ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में बहस का एक दौर पूरा हो चुका है. लोकसभा के बाद, मान कर चलना चाहिये कि राज्यसभा में भी उसी मोड़ पर बहस की पूर्णाहूति होगी.
लोकसभा की बहस में, बारी बारी हर पक्ष की बात सुनी जा चुकी है. जिसे सवाल पूछना था, पूछ लिया. जिसे जवाब देना था, दे दिया - सवाल का जवाब मिला या नहीं, ये बहस का अलग मुद्दा है.
बहस तो सवाल जवाब के लिए ही होती है. जैसे सबको सवाल पूछने का हक है, वैसे अपने हिसाब से सबको जवाब देने का भी अधिकार है - और बहस जब राजनीतिक हो तो सवाल और जवाब दोनों के दायरे भी बदल जाते हैं.
कई बार सवाल का जवाब भी नया सवाल ही होता है. सवाल के जवाब में नया सवाल जवाब देने वाले के लिए भी आसान होता है - क्योंकि सवाल पर सवाल खड़ा कर देने के मुकाबले जवाब देना ज्यादा ही मुश्किल होता है.
ऑपरेशन सिंदूर पर भी, पुरानी बहसों की ही तरह, ऐसे ही सवाल जवाब देखने को मिले हैं - ऐसे में अब सवाल यही रह जाता है कि सवाल-जवाब से किसके हिस्से में क्या आया - और मुद्दा ऐसा है कि बात सिर्फ विपक्ष और सत्ता पक्ष की ही नहीं है, सवाल ये भी है कि देश की जनता को संसद की बहस से क्या मिला?
कांग्रेस और विपक्ष को क्या मिला?
पहलगाम हमले में खुफिया चूक की बात केंद्र सरकार ने सर्वदलीय बैठक में ही मान ली थी. कांग्रेस को ऑपरेशन सिंदूर की कामयाबी के दौरान सीजफायर पर आपत्ति थी, सवाल ये भी था कि PoK क्यों नहीं वापस लिया गया. केंद्र की बीजेपी सरकार ने स्पेशल सेशन नहीं बुलाया, लेकिन संसद में चर्चा कराने को तैयार जरूर हुई, और चर्चा कराई भी.
संसद में हुई बहस पर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की प्रतिक्रिया थी, सरकार भारत-पाकिस्तान संघर्ष में चीन की भूमिका पर बात करने से बचती रही है… कभी साफ तौर पर नहीं कहा कि ट्रंप झूठ बोल रहे हैं… अपने पूरे भाषण में प्रधानमंत्री ने एक बार भी चीन का जिक्र नहीं किया... पूरा देश जानता है कि चीन ने पाकिस्तान की हर तरह से मदद की, लेकिन प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ने कहीं भी चीन का नाम नहीं लिया.
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल के भी निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही होते हैं, हम साफ तौर पर पूछ रहे हैं कि ट्रंप का दावा झूठा है या नहीं? वो सच बोल रहे हैं या नहीं? जब विपक्ष द्वारा असली सवाल पूछे जाते हैं, तो वो पाकिस्तान की कहानी के पीछे छिप जाते हैं… लोग ये जानते हैं… हम पाकिस्तान के खिलाफ लड़ रहे लोग हैं, हम भारत के लिए हैं.
और, टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी की भी कांग्रेस जैसी ही राय है और निशाने पर मोदी ही होते हैं, हमने जो सवाल उठाया था, उसका कोई जवाब नहीं दिया गया… हमने पहले ही कहा है, हमें बस दो सवालों के जवाब चाहिए… 26 लोग क्यों मारे गए? जब राष्ट्रपति ट्रंप श्रेय लेने की कोशिश कर रहे थे, तो उन्होंने उन पर आरोप क्यों नहीं लगाए?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सवालों का जवाब दिया है, अपनी स्टाइल में. अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस से हुई बातचीत के बारे में भी मोदी ने बताया है. ये भी बताया है कि वो तीन बार फोन कर चुके थे, लेकिन मीटिंग की व्यस्तता के कारण, एक घंटे बाद कॉल-बैक किया और बात हुई. प्रधानमंत्री मोदी का कहना है, मैंने उन्हें फोन किया और बताया कि आपका तीन-चार बार फोन आया था… उन्होंने मुझसे कहा, पाकिस्तान बड़ा हमला करने वाला है... मेरा जवाब था, अगर पाकिस्तान का ये इरादा है तो उसे बहुत महंगा पड़ेगा और हम उससे भी बड़ा हमला करेंगे और उसका जवाब देंगे.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मध्यस्थता के दावों को लेकर राहुल गांधी के सवाल पर मोदी का जवाब है, ‘दुनिया के किसी भी नेता ने भारत को ऑपरेशन रोकने के लिए नहीं कहा है.’
ये जवाब भी बिल्कुल वैसा ही है जैसा पांच साल पहले मोदी ने चीन के मुद्दे पर दिया था. जून, 2020 में सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ‘न वहां कोई हमारी सीमा में घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है… लद्दाख में हमारे 20 जांबाज शहीद हुए, लेकिन जिन्होंने भारत माता की तरफ आंख उठाकर देखा था, उन्हें वे सबक सिखाकर गए.
राहुल गांधी का सवाल था, ट्रंप ने 29 बार सीजफायर कराने का श्रेय लिया है… अगर वो झूठ बोल रहे हैं… अगर प्रधानमंत्री मोदी में इंदिरा गांधी का 50 फीसदी भी साहस है, तो वो कहें कि ऐसा नहीं था… अगर पीएम में दम है, तो कहें कि ट्रंप झूठ बोल रहे हैं.
नई बात क्या है, इसमें? अगर ऑपरेशन सिंदूर के शुरू होने से लेकर अब तक के सेना के अधिकारियों, विदेश सचिव, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री की बातों पर गौर करें, तो नया तो कुछ मिलता नहीं.
हां, ये जरूर है कि अब ये सब संसद में ऑन-रिकॉर्ड है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुंह से सुना गया है.
लेकिन क्या राहुल गांधी, कांग्रेस और बाकी विपक्ष को इससे कुछ ठोस हासिल हुआ है?
बहस के दौरान जितना हंगामा और भाषणों का विरोध हुआ, अक्सर उससे कहीं ज्यादा ही विरोध देखने को मिला है. बहिष्कार तक हो जाता है.
कांग्रेस के हिसाब से देखें तो मोदी और अमित शाह ने एक बार फिर विपक्ष को कठघरे में खड़ा कर दिया है. पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के अक्साई चिन जैसे फैसलों से लेकर इंदिरा गांधी के करतारपुर साहिब तक इंदिरा गांधी सरकार के फैसले गिना डाले.
प्रधानमंत्री मोदी ने पूछ डाला, 'किसकी सरकार ने PoK को वापस लेने का मौका छोड़ दिया… अक्साई चिन को बंजर जमीन करार देकर किसने चीन को सौंप दिया? 1971 की जंग के बाद पाकिस्तान के 93 हजार फौजी हमारे पास बंदी थे, और उसका हजारों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र हमारी सेना के कब्जे में था… हम आसानी से पीओके वापस ले सकते थे, लेकिन मौका गंवा दिया गया. PoK छोड़िए, ये करतारपुर साहिब को वापस ले सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ये थी कांग्रेस के सरकारों की दूरदृष्टि और डिप्लोमेसी.
न बहस होती, न ये सब फिर से कांग्रेस को सुनने को मिलता - तो क्या माना जाए, विपक्ष एकजुट होकर सरकार को घेरने में चूक गया या बीजेपी ने सत्ता पक्ष में होने का फायदा उठा लिया है?
केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी को क्या मिला?
जैसे राहुल गांधी और विपक्षी नेता मोदी के भाषण में किसी सवाल का जवाब नहीं मिलने का आरोप लगा रहे हैं, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू को मोदी के भाषण में वो सब कुछ मिला हुआ लगता है, जो सत्ता पक्ष को चाहिये. कहते हैं, प्रधानमंत्री ने हर पहलू को स्पष्ट रूप से समझाया, और सरकार का रुख बहुत ही स्पष्ट तरीके से व्यक्त किया… अगर प्रधानमंत्री के भाषण के बाद भी उनके मन में कोई सवाल है, तो मैं कुछ नहीं कह सकता... मुझे उन पर केवल दया आ सकती है. कांग्रेस द्वारा स्थापित कहानी और पाकिस्तान में जो चल रहा है, वो बहुत हद तक एक जैसे हैं.
मोदी, शाह और बीजेपी के लिए फायदे की बात है कि सरकार को एक बार फिर से अपनी बात कहने का मिला. मौका भी देश के सबसे बड़े प्लेटफॉर्म पर मिला. सत्ता पक्ष को इसी बहाने एक बार फिर से विपक्ष को घेरने का मौका मिला - और मौके का भरपूर फायदा उठाया गया.
शशि थरूर और मनीष तिवारी का मौन व्रत भी सरकार के लिए फायदे का ही सौदा रहा - और कांग्रेस को टार्गेट करने का बीजेपी को एक और बहाना भी मिला.
अब बहस की बातें आने वाले बिहार चुनाव, और उसके बाद के विधानसभा चुनावों में भी अलग अलग तरीके से सुनने को मिलेंगी ही - और बवाल भी मचेगा.
देश को क्या मिला?
देश की बात करें तो ऑपरेशन सिंदूर से जो मिलना था, पहले ही मिल चुका था. देश ने सभी पक्ष की बातें सुनी ही थीं, असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता का भी नया अवतार देखने को मिला.
कांग्रेस नेताओं शशि थरूर और मनीष तिवारी के मन की बातें भी सुनी और समझी ही गईं - बहस में मौन भी कई बार बहुत कुछ कह देता है.
देश की तरफ से विपक्षी खेमे के समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी सवाल के जवाब मांगे थे, भाजपा को कम से कम यह तो बताना चाहिए कि 2014 से आज तक भारत का क्षेत्रफल बढ़ा है या घटा है?
अखिलेश यादव की पार्टी के संभल से सांसद जिया उर रहमान बर्क ने भी विपक्ष की पीड़ा ही शेयर की, ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा हुई, लेकिन हमें जवाब नहीं मिले.
देश भी ये सारी बातें पहले ही सुन चुका था. एक बार और सुन लिया. संसद में बहस की बातें सुन ली - ऑपरेशन सिंदूर को छोड़ दें, तो बातें तो बस वही सब थीं. वही पुरानी बातें, जो बार बार दोहराई जाती हैं. ये सिलसिला चलता ही रहेगा. जनता का मन बदला तो बैठने की व्यवस्था बदल जाएगी. सीटों पर बैठने वाले भी बदल जाएंगे - लेकिन क्या कभी बातें भी बदल पाएंगी?