कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. वो पहले ही राजनीति में जाने के संकेत दे चुके हैं. अगर वो ऐसा करते हैं तो यह पहली बार नहीं होगा जब किसी न्यायाधीश ने ज्यूडिशियरी छोड़कर राजनीति में हाथ आजमाने की सोची है. ये कानूनी रूप से गतल कदम भी नहीं है, क्योंकि पद छोड़ने के बाद जजों के द्वारा ऐसा करने पर कोई कानूनी रोक या पाबंदी नहीं है.
बॉम्बे HC के न्यायाधीश कर चुके हैं ये काम
अभिजीत गंगोपाध्याय से पहले बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीश रह चुके विजय बहुगुणा ऐसा कर चुके हैं. विजय बहुगुणा ने फरवरी 1995 में जज के पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद उन्होंने अपना कदम राजनीति की ओर बढ़ा दिया. बाद में वो संसद के सदस्य बने और फिर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी रहे.
रिटार्यमेंट के बाद पहुंचे राज्यसभा
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके न्यायमूर्ति एम. रामा जोइस अपने रिटार्यमेंट के बाद राज्यसभा के सदस्य बने. वह 2002 से 2004 तक झारखंड और बिहार के राज्यपाल भी रहे. वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े थे. न्यायाधीशों का राजनीति में प्रवेश सिर्फ हाईकोर्ट तक सीमित नहीं है. सुप्रीम कोर्ट से भी ऐसे कई उदाहरण हैं. सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीशों ने राजनीति में प्रवेश किया है और कई संवैधानिक पदों पर रहे हैं.
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई
जस्टिस रंजन गोगोई 3 अक्टूबर 2018 से 17 नवंबर 2019 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे. वो भारत के 46वें मुख्य न्यायाधीश थे. अपने पोस्ट से सेवानिवृत्ति के करीब 4 महीने बाद न्यायमूर्ति गोगोई ने राज्यसभा सदस्य के रूप में शपथ लिया. उनका शपथ ग्रहण विपक्षी दलों के विरोध और वॉकआउट के बीच हुआ. कांग्रेस ने रंजन गोगोई को राज्यसभा में मनोनित करने के फैसले को भारतीय न्यायपालिका का अपमान कहा. तब कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अतीत में कांग्रेस सरकारों द्वारा पूर्व मुख्य न्यायाधीशों सहित विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित लोगों को राज्यसभा भेजने की परंपरा का जिक्र करते हुए गोगोई को संसद के ऊपरी सदन में भेजने के अपनी सरकार के फैसले का बचाव किया.
न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर
जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर 17 फरवरी 2017 से 4 जनवरी 2023 तक सुप्रीम कोर्ट के जज रहे. जस्टिस अब्दुल नज़ीर को रिटायरमेंट के एक महीने बाद ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया.
जस्टिस अशोक भूषण
अशोक भूषण 13 मई 2016 से 4 जुलाई 2021 तक सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में कार्यरत रहे. जस्टिस अशोक भूषण को उनके रिटायरमेंट के 5 महीने बाद 8 नवंबर 2021 को NCLT (National Company Law Appellate Tribunal) के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया.
जस्टिस पी. सदाशिवम
पी. सदाशिवम 19 जुलाई 2013 से 26 अप्रैल 2014 तक भारत के 40वें मुख्य न्यायाधीश रहे. रिटायरमेंट के 5 महीने बाद जस्टिस पी सदाशिवम ने केरल के राज्यपाल के रूप में शपथ ग्रहण किया.
न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा
न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा भारत के 21वें मुख्य न्यायाधीश थे. वो 25 सितंबर 1990 से 24 नवंबर 1991 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे. अपने रिटायरमेंट के बाद जस्टिस मिश्रा 1993 से 1996 तक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पहले अध्यक्ष रहे. वह 1998 में राज्यसभा पहुंचे. 2004 में उन्होंने धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए बने राष्ट्रीय आयोग को हेड किया.
जस्टिस फातिमा बीबी
जस्टिस फातिमा बीबी 10 अक्टूबर 1989 से 29 अप्रैल 1992 तक सुप्रीम कोर्ट की जज रहीं. रिटायरमेंट के बाद वो 3 नवंबर 1993 से 24 जनवरी 1997 तक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सदस्य रहीं. 1997 में देवेगौड़ा सरकार ने उन्हें तमिलनाडु का राज्यपाल नियुक्त किया. 2001 में उन्होंने तत्कालीन भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के एक फैसले के बाद अपना इस्तीफा दे दिया था. सरकार ने राष्ट्रपति से उन्हें वापस बुलाने की सिफारिश की थी.
जस्टिस बहरुल इस्लाम
जस्टिस बहरुल इस्लाम सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में 4 दिसंबर 1980 से 12 जनवरी 1983 तक कार्यरत रहें. इसके बाद जस्टिस इस्लाम को जून 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राज्यसभा भेजा था. इससे पहले वह 1962 से 1972 तक लगातार दो बार असम से राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके थे.
न्यायमूर्ति मुहम्मद हिदायतुल्लाह
मुहम्मद हिदायतुल्लाह 25 फरवरी 1968 से 16 दिसंबर 1970 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यरत रहे. बाद में उन्होंने 31 अगस्त 1979 से 30 अगस्त 1984 तक भारत के छठे उपराष्ट्रपति के रूप में भी कार्य किया.
न्यायमूर्ति के. एस. हेगडे
जस्टिस के. एस. हेगडे 17 जुलाई 1967 से 30 अप्रैल 1973 तक सुप्रीम कोर्ट के जज रहे. अप्रैल 1973 में जब उनसे जूनियर रहे उनके एक सहयोगी को भारत का CJI नियुक्त किया गया तब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस्तीफा दे दिया था. बाद में 1977 में वह जनता पार्टी के टिकट पर बैंगलोर दक्षिण सीट से चुनाव जीतकर छठी लोकसभा के लिए चुने गए. जस्टिस हेगडे 21 जुलाई 1977 को लोकसभा के अध्यक्ष बने.
जस्टिस एस. फजल अली
एस. फजल अली 26 जनवरी 1950 से 18 सितंबर 1951 तक सुप्रीम कोर्ट के जज रहे. जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री रहते जस्टिस अली पहले 1952 से 1954 तक ओडिशा के और फिर 1956 से 1959 तक असम के राज्यपाल रहे.