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'कांग्रेस मुस्लिम है, मुस्लिम ही कांग्रेस', रेवंत रेड्डी का तुष्टिकरण कार्ड बिहार में भारी न पड़ जाए

कांग्रेस के लगातार बढ़ते मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते ही बीजेपी मजबूत हुई. अब भी कांग्रेस नेता लगातार ऐसी बातें कर रहे हैं जिससे बीजेपी को और मजबूती ही मिलने वाली है. रेवंत रेड्डी ने जो बयान दिया है वह तो बिल्कुल ऐसा है जैसे उन्होंने पार्टी को खत्म करने की सुपारी ले ली हो.

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BJP Telangana unit has filed a complaint with the Chief Electoral Officer. (File Photo)
BJP Telangana unit has filed a complaint with the Chief Electoral Officer. (File Photo)

2014 में कांग्रेस की हार के कारणों को जानने के लिए पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी को समीक्षा करने की जिम्मेदारी दी गई थी. एंटनी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कांग्रेस की इमेज जनता के बीच मुस्लिम परस्त की हो गई है. पार्टी को इस छवि से निजात पाना होगा. पर दुर्भाग्य से या जानबूझकर कांग्रेस ने अपनी इस छवि को बदलने की बजाए और लगातार और मजबूर कर रही है. हार पर हार मिल रही है पर एंटनी की रिपोर्ट को जैसे डस्टबिन में डाल दिया गया. 

अब तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के बयान को ही देखिए. उन्होंने पार्टी को और मजबूत करने के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण वाला जो बयान दिया है वह वैसा ही जैसा कि उन्होंने पार्टी के भट्ठा बैठाने की सुपारी ले ली हो. रेड्डी ने तेलंगाना में मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहा है कि कांग्रेस मुस्लिम है और मुस्लिम ही कांग्रेस. जाहिर है कि ऐसा बयान मुस्लिम तुष्टिकरण को ध्यान में रखकर ही दिया गया है.

रेड्डी ने यह बयान हालांकि तेलंगाना में दिया है लेकिन इसका संबंध बिहार में होने वाले चुनावों से अलग करके देखा नहीं जा सकता . क्योंकि तेलंगाना में अभी चुनाव बहुत दूर है. दूसरी तरफ तेलंगाना में रेड्डी अभी मजबूत हैं. किसी भी नेता को इस तरह के बयान देने की जरूरत तब पड़ती है जब वह कमजोर पड़ रहा होता है. पार्टी में पूछ होनी कम जो जाती है. दरअसल, यह बयान उस राजनीतिक भूगोल को साधने की कोशिश है, जहां मुस्लिम मतदाता अब भी निर्णायक भूमिका में हैं. और वह इलाका है बिहार का सीमांचल.

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सीमांचल की 24 विधानसभा सीटों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 35 से 70 प्रतिशत तक है. यही वह जमीन है, जहां कांग्रेस का पारंपरिक आधार अब भी कुछ हद तक जीवित है. ऐसे में रेवंत रेड्डी का यह कथन कांग्रेस की राजनीतिक पुनर्प्राप्ति रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है.

सीमांचल से ही बची है कांग्रेस की उम्मीद 

बिहार में कांग्रेस की स्थिति पिछले एक दशक से लगातार कमजोर रही है. राज्य की राजनीति अब दो मुख्य ध्रुवों एनडीए और महागठबंधन के इर्द-गिर्द घूमती है. महागठबंधन में आरजेडी प्रमुख ताकत है और कांग्रेस उसकी जूनियर पार्टनर के रूप में रह गई है. 2015 में भी और 2020 में भी कांग्रेस सीमांचल को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में लगभग हाशिए पर रही. यही कारण है कि आज कांग्रेस के लिए सीमांचल ही उसकी सबसे मजबूत थाती बनकर उभरी है.

सीमांचल यानी अररिया, कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया जिले. यह क्षेत्र न सिर्फ भौगोलिक रूप से अलग हैं बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी विशिष्ट हैं. यहां मुस्लिम आबादी 35 से 70 प्रतिशत तक है और यह वर्ग पारंपरिक रूप से कांग्रेस का वोटर रहा है. हालांकि 1990 के बाद लालू प्रसाद यादव और फिर राजद के उभार से यह वोट बैंक खिसक गया, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में आरजेडी की मुस्लिम-यादव राजनीति से कुछ हद तक मुस्लिम वोटरों में कांग्रेस के प्रति पुरानी सहानुभूति वापस आने लगी है.

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तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी का बयान कांग्रेस को सीमांचल के मुस्लिम वोटरों में यह संदेश देने में मदद करेगा कि पार्टी अब भी उनकी पहचान और सुरक्षा की सबसे मजबूत गारंटी है.

वास्तविकता यह है कि सीमांचल ही वह इलाका है, जहां कांग्रेस के पास न सिर्फ एक पारंपरिक वोट बेस है, बल्कि कुछ सक्रिय स्थानीय नेता भी हैं. इस क्षेत्र से कांग्रेस को अक्सर 2 से 4 सीटें मिल ही जाती हैं. जो उसके कुल बिहार स्कोर का बड़ा हिस्सा बनता है.

एआईएमआईएम से निपटना कांग्रेस के लिए है बड़ी चुनौती, रेड्डी का बयान काम आएगा 

कांग्रेस की सीमांचल में सबसे बड़ी चुनौती भाजपा या जदयू नहीं, बल्कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) है. 2020 के विधानसभा चुनावों में ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल की पांच सीटें जीतकर कांग्रेस और आरजेडी दोनों को चौंका दिया था. यह कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध थी.

एआईएमआईएम ने खुद को मुस्लिमों की असली आवाज़ बताकर सीमांचल में प्रवेश किया. पार्टी ने कहा कि कांग्रेस और आरजेडी मुस्लिमों के वोट तो लेते हैं, लेकिन उन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व उनकी जनसंख्या के अनुपात में नहीं मिलता. इसी नैरेटिव ने कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी की. हालांकि लोकसभा चुनावों में मिली कांग्रेस को सफलता से पार्टी उत्साहित है. फिर भी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव अलग फ्लेवर वाला होता है.

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रेवंत रेड्डी ने मुसलमानों के बारे में जो बयान दिया है वो एक तरह से एआईएमआईएम को चैलेंज है. क्योंकि पार्टी के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी कभी यह नहीं कह पाए हैं कि एआईएमआईएम मुस्लिम है और मुस्लिम एआईएमआईएम है. कल्पना करिए कि जो बयान रेवंत रेड्डी ने दी है वही बात अगर ओवैसी या यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कही होती तो कितना बड़ा बवाल होता.पर रेड्डी की बात पर कोई चर्चा नहीं है.

रेवंत रेड्डी का बयान हालांकि इस दिशा में कांग्रेस के लिए एक सेंट्रल काउंटर नैरेटिव बना सकता है. इस बयान से पार्टी यह संकेत देती है कि हमारे साथ रहो, क्योंकि हमने तुम्हारा साथ इतिहास में हमेशा दिया है. सीमांचल की राजनीति में ओवैसी की पार्टी को रोकना कांग्रेस के लिए सिर्फ चुनावी चुनौती नहीं,बल्कि अस्तित्व का सवाल है. 

इस बयान से कांग्रेस को सीमांचल में कितने फायदे की उम्मीद

बिहार में करीब 18 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिम वोटर लगभग 50 से 70 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इसके अलावा भी दर्जनों सीटों पर मुस्लिम वोटर्स की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. 

पर कांग्रेस की चिंता मुस्लिम वोटों को लेकर बिल्कुल भी नहीं है.क्योंकि उसे पता है कि मुसलमानों का वोट तो महागठबंधन को ही जाएगा. असल चिंता सीमांचल से है. क्योंकि यहां ओवैसी की पार्टी बहुत मजबूत है. सीमांचल में इस बार कांग्रेस 12 सीट, आरजेडी 9 सीट, वीआईपी 2 सीट और सीपीआईएमएल एक सीट पर लड़ रही है.इस तरह सीधे-सीधे कहें तो कांग्रेस को सीमांचल की इन 24 सीटों की चिंता है. हालांकि सीमांचल में ओवैसी की पार्टी केवल 15 सीट पर ही अपनी क़िस्मत आज़मा रही है.

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एनडीए की बात करें तो बीजेपी 11 सीट, जेडीयू 10 सीट और एलजेपी (आर) तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है. बीते चुनाव में सीमांचल की 24 विधानसभा सीटों में 12 एनडीए (8 बीजेपी, 4 जेडीयू), 7 महागठबंधन (कांग्रेस 5, आरजेडी और सीपीआईएमएल 1-1) और एआईएमआईएम ने 5 सीट पर कब्ज़ा जमाया था.

बीबीसी हिंदी ने माइनॉरिटी कमिशन ऑफ़ बिहार के  आधार पर लिखा है कि सीमांचल के किशनगंज में 67% मुस्लिम, कटिहार में 42%, अररिया में 41% और पूर्णिया में 37% मुस्लिम आबादी है.जाहिर है कि कांग्रेस को किसी भी तरीके से यहां अपनी इज्जत बचानी है. 

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