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DLS Method का बखेड़ा... जब भारतीय इंजीनियर ने निकाला समाधान, क्रिकेट के सबसे विवादित नियम का पूरा इतिहास

क्रिकेट के सबसे विवादित नियमों में Duckworth–Lewis–Stern Method का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है. इस नियम की खामियों को दूर कर भारतीय इंजीनियर ने तगड़ा गणित ईजाद किया था. जानिए DLS Method के नाम से चर्चित ICC के नियम की पूरी कहानी...

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क्रिकेट के सबसे विवादित नियम की पूरी कहानी
क्रिकेट के सबसे विवादित नियम की पूरी कहानी

IPL 2023 का फाइनल... नरेंद्र मोदी स्टेडियम में चेन्नई और गुजरात के बीच मुकाबला... आखिरी दो गेंदों में CSK को जीत के लिए चाहिए 10 रन... क्रीज पर रवींद्र जडेजा और शिवम दुबे... जडेजा ने दोनों बॉल पर बाउंड्री मारकर चेन्नई को ऐतिहासिक जीत दिलाई.

अगर आपने रात में जगकर IPL के 16वें सीजन का फाइनल देखा होगा तो आपको ऊपर लिखी सारी बातें काफी लाइव लग रही होंगी. लेकिन एक और चीज है जो आपको याद होगी, जिसने फाइनल के मजे को थोड़ा किरकिरा भी किया, वह था इस मैच में यूज हुआ डकवर्थ-लुईस नियम. हम आपको डकवर्थ लुईस न‍ियम (DLS Method) की पूरी कहानी बताने जा रहे हैं. 

गुजरात टाइटंस ने 20 ओवरों में 4 विकेट गंवाकर चेन्नई सुपर किंग्स को 215 रनों का टारगेट दिया था. लेकिन अभी दूसरी पारी की 3 गेंदें ही डाली गई थीं कि बारिश ने खलल डाल दिया. लिहाजा DLS नियम के तहत संशोधित टारगेट 171 किया गया, जिसे CSK ने हासिल कर 5वीं बार IPL की ट्रॉफी अपने नाम कर ली.

चेन्नई की जीत के बाद से भले ही धोनी के फैंस जश्न में डूबे हों, लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जिसे लगता है कि अगर बारिश नहीं आई होती और DLS नियम नहीं लगा होता तो CSK के लिए GT को हरा पाना नाकों चने चबाने जैसा होता. ये कोई पहली बार नहीं है जब डकवर्थ लुईस नियम को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हों. जाहिर है आपके भी मन में ये सवाल उठता होगा कि ICC द्वारा स्वीकार्य यह नियम हर बार विवादों में क्यों आ जाता है और क्या इतने विवादों के बाद भी हमारे पास इसका कोई दूसरा उपाय नहीं?

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किसने खोज निकाला डकवर्थ-लुईस नियम का गणित?

बात पहले इतिहास से शुरू करते हैं. DLS Method एक गणितीय गणना (Methematical System) है जिसका इस्तेमाल उन सीमित ओवर के मैचों के टारगेट को संशोधित करने के लिए किया जाता है जिन्हें बारिश या अन्य किसी कारण की वजह से पूर्ण रूप से संपन्न कराना संभव न हो. इसे आम बोलचाल की भाषा में डकवर्थ-लुईस नियम कहते हैं, लेकिन इसका पूरा नाम डकवर्थ-लुईस-स्टर्न प्रणाली (Duckworth–Lewis–Stern Method) है.

इस नियम का विकास दो ब्रिटिश सांख्यिकीविदों (Statisticians) फ्रैंक डकवर्थ (Frank Duckworth) और टोनी लुईस (Tony Lewis) ने किया था. 1997 में इसे पहली बार सामने रखा गया और 1999 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (International Cricket Council) यानी आईसीसी (ICC) ने इसे आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया. बाद में प्रोफेसर स्टीवन स्टर्न के योगदान के बाद इसे डकवर्थ-लुईस-स्टर्न नियम कहा जाने लगा.

किसने खोज निकाला डकवर्थ-लुईस नियम का गणित?
फ्रैंक डकवर्थ और टोनी लुईस (Credit: GettyImages)

DLS Method से पहले क्या थे क्रिकेट के नियम?

डकवर्थ-लुईस पद्धति से पहले क्रिकेट में बारिश से प्रभावित मैचों के लिए एवरेज रन रेट मेथड (Average Run Rate Method) का प्रयोग किया जाता था. लेकिन इस नियम में कई झोल थे, जिसकी वजह से साल 1991 में इसकी जगह Most Productive Overs Method लाया गया. पहले नियम की तरह MPO Method भी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाया.

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इस बीच 1992 क्रिकेट वर्ल्ड कप के दौरान साउथ अफ्रीका और इंग्लैंड के बीच सेमी-फाइनल खेला जा रहा था और बारिश की वजह से मैच रोकना पड़ा. जब बारिश रुकी तो साउथ अफ्रीका को जीत के लिए 13 गेंदों पर 22 रन की जरूरत थी. लेकिन Most Productive Overs Method की वजह से साउथ अफ्रीका को जो संशोधित टारगेट मिला, उसे पूरा करना असंभव था. दरअसल साउथ अफ्रीका को लक्ष्य मिला था, 1 बॉल में  21 रन बनाने का. जाहिर है साउथ अफ्रीका मैच हार गई.

इसके बाद से ही एक ऐसे गणितीय समीकरण की तलाश की जाने लगी जिसमें संशोधित टारगेट कुछ इस तरीके से तय किया जाए, जिसमें मैच एकतरफा न हो. इसी क्रम में 1997 में जिम्बाब्वे और इंग्लैंड के बीच खेले जा रहे वनडे मुकाबले में D/L Method लागू किया गया. ये अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में D/L Method का पहला प्रयोग था.

DLS को लेकर भी कम नहीं है विवाद
1992 वर्ल्ड कप में साउथ अफ्रीका को 1 बॉल में 22 रन बनाने का संशोधित लक्ष्य मिला था (Credit: ICC)

DLS को लेकर भी कम नहीं है विवाद

1999 में जब ICC ने डकवर्थ-लुईस नियम को अपनाया था, तब शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि भविष्य में इस नियम को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाएगा. DLS Method में संशोधित टारगेट को तय करने का जो समीकरण है, वह दोनों टीमों के पास मौजूद रिसोर्स के आधार पर काम करता है. लेकिन इसके बावजूद ये सवाल उठाए जाते हैं कि DLS Method से ज्यादा फायदा दूसरी इनिंग में बैटिंग करने वाली टीम को होता है.

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DLS Method का विरोध करने वाले मानते हैं कि यह नियम इतना जटिल है कि कई बार प्लेयर इसे लेकर गलत गणना कर लेते हैं, जिसमें उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ता है. इस बात को दो उदाहरण से समझते हैं:

1. 2003 वर्ल्ड कप के दौरान साउथ अफ्रीका और श्रीलंका के बीच मैच खेला जा रहा था. साउथ अफ्रीका को इस मैच में 269 रनों का टारगेट मिला. मौसम बिगड़ रहा था और बारिश की संभावना थी. क्रीज पर शॉन पोलॉक (Shaun Pollock) और मार्क बाउचर (Mark Boucher) थे. लेकिन तभी शॉन रन आउट हो गए. उधर, मार्क बाउचर को कहा गया था कि अगर टीम ने 45 औवरों में 229 रन बना लिए तो D/L Method लागू होने पर भी जीत साउथ अफ्रीका की होगी. बाउचर ने 45 ओवरों में स्कोर 229 पर ला दिया. लेकिन वास्तव में साउथ अफ्रीका को डकवर्थ-लुईस नियम से जीत के लिए 229 नहीं, बल्कि 230 रनों की जरूरत थी. बारिश भी हुई और D/L Method भी लागू हुआ. मैच टाई हो गया और साउथ अफ्रीका को वर्ल्ड कप से बाहर होना पड़ा.

2. 2009 में इंग्लैंड बनाम वेस्टइंडीज के वनडे मैच में West Indies के कोच जॉन डाइसन (John Dyson) ने अपनी टीम को कम रोशनी की वजह से ये सोचकर वापस बुला लिया कि D/L Method के तहत उनकी टीम जीत जाएगी. लेकिन मैच रेफरी ने नतीजा वेस्टइंडीज के खिलाफ सुनाया और इंग्लैंड को 1 रन से जीत मिली.

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DLS को लेकर भी कम नहीं है विवाद
2003 वर्ल्ड कप में साउथ अफ्रीका को DLS की वजह से बाहर होना पड़ा था (Credit: Reuters)

भारत के लिए खट्टा-मीठा रहा D/L Method का अनुभव

भारतीय क्रिकेट टीम के लिए D/L Method या DLS Method का अनुभव थोड़ा अच्छा और थोड़ा बुरा रहा. आपको 2006 का भारत-पाकिस्तान वनडे मैच याद होगा जब भारतीय टीम पहले बल्लेबाजी करते हुए 328 रनों पर ऑल आउट हो गई थी. जवाबी पारी में पाकिस्तान ने 47 ओवरों में 7 विकेट खोकर 311 रन बना लिए थे कि तभी मैच को रोकना पड़ा. इसके बाद डकवर्थ-लुईस नियम के तहत पाकिस्तान को 7 रनों से विजयी घोषित कर दिया गया. 

2008 में भारत-इंग्लैंड के चौथे वनडे में बारिश के खलल की वजह से मैच को 22 ओवरों का कर दिया गया. भारत ने इस मैच में 4 विकेट खोकर 166 रन बनाए. इंग्लैंड की टीम को संशोधित लक्ष्य 198 रनों का दिया गया, लेकिन वह 178 रन ही बना पाई और भारत ने 19 रनों से जीत दर्ज की.

वहीं, 2011 में भारत और साउथ अफ्रीका के 5वें वनडे मुकाबले में बारिश के कारण मैच 46 ओवरों का हो गया था, जिसमें साउथ अफ्रीका ने 9 विकेट खोकर 250 रन बनाए. भारत को संशोधित टारगेट 268 रनों का मिला, लेकिन भारत यह मैच 33 रनों से हार गया.

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भारत के लिए खट्टा-मीठा रहा D/L Method का अनुभव
2006 के भारत-पाक वनडे मैच में DLS Method की वजह से पाकिस्तान 7 रनों से जीता था (Credit: AFP)

भारतीय इंजीनियर ने निकाला DLS Method का तोड़

डकवर्थ-लुईस-स्टर्न नियम की खामियों से परेशान केरल के सिविल इंजीनियर वी जयदेवन (V Jayadevan) ने 2012 में एक नए गणितीय समीकरण का विकास किया, जिसे VJD Method के नाम से जाना जाता है. इस नियम का भारत के घरेलू क्रिकेट में DLS Method के अल्टरनेटिव के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.

कई जानकार मानते हैं कि VJD Method डकवर्थ-लुईस-स्टर्न नियम से काफी बेहतर और आसानी से समझे जाने योग्य है. हालांकि न तो इसे अभी तक ICC की मान्यता मिली है और ही IPL में BCCI ने पूर्णतया लागू करने की कोई इच्छा जताई है.

देखा जाए तो DLS Method को लेकर जहां एक ओर विरोध के सुर हैं, तो वहीं भारत के पास VJD Method के तौर पर तगड़ा तोड़ भी है. भले ही ICC ने इस ओर खास ध्यान नहीं दिया हो, लेकिन BCCI चाहे तो ऐसा यकीनन हो सकता है. हालांकि यहां रेखांकित करना जरूरी है कि कोई भी नियम अपने आप में आदर्श नहीं हो सकता. वैसे भी क्रिकेट को अनिश्चितताओं का खेल माना जाता है. इसलिए यहां भले ही कोई गणितीय समीकरण लगाकर टारगेट को संशोधित कर दिया जाए, मगर क्रिकेट फैंस के लिए असली मजा पूरे मैच के खेले जाने में ही है.

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