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मराठा आरक्षण आंदोलन में फंस गई बीजेपी, कुनबी जाति का सर्टिफिकेट बांटने से निकलेगा हल?

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन की आंच में बीजेपी और उसके सहयोगी शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित) दलों के झुलसने का खतरा बढ़ता जा रहा है. बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के कोर वोटर अलग हैं . यही कारण है कि बीजेपी के लिए मुश्किल बढ़ती जा रही है...

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मराठा आरक्षण आंदोलन हिंसक हो चुका है. एक विधायक का घर फूंक दिया आंदोलकारियों ने.
मराठा आरक्षण आंदोलन हिंसक हो चुका है. एक विधायक का घर फूंक दिया आंदोलकारियों ने.

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन अब खतरनाक मोड़ पर पहुंच रहा है. सबसे बड़ी मुश्किल में बीजेपी है. उसे न निगलते बन रहा है न उगलते. आंदोलनकारियों ने एनसीपी के दो विधायकों और एक पूर्व मंत्री के घरों में आगजनी की है.बीड में कर्फ्यू लगा है और धारा 144 लगा दी गई है. शिवसेना शिंदे गुट के दो सांसदों ने भी आंदोलन के समर्थन में अपना इस्तीफा दे दिया है. 5 विधानसभा चुनावों में तो इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला पर 2024 के लोकसभा चुनावों में निश्चित रूप से मराठा आरक्षण आंदोलन अपना प्रभाव डालेगा. अगर समय रहते ये कंट्रोल नहीं हुआ तो बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है.

 मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जारंगे जालना के अंतरौली में पिछले 6 दिन से भूख हड़ताल पर हैं. राज्य सरकार आंदोलनकारी नेताओं से मराठा जाति को कुनबी जाति का प्रमाणपत्र देने का वादा करके डैमेज कन्ट्रोल करना चाहती है. पर यह बीजेपी के लिए आत्मघाती कदम बताया जा रहा है. दरअसल महाराष्ट्र में बीजेपी के उत्थान का कारण प्रदेश का ओबीसी समुदाय ही रहा है.पहले की तरह इस बार भी अगर ओबीसी समुदाय मराठों को कुनबी जाति का प्रमाण पत्र दिए जाने का विरोध करती है तो बीजेपी के लिए मुश्किल बढ़ सकती है. आइए समझते हैं कि मराठा वोटों का क्या गणित है जिसने बीजेपी जैसी पार्टी को मुश्किल में डाल दिया है.

क्या मराठा और कुनबी एक हैं?

आंदोलनकारी नेताओं का कहना है कि मराठा और कुनबी एक ही हैं. इसलिए मराठों को भी आरक्षण मिलना चाहिए. मराठों को महाराष्ट्र में वर्चस्व रखने वाली जाति माना जाता है.इतिहास में हमने पढ़ा है मराठों की वीरता के किस्से. किसी जाति को डॉमिनेटेड कास्ट तभी कहा जाता है जब उसके पास मजबूत आर्थिक और राजनीतिक ताकत होती है.यह स्थानीय जातीय व्यवस्था में उसकी स्थिति बहुत नीचे होने पर कभी नहीं हो सकती. महाराष्ट्र में मराठों की आर्थिक संसाधनों और राजनीतिक ताकत पर कब्जा है और जातीय व्यवस्था में भी ऊपर नहीं है तो नीचे भी नहीं हैं. 

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दूसरी ओर कुनबी लोग मूल रूप से खेतिहर लोग हैं.जिन्हें महाराष्ट्र की पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था में ‘शूद्र’ माना जाता रहा है. दूसरी ओर मराठा अपने को क्षत्रिय कहते रहे हैं.96 कुली मराठा आमतौर पर अपनी जाति के अंदर शादी के हिमायती हैं और कुनबी के साथ शादी को समुदाय से बाहर की शादी माना जाता है.
महाराष्ट्र में आंदोलनकारी मराठा होने का दावा करते हुए भी कुनबी जाति के सर्टिफिकेट की मांग कर रहे हैं.यह सवाल लाजिमी है कि अगर मराठा और कुनबी एक ही हैं तो कुनबी को ‘शूद्र’ और मराठा को ‘क्षत्रिय’ कैसे माना जाता है?

कुनबी जाति के प्रमाणपत्र देने की रणनीति

महाराष्ट्र के सीएम शिंदे खुद भी मराठा हैं. उन्हें आरक्षण आंदोलन के चलते अपना जनाधार खिसकने का खतरा मंडराता दिख रहा है. उन्होंने मराठा समुदाय को साधने के लिए कुनबी जाति का प्रमाण पत्र देने की रणनीति बनाई है. शिंदे ने कहा कि जिनके पास कुनबी जाति के साक्ष्य होंगे, उन्हें तुरंत ओबीसी के प्रमाणपत्र जारी किए जा सकते हैं. उन्होंने मराठा आरक्षण को सुलझाने के लिए दो फॉर्मूले दिए हैं. पहला कुनबी प्रमाणपत्र पत्र जारी करके दूसरा सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटिशन लगाकर. दिक्कत यह है कि कुनबी जाति को मराठों का प्रमाणपत्र देने के चलते बीजेपी के कोर वोटर्स ओबीसी के भड़कने का खतरा बन गया है. सितंबर में ही शिंदे सरकार ने मराठों को कुनबी जाति का प्रमाण पत्र देने की बात पर विदर्भ इलाके में ओबीसी समुदाय भड़क गया था. इसमें बीजेपी और कांग्रेस के दोनों ही पार्टियों के ओबीसी नेता शामिल थे.
बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के नेता आशीष देशमुख ने कहा था कि मराठा आर्थिक रूप से पिछड़े नहीं हैं और उन्हें ओबीसी कोटे से आधा फीसदी भी आरक्षण नहीं मिलना चाहिए वरना हमारे लिए आंदोलन के रास्ते खुले हैं. 

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मराठा वोटों का गणित

2024 में लोकसभा चुनाव है. बीजेपी की वापसी तभी संभव है जब बड़े स्टेट में बीजेपी को अच्छी खासी सीट मिल जाएं. मराठा आरक्षण की मांग बीजेपी के लिए बनी चुनौती बनी हुई है. मराठावाड़ा में मराठों का गढ़ है तो विदर्भ में ओबीसी का दबदबा है. राज्य की 48 लोकसभा सीट में से 11 इसी इलाके में हैं और बीजेपी 10 सीटों पर काबिज है. मराठा की 288 विधानसभा सीटों में 62 इसी क्षेत्र से हैं. मराठा समुदाय के बीच शिवसेना और एनसीपी का सियासी आधार है. ऐसे में बीजेपी मराठा समुदाय के लिए कदम बढ़ाती है तो ओबीसी के छिटकने का डर है तो दूसरी तरफ मराठों को आरक्षण नहीं दिया जाता तो मुख्यमंत्री शिंदे और डिप्टी सीएम अजीत पवार का खतरा है.

दरअसल महाराष्ट्र में मराठों की आबादी 30 से 33 फीसदी है जबकि ओबीसी समुदाय की आबादी 40 फीसदी है. महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 20 से 22 सीटें और विधानसभा की 288 सीटों में से 80 से 85 सीटों पर मराठा वोट निर्णायक है. साल 1960 में महाराष्ट्र के गठन के बाद से अब तक यानी साल 2023 तक 20 में से 12 मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से ही रहे हैं. मौजूदा सीएम एकनाथ शिंदे भी मराठा समुदाय से हैं. दूसरी तरफ राज्य में ओबीसी समुदाय भी 40 फीसदी है.

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मराठा आरक्षण आंदोलन का इतिहास

बता दें कि महाराष्ट्र में पिछले चार दशकों से मराठा आरक्षण की मांग चल रही है. यह आंदोलन कई बार हिंसक रूप भी ले चुका है. महाराष्ट्र के अधिकतर मुख्यमंत्री मराठे होने के बावजूद अपने समुदाय के लिए कोई हल नहीं निकाल सके हैं.सबसे पहले 2014 में पृथ्वीराज चव्हाण ने 16 फीसदी आरक्षण के लिए अध्यादेश लेकर आए. पर 2014 में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार चुनाव हार गई और बीजेपी-शिवसेना की सरकार बनी और देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने. फडणवीस सरकार में मराठा आरक्षण को लेकर एक आयोग बना. इसी आयोग की सिफारिश पर फडणवीस सरकार ने सोशल एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लास एक्ट के तहत मराठों को 16 फीसदी आरक्षण दिया. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सरकारी नौकरियों में 13 फीसदी और शैक्षणिक संस्थानों में 12 फीसदी कर दिया. आगे चलकर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस फैसले को पूरी तरह ही रद्द कर दिया.

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