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राम मंदिर मुद्दे पर BJP से मुकाबले में केजरीवाल आगे, बाकी तो बस विरोध कर रहे हैं

आने वाले आम चुनाव से पहले INDIA ब्लॉक और बीजेपी के बीच टकराव का बड़ा मुद्दा राम मंदिर उद्घाटन समारोह बना है. 22 जनवरी के समारोह का विपक्ष के सभी नेताओं ने अपने अपने तरीके से विरोध जताया, लेकिन असली मुकाबला करते दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही दिखे.

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मंदिर मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुकाबले में राहुल गांधी को जोरदार टक्कर दे रहे हैं.
मंदिर मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुकाबले में राहुल गांधी को जोरदार टक्कर दे रहे हैं.

राहुल गांधी की कांग्रेस सहित INDIA ब्लॉक के सभी नेताओं ने अयोध्या के राम मंदिर उद्घाटन समारोह को बीजेपी का राजनीतिक कार्यक्रम बता तो दिया, लेकिन क्या वे सभी अपने स्टैंड को लोगों की नजर में सही साबित भी कर पाये?

कांग्रेस ने समारोह के न्योते को 'ससम्मान अस्वीकार' कर अपनी तरफ से बेहद नपी-तुली प्रतिक्रिया देने की कोशिश की थी, लेकिन क्या वे हिंदू वोटर के बीच राजनीतिक तौर पर खुद को दुरूस्त पेश कर सके? ममता बनर्जी और अखिलेश यादव की तो अपनी अलग राजनीतिक लाइन है, लेकिन महाराष्ट्र में राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे उद्धव ठाकरे, मौजूदा माहौल में खुद को सही मोड़ पर पेश कर पाये हैं? फर्ज कीजिये, बीजेपी से नाराज होकर कोई वोटर विकल्प की तलाश में इधर उधर देखता है, तो क्या ये नेता उसे नजर आ रहे होंगे? 
 
देखा जाये तो विपक्ष के ज्यादातर नेता बीजेपी से राजनीतिक लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं, ऐसा लगता है जैसे वे सिर्फ विरोध कर रहे हैं. कहने को विरोध तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी कर रहे हैं, और वो INDIA ब्लॉक के साथ भी हैं, लेकिन उनका विरोध राजनीतिक हिसाब से बाकियों से काफी अलग लगता है - ऐसा क्यों लगता है, जैसे अरविंद केजरीवाल बीजेपी से राजनीतिक मुकाबले की कोशिश कर रहे हैं, और बाकी विपक्षी नेता सिर्फ विरोध की राजनीति कर रहे हैं.

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बीजेपी से लड़ाई में केजरीवाल कहां पहुंचे?

अयोध्या समारोह के न्योते को लेकर प्रतिक्रिया देने में भी अरविंद केजरीवाल ने पूरी राजनीतिक चतुराई दिखाई है, और उसके बाद जो कुछ भी किया वो बाकियों के लिए सबके जैसा ही लगता है. विपक्षी नेताओं को ये कहने का पूरा अधिकार है कि वे अयोध्या के कार्यक्रम को किस नजरिये से देखते हैं, और लोगों के सामने कैसे पेश करते हैं - लेकिन सवाल ये भी तो है बहिष्कार से हासिल क्या हो रहा है? बहिष्कार विरोध का बेहतरीन तरीका होता है, लेकिन राजनीति में फैसले आंदोलन की तरह नहीं लिये जाते. 

अगर विपक्ष के बाकी नेताओं की तरह अरविंद केजरीवाल भी स्टैंड लेते तो लगता कि चलो वो आंदोलन के जरिये ही तो राजनीति में आये हैं, धंधा बदल लेने से फितरत थोड़े ही बदल जाएगी. मगर, अयोध्या समारोह को लेकर अरविंद केजरीवाल ने जो परिपक्वता दिखाई है, वो बाकियों के लिए मिसाल हो सकती है - और अगर कोई समझना चाहे तो भविष्य की राजनीतिक झलक भी देखी जा सकती है.

अयोध्या समारोह के न्योते को लेकर विपक्ष के नेताओं के रिएक्शन देखें तो अरविंद केजरीवाल की प्रतिक्रिया पॉलिटिकली करेक्ट लगती है. अरविंद केजरीवाल ने तो अखिलेश यादव की तरह अनजाने लोगों से न्योता लेने से इनकार किया, न निमंत्रण भेजे जाने वाले कूरियर की रसीद मांगी, और न ही ससम्मान अस्वीकार किया.

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संवाददाताओं से बातचीत में आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल का कहना था, 'मुझे एक पत्र मिला... जिसमें कहा गया है कि सुरक्षा कारणों से केवल एक व्यक्ति के लिए ही अनुमति है.' अरविंद केजरीवाल ने बड़े ही सहज तरीके से समझाया कि व्यक्तिगत निमंत्रण देने के लिए एक टीम को आना था, लेकिन कोई नहीं आया.

फिर बोले, 'मैं अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रामलला के दर्शन के लिए जाना चाहता हूं... मेरे माता-पिता की भी रामलला के दर्शन की इच्छा है... 22 जनवरी के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद मैं पत्नी, बच्चों और माता-पिता के साथ जाऊंगा.'

अरविंद केजरीवाल ने भी न्योता ससम्मान ही अस्वीकार किया है. अखिलेश यादव और शरद पवार जैसे नेताओं की तरह वो भी मुख्य समारोह के बाद अयोध्या जाने की बात कर रहे हैं - लेकिन अपनी बात कहते वक्त अरविंद केजरीवाल न तो कुछ झुंझलाहट प्रकट करते हैं, न ही कोई शिकायत. वो तो ये भी नहीं कह रहे कि अयोध्या समारोह बीजेपी का राजनीतिक कार्यक्रम है. 

विपक्षी खेमे में मौजूदा राजनीतिक माहौल में सबसे स्मार्ट तो अरविंद केजरीवाल नजर आ रहे हैं - जिस तरह से बगैर किसी शिकायत के रिएक्ट किया, मां-बाप के साथ अयोध्या जाने की बात कही, दिल्ली सरकार को रामराज से प्रेरित बता रहे हैं - और राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दिन दिल्ली भर में शोभा यात्रा निकाल रहे हैं, ये राजनीतिक परिपक्वता नहीं तो क्या है?

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दिल्ली में रामलीला का आयोजन और हर महीने सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ - बीजेपी को तो INDIA ब्लॉक में सबसे ज्यादा अरविंद केजरीवाल से ही डरने की जरूरत लगती है. 

ये सब देखकर तो ऐसा लगता है कि अरविंद केजरीवाल वोटर की नब्ज पकड़ चुके हैं. वो जानते हैं कि ऐसे माहौल में राम मंदिर और हिंदुत्व का विरोध बहुसंख्यक वोटर को नाराज कर सकता है. अव्वल तो पहले से भी अरविंद केजरीवाल को ममता बनर्जी की तरह 'जय श्रीराम' के नारे से कोई परहेज नहीं है. बल्कि वो तो हिंदू वोटर को खुश करने के लिए नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की तस्वीर लगाने की मांग करते हैं, और हर चुनावी सभा ये बताना नहीं भूलते कि आम आदमी पार्टी की सरकार बनी तो बुजुर्गों को दिल्ली की तरह ही वो अयोध्या दर्शन कराएंगे.

बीजेपी के खिलाफ रेस में राहुल गांधी कहां हैं?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस में ये तो बताया था कि वो 22 जनवरी को असम में रहेंगे, लेकिन कहां और क्या करेंगे, नहीं बताये थे. तब कयास लगाये जा रहे थे कि वो कामाख्या मंदिर जा सकते हैं. 

राहुल गांधी 22 जनवरी के कार्यक्रम का तब पता चला जब वो वैष्णव संत श्रीमंत देव की जन्मस्थली बटाद्रवा थान मंदिर जा रहे थे, लेकिन रास्ते में भी उनको रोक लिया गया. हो सकता है, गुवाहाटी में होने के कारण कामाख्या मंदिर का कार्यक्रम न बनाया जा सका हो. गुवाहाटी के बीच से भारत जोड़ो न्याय यात्रा लेकर राहुल गांधी के गुजरने पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने पहले ही एफआइआर दर्ज करने और चुनाव बाद गिरफ्तार करने की चेतावनी जारी कर दी थी. 

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हिमंत बिस्वा सरमा का कहना था, श्रीमंत शंकरदेव असम के श्रद्धेय हैं. राहुल गांधी के लिए मुख्यमंत्री की सलाह थी कि अयोध्या के प्राण-प्रतिष्‍ठा समारोह के बाद वो मंदिर का दौरा कर सकते हैं. हिमंत बिस्वा सरमा कह रहे थे, अगर वह प्राण प्रत‍िष्‍ठा समारोह के द‍िन ऐसा करते हैं तो असम की छवि खराब होगी... असम के लिए ये सब दु:खद होगा. 

मंदिर के रास्ते में रोके जाने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी वहीं धरने पर बैठ गये. और उनके साथ चल रहे लोग रामधुन गाने लगे. रोके जाने पर राहुल गांधी ने गाड़ी से उतर कर पुलिसवालो से पूछा कि आखिर उनको क्यों रोका जा रहा है?

एक वीडियो में राहुल गांधी कह रहे हैं, 'भाई मामला क्या है? क्या मैं जाकर बैरिकेड देख सकता हूं? मैं मंदिर में क्यों नहीं जा सकता? क्या मंदिर जाने की अनुमति नहीं है? मेरे पास परमिशन है... मुझे मंदिर के प्रशासन ने बुलाया है... मैं हाथ जोड़ना चाहता हूं... भगवान का दर्शन करना चाहता हूं.'

बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाते हुए राहुल गांधी ने मीडिया से बातचीत में गुस्से का इजहार किया, 'हम मंदिर में जाने की कोशिश कर रहे हैं... हमें बुलाया गया था और अब हमें जाने नहीं दिया जा रहा है... लगता है आज सिर्फ एक ही व्यक्ति मंदिर जा सकता है.'

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देखा जाये तो अखिलेश यादव को भी मौके की राजनीति समझ में आने लगी है. अयोध्या समारोह से पहले लखनऊ में मीडिया से बात करते हुए अखिलेश यादव ने कहा, 'जो मूर्ति अब तक पत्थर की थी, आज वो प्राण प्रतिष्ठा के बाद भगवान का रूप ले लेगी... जो लोग नीति, रीति और मर्यादाओं का सम्मान करते हैं, वे भगवान राम के सबसे बड़े भक्त होते हैं.'

मुद्दे की बात ये है कि विपक्ष को अयोध्या मुद्दे पर विरोध जताने के अलावा हासिल क्या हुआ है? बीजेपी से किसी न किसी वजह से नाखुश अगर कुछ लोग विकल्प की तलाश में होंगे, राहुल गांधी सहित सारे विपक्षी नेताओं ने उनकी नाराजगी मोल ली, जबकि अरविंद केजरीवाल ने ऐसे वोटर के बीच खुद को विकल्प के तौर बड़ी बुद्धिमानी से पेश कर दिया है. 

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