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MoTN सर्वे: यूपी में सपा-कांग्रेस को साथ आना ही होगा, वरना BSP जैसी दुर्गति की आशंका

MoTN सर्वे से संकेत मिलता है कि उत्तर प्रदेश में मायावती की पार्टी BSP एक बार फिर 2014 वाली स्थिति की तरफ बढ़ रही है - और आगे की समझाइश ये है कि अगर अखिलेश यादव और राहुल गांधी को आपसी साथ पसंद नहीं आया तो बाद में पछताने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा.

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अखिलेश यादव और राहुल गांधी को यूपी में आपसी साथ पसंद करने के अलावा कोई उपाय नहीं बचा है
अखिलेश यादव और राहुल गांधी को यूपी में आपसी साथ पसंद करने के अलावा कोई उपाय नहीं बचा है

MoTN सर्वे के नतीजे ऐसे वक्त आये हैं जब उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा से ज्यादा चर्चे आरएलडी नेता जयंत चौधरी के पाला बदलने को लेकर हो रही है.

पक्का तो अभी कुछ भी नहीं है, लेकिन कभी भी कुछ भी हो सकता है. चार दिन बाद 12 फरवरी को चौधरी अजीत सिंह का बर्थडे है, जो अपने जमाने के बड़े किसान नेता चौधरी चरण सिंह के बेटे हैं - और अब उनके पोते जयंत चौधरी पर खानदानी राजनीतिक विरासत बचाने की चुनौती है.

कभी परिवारवाद की राजनीति को लेकर हमलावर रही बीजेपी 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों के वक्त से जयंत चौधरी पर मेहरबान है - और माना जा रहा है कि अखिलेश यादव और डिंपल यादव की सलाहियत से ज्यादा जयंत चौधरी, अपना दल नेता अनुप्रिया पटेल के एनडीए में स्वागत वाले बयान को ध्यान से सुन रहे हैं. 

भारत जोड़ो न्याय यात्रा लेकर राहुल गांधी 16 फरवरी को यूपी में दाखिल होने जा रहे हैं, और उनका हालिया ट्रैक रिकॉर्ड एक ही लाइन बार बार दोहरा रहा है - ‘जहं जहं पांव पड़े संतन के, तहं तहं…’

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राहुल गांधी के पश्चिम बंगाल पहुंचने से पहले ममता बनर्जी, बिहार पहुंचने से पहले नीतीश कुमार से मिले झटके के बाद INDIA ब्लॉक को न्याय यात्रा के यूपी में दाखिल होने के ठीक पहले लग सकता है.

ऐसे में जब मौजूदा हालात से आगे की संभावनाएं भी अनुकूल दिखाई न दे, पहले से ही सावधानी बरतना जरूरी हो जाता है. अच्छी बात ये है कि अखिलेश यादव ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का भेजा न्याय यात्रा का न्योता स्वीकार कर लिया है.

उत्तर प्रदेश को लेकर MoTN सर्वे की भविष्यवाणी

कोई बेहतर स्थिति की उम्मीद तो समाजवादी पार्टी के लिए भी नहीं लग रही है, कांग्रेस के लिए भी MoTN सर्वे की भविष्यवाणी थोड़ी राहत भरी ही है, लेकिन उत्तर प्रदेश से सबसे बुरी खबर बहुजन समाज पार्टी के लिए ही आ रही है. 

एक बार फिर मायावती कोे निराश होना पड़ सकता है. 2014 की तरह बीएसपी के अकाउंट में जीरो बैलेंस देखने को मिल सकता है - और वोट शेयर भी बीते पांच साल में आधे से भी नीचे पहुंच चुका है. 

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सर्वे के मुताबिक, 2024 के लोक सभा चुनाव में मायावती को सीटें तो मिलने से रहीं, वोट शेयर भी भारी गिरावट के साथ 8.4 फीसदी पर पहुंच सकता है - ध्यान रहे, 2019 में बीएसपी का वोट शेयर 19.43 दर्ज किया गया था.

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2019 में मायावती को सपा-बसपा गठबंधन का पूरा फायदा मिला था, और BSP एक झटके में 10 लोक सभा सीटें जीतने में सफल रही, लेकिन समाजवादी पार्टी को बिलकुल भी फायदा नहीं हुआ.

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए तो अफसोस की बात ये रही कि डिंपल यादव भी चुनाव हार गईं, और मैनपुरी उपचुनाव जीतने के बाद ही संसद पहुंच सकीं. 

सर्वे की मानें तो बीजेपी 2019 के वोट शेयर 49.43 में सुधार करते हुए 52.1 फीसदी वोट शेयर के साथ अकेले दम पर 70 सीटें जीत सकती है, और सहयोगी अपना दल को भी दो संसदीय सीटें मिलने जा रही हैं. 2019 में बीजेपी 62 सीट ही जीत सकी थी, जबकि 2014 में उसके हिस्से में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित यूपी से 71 सांसद आये थे.

MoTN सर्वे के हिसाब से समाजवादी पार्टी को पिछले दो चुनावों के मुकाबले इस बार दो सीटें ज्यादा मिल सकती हैं - 7 लोक सभा सीट. 2014 और 2019 में समाजवादी पार्टी को 5-5 सीटें ही मिली थीं.

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2014 में अमेठी और रायबरेली की दोनों सीटें अपने पास रखने में सफल रही कांग्रेस, 2019 में सिर्फ सोनिया गांधी की रायबरेली सीट ही बचा सकी, क्योंकि राहुल गांधी को बीजेपी की स्मृति ईरानी ने अपने दूसरे प्रयास में शिकस्त दे डाली थी. राहुल गांधी अपनी दूसरी सीट केरल की वायनाड से संसद पहुंच पाये. 

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सपा और कांग्रेस दोनों की मजबूरी बना चुनावी गठबंधन 

अभी की बात करें तो अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, राहुल गांधी की कांग्रेस और जयंत चौधरी की आरएलडी का चुनावी गठबंधन औपचारिक तौर पर टूटा नहीं है. 

अखिलेश यादव अपनी तरफ से जयंत चौधरी के साथ साथ राहुल गांधी के हिस्से में 11 सीटें छोड़ने की बात कर चुके हैं, लेकिन यूपी कांग्रेस अध्यक्ष का कहना है कि ये कोई फाइनल मामला नहीं है.

सीटों को लेकर जयंत चौधरी, अखिलेश यादव से अगर नाराज हैं तो बीजेपी से भी कोई बहुत खुश नहीं हैं. जयंत चौधरी के लोग बताते हैं कि बीजेपी गठबंधन सहयोगियों के साथ जैसा व्यवहार करती है, आरएलडी नेताओं को वो बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा है.

अच्छा लगना, और बुरा लगना अपनी जगह है, लेकिन सत्ता की राजनीति में तो चुनाव जीत कर अपने पास नंबर बनाये रखना ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. ये नंबर ही तो है, जो उद्धव ठाकरे की तरह शरद पवार को भी ले डूबा है. 

जयंत चौधरी के अखिलेश यादव की जगह प्रधानमंत्री मोदीा की बीजेपी के साथ जाने के पीछे एक ही वजह है, और वो है जीत की गारंटी. 

अखिलेश यादव के साथ रह कर जयंत चौधरी मनमाफिक राजनीति तो कर सकते हैं, चुनावों में राजनीतिक विरोधी बीजेपी को अच्छी टक्कर भी दे सकते हैं - लेकिन लगता नहीं कि अपने बूते या अखिलेश यादव के साथ मिल कर भी एक भी सीट जीत पाएंगे.

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और जबकि जयंत चौधरी का नीतीश कुमार वाला रास्ता अख्तियार करना पक्का लग रहा है, अखिलेश यादव को भी अपने को बड़ा क्षत्रप होने का गुरूर थोड़ा कम करके कांग्रेस को भी बर्दाश्त करने को तैयार हो जाना चाहिये. 

बिलकुल वैसे ही राहुल गांधी को भी एक बात गांठ बांध कर मन में बिठा लेना चाहिये कि क्षेत्रीय दलों के पास विचारधारा का अभाव भले हो, लेकिन उनकी मदद के बगैर पूरे देश में कांग्रेस का कल्याण नहीं होने वाला है. 

MoTN सर्वे के मुताबिक कांग्रेस को जो एक सीट मिलने की संभावना बन रही है, वो जिद में गंवा देने के बजाय समझदारी से काम लेना चाहिये - और अखिलेश यादव को भी कोशिश यही करनी चाहिये कि कांग्रेस के साथ मिल कर 7 सीटें जीतने का प्रयास करना चाहिये. 10 साल में दो सीटों का इजाफा मौजूदा हालात में कम नहीं होता. 

एक बात और राहुल गांधी के न्याय यात्रा के साथ यूपी में दाखिल होने पर अखिलेश यादव ने अमेठी या रायबरेली में शामिल होने की बात कही है. अगर अखिलेश यादव ‘या’ की जगह ‘और’ में यकीन रखें तो नतीजे बेहतर हो सकते हैं. अमेठी और रायबरेली दोनों के लिए साथ जाना ही अच्छा रहेगा. हो सकता है, यूपी को ये साथ पंसद भी आये.

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