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मराठी नहीं, हिंदुत्व की राह... उत्तर भारत पर ठाकरे के बदले मिजाज का क्या है 'राज'

महारष्ट्र की सियासत में इन दिनों मराठी अस्मिता की नहीं बल्कि हिंदुत्व की राजनीति पर सियासी घमासान छिड़ा हुआ है. सूबे की बदले हुए सियासी मिजाज में मनसे प्रमुख राज ठाकरे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की शान में कसीदे गढ़ रहे हैं तो सीएम उद्धव ठाकरे को भोगी बता रहे हैं. मराठी दांव फेल हो गया तो राज ठाकरे ने हिंदुत्व का नया दांव चला है.

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स्टोरी हाइलाइट्स
  • राज ठाकरे को क्यों उद्धव ठाकरे से ज्यादा योगी पंसद हैं?
  • मराठी कार्ड नहीं हिंदुत्व की राह पर चल रहे राज ठाकरे
  • शिवसेना के हिंदू वोटों को क्या राज ठाकरे साथ ले पाएंगे?

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे एक समय उत्तर भारतीयों के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे, लेकिन अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मुरीद बन गए हैं. राज ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर तंज कसते हुए कहा कि दुर्भाग्य से महाराष्ट्र में हमारे यहां कोई 'योगी' नहीं हैं, हमारे पास जो हैं वो 'भोगी'. राज ठाकरे अपने आपको हिंदुत्व  के नेता के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि महाराष्ट्र की सियासत में शिवसेना के हिंदू वोटों को अपने पाले में ला सकें? 

महाराष्ट्र की राजनीति इन दिनों अजान और हनुमान चालीसा के इर्द-गिर्द ही घूम रही है. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना शुरू से ही मराठी पहचान को लेकर आक्रामक रही है, जिसके चलते कई बार उन पर कई बार उत्तर भारतीयों को पीटने का भी आरोप लगा. लेकिन, शिवसेना के कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाने के बाद सूबे के बदले हुए सियासी मिजाज में राज ठाकरे ने अपना राजनीतिक ट्रैक चेंज किया है. ऐसे में वो मराठी अस्मिता के बजाय ऐसे तमाम मुद्दों को उठा रहे हैं, जो उग्र हिंदुत्व को धार देने वाले माने जाते हैं. 

राज ठाकरे ने कुछ दिनों पहले गुड़ी पड़वा के मौके पर धमकी दी थी कि महाराष्ट्र में मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर तीन मई तक नहीं हटाए गए तो जबाव में एमएनएस के कार्यकर्ता मस्जिद के बाहर हनुमान चलीसा का पाठ करेंगे. इसके बाद देश भर में लाउडस्पीकर को लेकर सियासत गर्मा गई थी. ऐसे में यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रशासन को निर्देश दिया था कि धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकरों से दूसरों को असुविधा नहीं होनी चाहिए. इसके बाद सूबे के तमाम मंदिर-मस्जिद से लाउडस्पीकर हटा लिए गए हैं या फिर उनकी आवाज कम कर दी गई है. ऐसे में राज ठाकरे ने सीएम योगी को बधाई दी तो उद्धव ठाकरे को भोगी बता डाला है. 

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बता दें कि बाल ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना 1966 में एक मराठी पहचान स्थापित करने के तौर पर की थी, लेकिन बाद सियासी संगठन का रूप ले लिया गया. 1980-90 के दशक में शिवसेना ने राजनीतिक एजेंडा के तौर पर हिंदुत्व को गले लगा लिया. बाल ठाकरे को उनके समर्थक हिंदू हृदय सम्राट कहते थे. शिवसेना की छवि एक कट्टर हिंदुवादी पार्टी के तौर पर रही, लेकिन 2019 में शिवसेना ने अपने वैचारिक विरोधी कांग्रेस-एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाया. इसके बाद से ही शिवसेना पर हिंदुत्व की राजनीति को छोड़ देने के आरोप लग रहे हैं.

वहीं, राज ठाकरे पिछले दो दशक से आक्रममक मराठी कार्ड खेलकर देख चुके हैं, लेकिन सियासी सफलता हासिल नहीं कर सकें. ऐसे में अब राज ठाकरे अपने चाचा बाल ठाकरे के नक्शे कदमों पर चल रहे हैं. बाल ठाकरे ने जिस तरह से मराठी पहचान की राजनीति शुरू की थी और फिर हिंदुत्व को अपना लिया था, उसी राह पर राज ठाकरे हैं. बाला ठाकरे ने नब्बे के दशक में सड़क पर पढ़ी जाने वाली नमाज और लाउडस्पीकर से दी जाने वाली अजान को राजनीतिक मुद्दा बनाया था. 

1992 में मस्जिदों से दी जाने वाली अजान के खिलाफ बाला साहब ठाकरे के आदेश पर मुंबई के कई मंदिरों में महाआरती के आयोजन किया था. ऐसे में ही राज ठाकरे ने अब हनुमान चलीसा के बाद अक्षय तृतीया के मौके पर समूचे महाराष्ट्र में महाआरती पाठ का आह्वान भी किया. इतना ही नहीं राज ठाकरे ने जून के शुरुआती दिनों में अयोध्या में रामलला के दर्शन करने जाने का ऐलान कर रखा है. इस तरह राज ठाकरे महाराष्ट्र में हिंदुत्व के इर्द-गिर्द अपनी सियासी तानाबाना बुनने में जुटे हैं. 

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दरअसल, मौजूदा भारतीय राजनीति में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद दो सबसे सबसे बड़े सियासी ट्रेंड हैं. बीजेपी इन दोनों को लेकर अपना सियासी एजेंडा सेट करती नजर आती है. चुनाव में बीजेपी की इन मुद्दों कामयाबी भी साफ मिलती दिखती है. ऐसे में महाराष्ट्र की बदली हुई सियासत में राज ठाकरे हिंदुत्व और राष्ट्रवाद दोनों ही मुद्दों पर कदम बढ़ा रहे हैं, जिसके लिए मस्जिदों  के लाउडस्पीकर पर बैन लगाने की मांग कर रहे हैं. ऐसे में योगी की तरीफा कर रहे हैं तो उद्धव ठाकरे को भोगी बताने से भी परहेज नहीं कर कहें. 

शिवसेना महाराष्ट्र की सत्ता में है और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे धार्मिक मुद्दों के बजाय विकास या उस तरह के मुद्दों पर अपनी छवि बनाना चाहती है. ऐसे में उन्हें उनके ही उठाए मुद्दों पर घसीटना विपक्ष की राजनीति है और राज ठाकरे वो स्पेस लेना चाहते हैं जिसपर शिवसेना अब खुलकर खेलती नहीं दिख रही है. है. राज ठाकरे का आक्रामक हिंदुत्व चर्चा में है. मुंबई और ठाणे में रैली करने के बाद राज ठाकरे पुणे में हनुमान चालीसा पाठ में हिस्सा लिया और अब एक मई को औरंगाबाद में रैली करने जा रहे हैं.

राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि राज ठाकरे का हिंदुत्व को लेकर आक्रामक होने के पीछे उनके बीजेपी से हाथ मिलाने की तैयारी है. राज ठाकरे एक बहुत अच्छे वक्ता हैं. बड़ी तादाद में लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकते हैं. ऐसे में अगर राज ठाकरे ने जिस तरह से महाराष्ट्र में हिंदुत्व का झंडा उठाया हैं, लेकिन सवाल यह है कि शिवसेना के हिंदू वोटों को वो अपनी तरफ क्या आकर्षित करेगा?

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राज ठाकरे के नए हिंदुत्व के राजनीतिक नए अवतार में नजर आ रहे ताकि महाराष्ट्र में शिवसेना के पारंपरिक हिंदू वोटबैंक में सेंध लगा सकें. इतना ही नहीं राज ठाकरे को बीजेपी के करीब आने का मौका भी मिल सकता है. राज ठाकरे की कट्टर मराठी और उत्तर भारतीय विरोधी छवि के चलते बीजेपी भी उनसे दूरी बनाए रख चलती थी, लेकिन जिस तरह से फिलहाल हिंदुत्व के मुद्दे पर समर्थन में खड़ी नजर आ रही और बीजेपी  के साथ उनकी नजदीकियां भी साफ दिख रही हैं. राज ठाकर को अब कजिन भाई उद्धव ठाकरे से ज्यादा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अच्छे नजर आ रहे हैं. 

राज ठाकरे उग्र हिंदुत्व का तेवर पिछले दो साल से दिख रहा है. राज ठाकरे ने 2020 जनवरी में अपनी पार्टी का चौरंगी झंडा बदलकर भगवा रंग दिया और शिवाजी की मुहर को अपनाया. राज ठाकरे ने मंच पर सावरकर की फोटो सजाकर हिंदुत्व की दिशा में कदम बढ़ाने के मंसूबे जाहिर करते हुए कहा था कि ये वो झंडा था, जो पार्टी की स्थापना करते वक्त उनके मन में था और हिंदुत्व उनके डीएनए में है. 

हालांकि, शिवसेना ने हमेशा ये दिखाने की कोशिश की है कि भले ही उसने बीजेपी का साथ छोड़ दिया है, लेकिन हिंदुत्व को नहीं छोड़ा है. इसीलिए राज ठाकरे ने अयोध्या जाने का फैसला किया तो उसी के बाद उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने रामलला के दर्शन के लिए अयोध्या जाने का ऐलान कर दिया है. ऐसे में साफ है कि हिंदुत्व के मुद्दे पर मनसे और शिवसेना के बीच शह-मात का खेल तेज होगा. इस तरह राज ठाकरे अपनी राजनीति के बदलते रंग के तौर पर क्या बाल ठाकरे के 'असली वारिस' के रूप में स्थापित कर पाएंगे और हिंदू वोटों को साधने में कितना सफल होंगे? 

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