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न पार्टी के मुखिया रहे, न सरकार के डिप्टी, बगावत से सचिन पायलट ने क्या-क्या खोया?

सीएम पद की चाह अब सचिन पायलट पर इतनी भारी पड़ गई है कि न वो कांग्रेस सरकार के उपमुख्यमंत्री रहे हैं और न ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद उनके पास बचा है. यानी एक राजनेता के तौर पर जो दो बड़े पद उनके पास थे, दोनों से ही सचिन पायलट को हाथ धोना पड़ा है. इसके अलावा भी उन्होंने काफी कुछ खोया है.

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सचिन पायलट को डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया
सचिन पायलट को डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया

  • सचिन पायलट के दोनों पद छीने गए
  • गांधी परिवार से मिलता रहा सपोर्ट
  • पायलट के साथी भी हो गए अलग

दिसंबर 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में बहुमत मिलने के बाद से ही सचिन पायलट मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए संघर्ष कर रहे थे. सीएम पद की ये चाह अब उन पर इतनी भारी पड़ गई है कि न वो कांग्रेस सरकार के उपमुख्यमंत्री रहे और न ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद उनके पास बचा है. यानी एक राजनेता के तौर पर जो दो बड़े पद उनके पास थे, दोनों से ही सचिन पायलट को हाथ धोना पड़ा है.

सिर्फ ये दो पद ही नहीं जिसका नुकसान सचिन पायलट को हुआ है. पायलट के प्रति गांधी परिवार की जो नजदीकियां थीं, उसे भी चोट पहुंची है. कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा तीनों ही सचिन पायलट के काफी करीबी रहे हैं. सचिन पायलट पर गांधी परिवार की विशेष कृपा भी रही. मंगलवार को जब कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पायलट को उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने का ऐलान किया तो उन्होंने भी इस बात का जिक्र किया.

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सुरजेवाला ने बताया कि सचिन पायलट को 26 साल की उम्र में सांसद, 32 साल की उम्र में केंद्रीय मंत्री, 34 साल की उम्र में प्रदेश अध्यक्ष और 40 साल की उम्र में उपमुख्यमंत्री बनाकर बहुत कम उम्र में राजनीतिक ताकत दी गई. सुरजेवाला ने कहा कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी के विशेष आशीर्वाद के कारण उन पर इतनी कृपा संभव हुई. ऐसे में पायलट का कांग्रेस की सरकार गिराने की साजिश में शामिल होना बहुत ही दुख की बात है.

इसके अलावा सचिन पायलट ने उन विधायकों और मंत्रियों का समर्थन भी खो दिया है, जो उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते थे. पायलट खेमे के दानिश अबरार और रामनारायण मीणा समेत छह विधायक गहलोत की बैठक में शामिल हुए हैं. इसके अलावा जो 22 विधायक सचिन पायलट के साथ हैं, उनके बारे में भी ये कहा जा रहा है कि अगर सचिन पायलट बीजेपी के पास जाते हैं तो करीब 10 विधायक ऐसे हैं जो इसके लिए तैयार नहीं होंगे. ये विधायक सचिन पायलट के प्रति वफादार जरूर हैं लेकिन बीजेपी में वो उनके साथ जाने को राजी नहीं है. हालांकि, पायलट ने खुद भी बीजेपी में जाने से इनकार किया है.

दूसरी तरफ बीजेपी भी सचिन पायलट के विधायकों की संख्या को लेकर अभी विश्वास में नहीं है. पार्टी का कहना है कि जब तक विधायकों की संख्या पर स्थिति स्पष्ट नहीं होती है तब तक वो फ्लोर टेस्ट की मांग भी नहीं करेंगे.

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ऐसे में जो समीकरण फिलहाल बनते नजर आ रहे हैं उसमें बीजेपी से पायलट को संजीवनी बूटी मिल पाए, ऐसे समीकरण भी उतने पुख्ता नजर नहीं आते हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो ताजा तस्वीर ये है कि सचिन पायलट ने फिलहाल सरकार, पार्टी, गांधी परिवार समेत मंत्रियों व विधायकों का भी समर्थन खो दिया है.

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