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कृत्रिम बारिश

कृत्रिम बारिश

कृत्रिम बारिश

दुनिया भर में बढ़ते प्रदूषण, सूखे और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain) की तकनीक का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है. इसे आर्टिफिशियल रेनफॉल, प्लुवीकल्चर या वेधर मॉडिफिकेशन भी कहा जाता है. इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य बादलों में विशेष रसायन डालकर बारिश की संभावना को बढ़ाना होता है.

वैज्ञानिक बादलों की संरचना और तापमान को देखते हुए हवाई जहाज या रॉकेट के जरिए बादलों में कुछ तत्व फैलाते हैं, जैसे सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) और  नमक (सॉल्ट पाउडर). इन तत्वों की वजह से बादलों में नमी जमने लगती है और बारिश होने की संभावना बढ़ जाती है. हालांकि इस प्रक्रिया की सफलता को लेकर वैज्ञानिकों में अभी भी विवाद है, क्योंकि यह तय करना मुश्किल है कि यदि सीडिंग न की गई होती तो वर्षा कितनी होती. इस तकनीक का उपयोग- सूखे से राहत, सिंचाई व पेयजल उपलब्धता बढ़ाने, जलविद्युत उत्पादन के लिए पानी स्तर सुधारने और वायु प्रदूषण कम करने के लिए किया जाता है.

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण के मुकाबले एक नए वैज्ञानिक हथियार के तौर पर क्लाउड सीडिंग आधारित कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain) पर कदम उठाए जा रहे हैं. इस तकनीक के रिए बादलों में विशेष पदार्थों का छिड़काव कर वर्षा को प्रेरित करने का प्रयास किया जाता है, जिसका उद्देश्य वायु में तैरती धूल और सूक्ष्म कण (PM 2.5, PM 10) को नीचे लाना है.

 

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