमजोरी, भ्रष्टाचार, अमेरिका सेना की वापसी विद्रोह की वजह बने. इसके बाद काबुल की बागडोर तालिबान के हाथों में आ गई और तालिबानी फरमान जारी होने शुरू हो गए. देश में महिलाओं के अधिकार सीमित हो गए और पाकिस्तान समर्थित तालिबान से आतंकवाद का खतरा भी बढ़ा. अफगानिस्तान फिलहाल आर्थिक संकट में डूबा है, लेकिन तालिबान का राज अब भी कायम है.

श्रीलंका में आर्थिक संकट

अफगानिस्तान में विद्रोह के एक साल बाद यानी साल 2022 तक श्रीलंका में आर्थिक संकट गंभीर हो गया. इसके विरोध में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन शुरू हो गए और धीरे-धीरे एक जनआंदोलन खड़ा हो गया. सड़कों पर आगजनी, राष्ट्रपति आवास, संसद सभी जगहों पर प्रदर्शनकारियों का कब्जा हो गया. यहां तक कि राष्ट्रपति भवन के पूल में प्रदर्शनकारियों के स्वीमिंग करते वीडियो भी सामने आए. राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को आधी रात में देश छोड़कर मालदीव भागना पड़ा. 

Advertisement

ये भी पढ़ें: राष्ट्रपति के घर पर हमला, प्रचंड का घर जलाया, सड़कें धुआं-धुआं... जलते हुए नेपाल के 7 Videos

राजपक्षे की सरकार पर 2019-2022 के विदेशों का कर्ज काफी बढ़ गया था और फिर कोरोना महामारी और पर्यटन उद्योग के ठप होने से अर्थव्यवस्था चरमरा गई. ब्रेड-रोटी जैसे रोजमर्रा के सामानों की कीमतें आसमान छूने लगीं. 2022 की शुरुआत में ईंधन और दवाओं की कमी हो गई और कालाबाजारी भी होने लगी. मार्च-अप्रैल के दौरान इसी वजह से लाखों लोग राजधानी कोलंबो की सड़कों पर उतरे और मई 2022 में प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद 9 जुलाई 2022 को राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे मालदीव भाग गए और सितंबर 2022 में उन्होंने पद से औपचारिक इस्तीफा दिया.

बांग्लादेश में गिरी हसीना सरकार

बांग्लादेश में पिछले साल यानी 2024 में छात्र आंदोलन की वजह से शेख हसीना सरकार गिर गई. बांग्लादेश में 2024 के छात्र आंदोलन को 'दूसरा स्वतंत्रता संग्राम' तक कहा गया. इसमें सेना की भूमिका अहम थी और इसी वजह से हसीना सरकार का तख्तापलट हुआ. शेख हसीना की अवामी लीग सरकार 2009 से सत्ता में थी, लेकिन भ्रष्टाचार, मानवाधिकार उल्लंघन और आरक्षण नीति पर असंतोष को लेकर छात्रों का गुस्सा फूट पड़ा. जुलाई-अगस्त में प्रदर्शन ज्यादा हिंसक हो गए और सरकार ने गोलीबारी के आदेश दे दिए. इस फायरिंग में 300 से ज्यादा लोगों की मौत हुई.

Advertisement

ये भी पढ़ें: नेपाल के डिप्टी पीएम बिष्णु प्रसाद को प्रदर्शनकारियों ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा, Video

पांच अगस्त 2024 को शेख हसीना को पीएम पद से इस्तीफा देकर भारत आना पड़ा. सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमान ने अंतरिम सरकार का ऐलान किया. नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का मुख्य सलाहकार बनाया गया, जो फिलहाल देश की बागडोर संभाल रहे हैं. आंदोलन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश के जनक और बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की मूर्ति तक तोड़ डाली. शेख हसीना के जाने के बाद अब तक बांग्लादेश में आम चुनाव नहीं हो पाए हैं और देश में अब भी अस्थिरता बनी हुई है.

Dhaka protest
ढाका में पिछले साल छात्रों का विरोध प्रदर्शन (File Photo: PTI)

PAK और मालदीव में बिगड़े हालात 

इसी तरह पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी लगातार राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है. पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को अविश्वास प्रस्ताव के ज़रिए सत्ता से हटाने के बाद शुरू हुआ आंदोलन अब भी जारी है. पाकिस्तान में लगातार इमरान समर्थकों की तरफ विरोध प्रदर्शन, रैलियां और जनसभाएं आयोजित की जा रही हैं. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे गुटे ने उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान और बलूचिस्तान में हमले तेज़ कर दिए हैं, अक्सर ड्रोन हमले किए जाते हैं. उधर, बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) जैसे अलगाववादी गुट भी पाकिस्तान की शहबाज सरकार के लिए ख़तरा बना हुआ है, जिसने बलूचिस्तान को आजाद मुल्क घोषित कर दिया है.

Advertisement

ये भी पढ़ें: कौन हैं बालेन शाह? जिन्हें सत्ता सौंपने की मांग कर रहे नेपाल के Gen-Z आंदोलनकारी

मालदीव में भी नवंबर 2023 में मोहम्मद मुइज़्ज़ू के राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद राजनीतिक माहौल बदल गया है. उन्होंने 'भारत विरोधी' रुख़ सहित राष्ट्रवादी वादों पर चुनाव प्रचार किया और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को दरकिनार कर दिया, जिन्होंने पीपुल्स नेशनल फ्रंट नाम से एक नई पार्टी बनाई. मुइज़्ज़ू की नीतियों, जिनमें चीन के साथ मजबूत संबंध भी शामिल हैं, ने भारत के साथ संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है. घरेलू स्तर पर, उनकी सरकार अपनी पिछली सरकार की तुलना में ज्यादा रूढ़िवादी है.

म्यांमार में दिखा सेना का क्रूर चेहरा

इसी तरह म्यांमार में भी लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सान सू की को सेना ने जबरन साल 2021 में सत्ता से बेदखल कर दिया था. सेना को अंदाजा भी नहीं था कि इस सैन्य तख्तापलट के खिलाफ जनता बड़ी तादाद में सड़कों पर उतर आएगी. लोकतंत्र समर्थक लाखों लोगों ने म्यांमार में प्रदर्शन किए तो जवाब में सेना ने जनसंहार शुरू कर दिया. विरोध करने वालों को गोलियों से भून दिया गया. इसी वजह से आम जनता ने भी सेना का मुकाबले करने के लिए हथियार उठा लिए और संघर्ष शुरू कर दिया. म्यांमार में आज कई ऐसे छोटे-बड़े गुट हैं, जो जंगलों में रहकर सेना के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं. इन विद्रोहियों को खत्म करने के लिए सेना देश के किसी भी हिस्से में कभी भी एयर स्ट्राइक कर देती है.

Advertisement

म्यांमार के आंतरिक संघर्ष से वहां अब गंभीर शरणार्थी संकट पैदा हो गया है. सैन्य तख्तापलट के बाद से, 65 हजार से ज्यादा शरणार्थी, जिनमें से ज्यादातर जातीय चिन समुदाय से हैं, पड़ोसी देश भारत भाग आए हैं. रॉयटर्स की मुताबिक मिजोरम में बड़ी तादाद में म्यांमार से आए लोग शरण लेने के लिए भटक रहे हैं. तख्तापलट के बाद म्यांमार में तीन हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई और करीब 1.7 करोड़ लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं. 

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement