केरल सरकार के एक बिल पर विवाद ज्यादा ही बढ़ गया है. बिल के ड्राफ्ट में अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल तो खड़ा हो ही रहा है, केरल सरकार के डबल स्टैंडर्ड पर भी स्वाभाविक तौर पर सवाल उठ रहे हैं. क्योंकि, केरल की पी. विजयन सरकार शिक्षकों पर जो पाबंदियां लगाने की कोशिश कर रही है, ठीक उसी बात के लिए पूरी छूट भी दे रही है. शर्त सिर्फ ये है आवाज राज्य सरकार के खिलाफ नहीं उठनी चाहिये.
अभी तो, प्रस्तावित यूनिवर्सिटी लॉज (संशोधन) बिल में शैक्षणिक स्वतंत्रता और उच्च शिक्षा संस्थानों में राज्य सरकार के दखल की आशंका को लेकर गंभीर चिंता जताई जा रही है, लेकिन उसके दूरगामी नतीजे ज्यादा ही खतरनाक लगते हैं. ये बिल फिलहाल राज्यपाल के पास विचाराधीन है.
ये सब ऐसे दौर में हो रहा है जब अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी पर भी बहस छिड़ी हुई है. सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल जाने के बाद भी ये चर्चा जारी है कि एक पोस्ट के लिए प्रोफेसर की गिरफ्तारी क्यों हुई. वो भी तब जबकि मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह ने भी ऑपरेशन सिंदूर पर प्रेस ब्रीफिंग करने वाली सैन्य अधिकारी सोफिया कुरैशी पर टिप्पणी की थी. सोफिया कुरैशी को विजय शाह ने आतंकवादियों की बहन बता डाला था. सुप्रीम कोर्ट ने दोनो ही मामलों में जांच के लिए एसआईटी का गठन कराया है.
मुद्दे की बात ये है कि प्रोफेसर की गिरफ्तारी पर सवाल उठाने वाले कथित बुद्धिजीवी केरल की लेफ्ट सरकार के प्रस्तावित बिल पर पूरी तरह खामोश हैं. प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी के विरोध में कई शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आवाज उठाई है, जिसमें एक हजार से ज्यादा लोगों ने एक याचिका पर हस्ताक्षर किये हैं.
क्या है केरल के यूनिवर्सिटी संशोधन बिल में?
1. केरल के प्रस्तावित यूनिवर्सिटी लॉ (संशोधन) बिल में वैसे तो कई विवादित चीजें हैं, लेकिन एक प्रावधान को लेकर ज्यादा बवाल मचा है. बिल में एक ऐसा प्रावधान है जिसके तहत कॉलेज के शिक्षक राज्य सरकार की नीतियों या यूनिवर्सिटी के नियमों की आलोचना नहीं कर सकेंगे, लेकिन ऐन उसी वक्त वे शिक्षक केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना की अनुमति दी गई है.
2. बिल में कहा गया है कि किसी भी प्रकार की प्रचार सामग्री, चाहे वो लिखित हो, प्रिंटेड हो या इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप में हो और उसे यूनिवर्सिटी परिसर में वितरित किया जाना है, वो विश्वविद्यालय की पॉलिसी या राज्य सरकार के कानूनों के खिलाफ नहीं होनी चाहिये.
3. ऐसा ही विवाद उन प्रावधानों को लेकर भी हो रहा है, राज्य सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री की शक्तियों का विस्तार करते हैं. असल में, उच्च शिक्षा मंत्री विश्वविद्यालयों के प्रो-चांसलर भी होते हैं. बिल में प्रावधान ये है कि उच्च शिक्षा मंत्री शैक्षणिक और प्रशासनिक मामलों में सीधे हस्तक्षेप कर सकेंगे.
ये कोई बिल है या कानून का मजाक?
1. ये तो असहमित की आवाज को दबाने की राज्य सरकार की तरफ से जबरिया कोशिश ही लगती है.
2. अगर ये कानून बना तो यूनिवर्सिटी की स्वायत्ता तो खत्म होगी ही, राजनीतिक दखलंदाजी भी बढ़ जाएगी.
3. ये तो लगता है जैसे सत्ताधारी पार्टी की तरफ से शिक्षकों को राजनीतक कार्यकर्ता की तरह इस्तेमाल करने की कवायद चल रही है.
4. क्या ये बिल ऐसे कानून का प्रस्ताव नहीं है जो किसी राजनीतिक दल के व्हिप जैसा है.
5. देश में ऐसा कानून कैसे बन सकता है, जिसमें एक ही एक्ट को राज्य में अपराध माना जाता हो, और केंद्र सरकार के खिलाफ उस आपराधिक कृत्य को सपोर्ट हासिल हो.
और फ्री स्पीच पर जो बहस चल रही है
सुप्रीम कोर्ट में प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के केस की सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने कहा है, सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन क्या ऐसे मुद्दे पर बोलने का ये सही समय है?
जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणी होती है, सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है... लेकिन, क्या ये समय इतना सांप्रदायिक होने की बात करने का है? देश ने एक बड़ी चुनौती का सामना किया है. दहशतगर्द हर तरफ से आये और हमारे मासूमों पर हमला किया... हम एकजुट रहे... लेकिन, इस वक्त इस मौके पर सस्ती लोकप्रियता क्यों हासिल की जाए?
प्रोफेसर की गिरफ्तारी के बाद कई शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उनके समर्थन में आवाज उठाई है, जिसमें एक हजार से ज्यादा लोगों ने एक पत्र पर हस्ताक्षर किया है. पत्र में लिखा है, हरियाणा महिला आयोग ने दिखा दिया है कि संविधान द्वारा संरक्षित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आज भी उन शक्तियों के कारण खतरे में है जो नफरत फैलाकर भारत को अस्थिर करना चाहती हैं - और इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में फिल्म मेकर आनंद पटवर्धन, इतिहासकार रामचंद्र गुहा और रोमिला थापर, प्रोफेसर अपूर्वानंद और अर्थशास्त्री जयंती घोष जैसे लोग शामिल हैं - मुश्किल ये है कि केरल के प्रस्तावित बिल के विरोध में इनमें से किसी का बयान सामने नहीं आया है.