राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने बुधवार शाम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 7 लोक कल्याण मार्ग स्थित आवास पर बैठक की और सर्वसम्मति से उन्हें गठबंधन का नेता चुना. 15 दलों के 21 नेताओं ने बैठक में शिरकत की और इस दौरान सभी ने प्रधानमंत्री को उनके नेतृत्व में 2024 के चुनावों में एनडीए की जीत के लिए बधाई दी और विकसित भारत के उनके विजन को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया.
भाजपा ने लोकसभा चुनाव में 240 सीटें हासिल की जो बहुमत के 272 के आंकड़े से 32 कम है. हालांकि एनडीए की संख्या 293 है जो बहुमत से 21 अधिक है. हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गठबंधन सरकार के साथ यह एक तरह का पहला अनुभव होगा. गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनके तीन कार्यकाल के दौरान उन्हें पूर्ण बहुमत मिला था और प्रधानमंत्री के रूप में भले ही उन्होंने एनडीए की सरकार चलाई लेकिन दोनों कार्यकाल के दौरान बीजेपी को अपने दम पर भी बहुमत मिला था.
क्या कहते हैं आलोचक
उनके आलोचकों का तर्क है कि पूर्ण बहुमत के साथ प्रधानमंत्री मोदी एक खास तरह की कार्यशैली के आदी हो गए हैं. उनका तर्क है कि पिछले 10 सालों में उनके कैबिनेट सहयोगी प्रधानमंत्री के रबर स्टैंप की तरह नजर आए हैं. लेकिन अब जब भाजपा टीडीपी और जेडीयू के अलावा अन्य सहयोगियों पर निर्भर है, तो क्या प्रधानमंत्री को अपनी कार्यशैली बदलनी होगी?
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प्रधानमंत्री के साथ मिलकर काम करने वाले बताते हैं कि वह रिजल्ट ओरिएंटेड हैं और हर परिस्थिति के हिसाब से खुद को ढाल लेते हैं. भारत की शानदार जी-20 अध्यक्षता के दौरान रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच बेहद जटिल मुद्दों पर 20 देशों के राष्ट्राध्यक्षों और सरकारों के बीच एकजुट सहमति बनाना, प्रधानमंत्री की कार्य क्षमता का एक आदर्श उदाहरण है.
जी 20 में थे जटिल हालात
भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान, अत्यधिक संवेदनशीलता और जटिल स्थितियों को ध्यान में रखना पड़ा था. अलग-अलग विचारधारा वाले कई देश थे जिन्हें एक ही मेज पर लाना पड़ा. हमारी सोच परामर्शात्मक और समझौतावादी थी जिसका उद्देश्य संतोषजनक परिणाम प्राप्त करना था. भारत के जी-20 प्रेसीडेंसी के मुख्य समन्वयक हर्षवर्धन श्रृंगला कहते हैं, 'इस प्रक्रिया में आपसी सामंजस्य बहुत महत्वपूर्ण था.' उन्हें भरोसा है कि गठबंधन के मामले में भी इसी तरह की अप्रोच रहेगी.
जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान सार्वजनिक रूप से एक मंच पर साथ आए थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों नेताओं को भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे के लिए साथ लाए. जमाल खशोगी की घटना के बाद अमेरिका ने सऊदी क्राउन प्रिंस की भी खूब आलोचना की थी. ऐसी विपरीत स्थितियों में दोनों को गेम चेंजर इंफ्रास्ट्रक्चर पहल के लिए एक मंच पर लाना बड़ी उपलब्धि थी और इसने वैश्विक सुर्खियां भी बटोरीं.
जी 20 है उदाहरण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में इस बारे में बात करते हुए कहा, 'जब आप वैश्विक भलाई के लिए काम करते हैं और इसमें कोई व्यक्तिगत अगर-मगर नहीं होता है, तो आप दुनिया को साथ लेकर चल सकते हैं. मेरा प्रयास यह मुद्दा उठाना था कि जी8 या जी20 की शुरुआत क्यों की गई. घोषित उद्देश्य और लक्ष्यों से विचलित न हों. सभी नेता आश्वस्त थे. अगर मुझे कुछ नेताओं से व्यक्तिगत रूप से बात करनी पड़ी तो मैंने ऐसा किया. अगर कुछ नेताओं को शब्दावली से कोई समस्या थी, तो वे आश्वस्त थे.'
अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन और सऊदी क्राउन प्रिंस को कैमरे के सामने हाथ मिलाने के लिए लाने पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEEC) एक बहुत बड़ा गेम चेंजर होगा. इसका दुनिया पर हज़ारों सालों तक बड़ा असर रहेगा. खाड़ी देशों की सकारात्मक और सक्रिय भूमिका रही है, भारत के पास सकारात्मक भूमिका निभाने का अवसर था. अमेरिका और यूरोप हमारे साथ थे और सभी को लगा कि इसका सकारात्मक परिणाम होगा. हम इसे लेकर बात करते थे. सऊदी किंग और अमेरिकी राष्ट्रपति दोनों मेरे दोस्त हैं. इसलिए मैं उन्हें साथ लाया.'
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रिजल्ट ओरिएंटेड रहते हैं प्रधानमंत्री
जिन लोगों ने प्रधानमंत्री के साथ काम किया है, उनका कहना है कि वह एक लक्ष्य को लेकर काम करते हैं. एक अधिकारी ने बताया 'वह एक लक्ष्य निर्धारित करते हैं और फिर उसे हासिल करने का प्रयास करते हैं. लक्ष्य महत्वपूर्ण है और वह उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपनी टीम के साथ काम करते हैं.' जी-20 एक उदाहरण है कि कैसे प्रधानमंत्री अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए गठबंधन के साथ काम कर सकते हैं. जी-20 के दौरान प्रधानमंत्री और उनकी टीम ने बार-बार जी-20 राष्ट्राध्यक्षों से संपर्क किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से संयुक्त घोषणा पत्र प्रभावित ना हो.
भारत की जी-20 अध्यक्षता भी भारत के सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) का आदर्श उदाहरण है. हर्ष श्रृंगला बताते हैं, 'जी-20 जैसे बड़े आयोजन की सफलतापूर्वक मेजबानी करने के लिए, हमें सभी राज्य सरकारों के पूर्ण सहयोग की आवश्यकता थी. सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल करने का प्रयास प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर तब हुआ जब हमने जी-20 की अध्यक्षता हासिल की थी. जी-20 प्रक्रिया में हितधारकों के रूप में राज्यों के परामर्श और भागीदारी की प्रक्रिया ने बहुमूल्य लाभांश दिया क्योंकि हमारे राज्यों ने अखिल भारतीय स्तर पर जी-20 कार्यक्रमों की मेजबानी में सक्रिय रूप से भाग लिया.'
शेरपाओं ने निभाई अहम भूमिका
प्रधानमंत्री ने जी-20 अध्यक्षता से पहले और उस दौरान हर मुख्यमंत्री से परामर्श किया और सभी को जी-20 रात्रिभोज में आमंत्रित किया गया. उन्होंने अफ्रीकी संघ को शामिल करने से पहले उनके साथ परामर्श किया. जी-20 शेरपा अमिताभ कांत और अन्य अधिकारियों ने सभी वार्ताकारों के समक्ष भारत की चिंताओं पर जोर दिया और कहा कि विकास के मुद्दों को युद्ध से प्रभावित नहीं होना चाहिए. जी-20 के प्रमुख परिणाम क्षेत्र की अनदेखी नहीं की जा सकती है. भारत ने पहले जी-7 देशों के साथ और फिर रूस और चीन के साथ अंतिम मसौदे पर अलग-अलग बातचीत की और अंतिम क्षण तक यह चला.
कई मसौदों के बाद शेरपाओं की अंतिम बैठक में अमिताभ कांत ने अन्य शेरपाओं से कहा, 'यह अंतिम मसौदा है. अगर किसी को इस मसौदे से कोई समस्या है तो आपका नेता मेरे नेता के साथ इस पर चर्चा कर सकता है.' इस मसौदे में हर देश की चिंता को ध्यान में रखा गया था. प्रधानमंत्री बिना किसी फुटनोट के एक स्पष्ट सहमति तैयार करने के लिए बहुत उत्सुक थे और अंततः हर राष्ट्राध्यक्ष ने इस पर सहमति जताई.
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यहां भी पीएम ने निभाई अहम भूमिका
भारत के जी-20 की अध्यक्षता से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बाली में जी-20 शिखर सम्मेलन में आम सहमति सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का श्रेय दिया गया था. अमेरिका के प्रमुख उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन फाइनर ने जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान आम सहमति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए पीएम मोदी की सराहना की थी.
फाइनर ने कहा, 'जब अमेरिका और राष्ट्रपति बाइडन दुनिया भर में ऐसे साझेदारों की तलाश कर रहे हैं जो वास्तव में जिम्मेदारी उठाने में मदद कर सकें, वैश्विक एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद कर सकें, तो भारत और प्रधानमंत्री मोदी इस सूची में सबसे ऊपर हैं.' प्रधानमंत्री मोदी ने एससीओ शिखर सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा था कि यह युद्ध का युग नहीं है और 'युद्ध का युग नहीं' बाली घोषणा का हिस्सा है.
अधिकारी बताते हैं कि भारत की विदेश नीति दो ऐसे देशों के साथ मित्रता करने की उसकी क्षमता को दर्शाती है जो एक-दूसरे के विरोधी हो सकते हैं. अधिकारी ने बताया, 'भारत ने अमेरिका और रूस, यूक्रेन और रूस, अमेरिका और ईरान, दोनों के साथ संबंधों को कुशलता से संभाला है और यह प्रधानमंत्री की कूटनीतिक और राजनीतिक सूझबूझ को दर्शाता है. यह उन्हें गठबंधन सहयोगियों के साथ भी निपटने में मदद करेगा.'
प्रधानमंत्री एक सख्त वार्ताकार हैं. वे अमेरिका और रूस दोनों के साथ भारतीय हितों को सर्वोच्च रखते हुए बातचीत करने के पक्षधर रहे हैं, चाहे वह रूसी तेल हो या अमेरिकी तकनीक. इसी तरह वे अपनी पार्टी के मूल हितों को सुरक्षित रखते हुए गठबंधन सहयोगियों के साथ बातचीत करने में सक्षम होंगे. किसानों के तीव्र विरोध के बाद कृषि कानूनों को वापस लेना बताता है कि प्रधानमंत्री आवश्यकता पड़ने पर एक कदम पीछे हट जाते हैं. वे बेहद लचीले हैं और कभी भी जल्दबाजी में निर्णय नहीं लेते हैं. हर कदम, हर फैसला सोच-समझकर लिया जाता है. 9 जून से उनकी असल परीक्षा होगी.