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अरविंद केजरीवाल के लिए दिल्ली में दोबारा सत्ता पाना अब कितना मुश्किल, कितना आसान? | Opinion

आतिशी को दिल्ली की सत्ता सौंपकर अरविंद केजरीवाल पहले के मुकाबले ज्यादा फ्रीडम महसूस कर रहे होंगे, क्योंकि अब तो मनीष सिसोदिया फिर से हर कदम पर उनके साथ हो गये हैं - लेकिन क्या सत्ता में वापसी भी आसान हो सकेगी?

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अरविंद केजरीवाल के लिए दिल्ली में सत्ता की राह आसान लगने लगी है, लेकिन है भी क्या?
अरविंद केजरीवाल के लिए दिल्ली में सत्ता की राह आसान लगने लगी है, लेकिन है भी क्या?

अरविंद केजरीवाल अक्सर विपश्यना करने जाते रहे हैं. विपश्यना की अरविंद केजरीवाल के कामकाज में ब्रेक जैसी ही भूमिका लगती. जेल जाने से पहले चुनाव कैंपेन के बीच से समय निकाल कर भी विपश्यना के लिए चले गये थे, जबकि उस वक्त प्रवर्तन निदेशालय की तरफ से नोटिस पर नोटिस भेजे जा रहे थे. 

विपश्यना के बाद अरविंद केजरीवाल तरोताजा होकर फिर से काम में जुट जाते हैं. जेल से छूटने के बाद अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह इस्तीफा देने का फैसला लिया है, और अपनी जगह आतिशी को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया, ये तो आपदा में अवसर का लाभ उठाने जैसा ही लगता है.

अब तिहाड़ जेल में बंद रहने से बड़ी आपदा भला अरविंद केजरीवाल के लिए क्या हो सकती है, लेकिन अब तो ऐसा लगता है जैसे जेल की कोठरी में भी अरविंद केजरीवाल विपश्यना की तरह ही मेडिटेशन करके निकले हैं.

अरविंद केजरीवाल अभी जो कुछ भी कर रहे हैं या करने जा रहे हैं, वे सभी फैसले दिल्ली विधानसभा चुनाव को ही ध्यान में रख कर लिये जा रहे हैं - लेकिन समझने वाली बात ये है कि दिल्ली की सत्ता में वापसी अरविंद के चांस कितने हैं?   

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केजरीवाल को खुल कर ‘खेला’ करने का मौका मिल गया है

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है, और इसके साथ ही बीजेपी और कांग्रेस की ये डिमांड भी खत्म ही हो गई है.

अरविंद केजरीवाल जेल की यात्रा भी कर आये. काफी दिन जेल में गुजार भी आये, और जमानत भी सुप्रीम कोर्ट से मिली है - ऐसे में अरविंद केजरीवाल पर हमले के लिए उनके राजनीतिक विरोधियों को नई तरकीबें निकालनी होंगी. 

अब अगर ईडी और सीबीआई नये सिरे से कोई एक्शन लें तो बात और है लेकिन जब तक ऐसा नहीं हो पाता, अरविंद केजरीवाल को खुल कर ‘खेला’ करने का मौका दे दिया है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनावों में बीजेपी के खिलाफ ‘खेला होबे’ का जो नारा दिया था, विपक्षी खेमे में जब तब दोहराये जाते रहे हैं. और अरविंद केजरीवाल के पास भी ऐसा ही मौका है. 

अरविंद केजरीवाल ने 49 दिन की सरकार के बाद भी इस्तीफा दे दिया था. तब अरविंद केजरीवाल ने ये दिखाने की कोशिश की थी कि उनको कुर्सी का बिलकुल भी मोह नहीं है. 

कहने वाले भले कहें कि इस्तीफा तो वो पहले भी दे सकते थे, लेकिन अब जो अरविंद केजरीवाल ने किया है, वो राजनीतिक तौर पर ज्यादा महत्वपूर्ण है. हेमंत सोरेन ने जेल जाने से पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन आते ही फिर से काबिज हो गये. और साइड इफेक्ट ये हुआ कि चंपई सोरेन नई चुनौती बन गये. 
बेशक, अरविंद केजरीवाल के कामकाज में कुछ अड़चनें थीं, लेकिन वो चाहते तो मुख्यमंत्री बने रह सकते थे. जैसे अब तक काम चल रहा था, कुछ महीने और भी बीत जाते. कोई कुछ कर पाता क्या?

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अब अरविंद केजरीवाल धुआंधार कैंपेन करेंगे, और आतिशी बतौर मुख्यमंत्री उनके चुनावी वादे पूरा करेंगी. सबसे पहला काम तो महिलाओं को हर महीने उनके खाते में एक हजार रुपये देने का वादा पूरा किया जाना है. अरविंद केजरीवाल के जेल चले जाने से जो योजनाएं फंड की वजह से ठप पड़ी हैं, या शुरू नहीं हो पाई हैं - आतिशी उन पर अमल करने की कोशिश करेंगी.

एक तरफ दिल्ली सरकार का काम भी चलता रहेगा, और ऐन उसी वक्त अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी के लि्ए फिर से वोट मांगते रहेंगे. 

लोकसभा जैसे नतीजों का कितना खतरा है

दिल्ली में आम आदमी पार्टी के सत्ता में बने रहने के जो कारण हैं, उसमें कोई तब्दीली नहीं आई है. दिल्ली के लोग अगर अरविंद केजरीवाल को किसी खास वजह से वोट देते रहे हैं, तो रुका हुआ काम फिर से चालू हो जाएगा, ये पक्का है.

और अब तक जो अरविंद केजरीवाल भी नहीं कर पाये हैं, वो तो आतिशी भी नहीं कर सकतीं. आतिशी का काम तो चंपई सोरेन जैसा ही है. अब बाद में आतिशी भी चंपई सोरेन बनती हैं या नहीं, ये तो वक्त और आतिशी के मन में ही होगा.

अरविंद केजरीवाल के सामने सबसे जरूरी काम है, लोकसभा चुनाव के नतीजों की समीक्षा करना. आखिर जेल से छूट कर आये अरविंद केजरीवाल के कैंपेन के बावजूद आम आदमी पार्टी एक भी लोकसभा सीट क्यों नहीं जीत पाई? क्योंकि मोदी लहर जैसी कोई बात तो थी नहीं. अगर ऐसा होता तो यूपी में बीजेपी की सीटें कम क्यों आई होतीं?

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कुछ तो लोचा है ही. अरविंद केजरीवाल के सामने फिलहाल बड़ी चुनौती यही है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीत पक्की करना है, लेकिन अगर बीजेपी ने लोकसभा की तरह ही माहौल बना दिया तो अरविंद केजरीवाल के लिए सत्ता में वापसी मुश्किल हो सकती है.

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