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'बॉर्डर पर हालात असामान्य, सुरक्षा की अनदेखी नहीं कर सकते...', चीन विवाद पर बोले जयशंकर

भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया कि चार साल से सैन्य बलों की तैनाती बेस पॉजिशन से आगे की जा रही है, जो कि 'असामान्य' है. उन्होंने बताया कि 1988 में राजीव गांधी के चीन दौरे के बाद जो करार हुआ था उसी आधार पर दोनों देशों के संबंध चल रहे थे. 2020 में गलवान घाटी में झड़प के बाद हालात बदले और कहा कि हमें देश की सुरक्षा से समझौता नहीं करना चाहिए.

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एस जयशंकर
एस जयशंकर

भारत-चीन के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आगाह किया है कि देश की सुरक्षा की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए. उन्होंने बताया कि एलएसी पर सैन्य बलों की तैनाती 'असामान्य' है.

गलवान घाटी में हुई झड़प का हवाला देते हुए विदेश मंत्री ने बताया की चीन को सैन्य तैनाती का जवाब भी उसी तरह से दिया गया. भारत ने भी सीमा पर सेना की तैनाती की.

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जब राजीव गांधी ने किया था चीन का दौरा

विदेश मंत्री जयशंकर ने बताया, "1962 के युद्ध के बाद राजीव गांधी अपने कार्यकाल के दौरान 1988 में चीन दौरे पर गए थे. इसका मुख्य कारण यही था कि दोनों देश सीमा को लेकर चल रहे मतभेदों पर चर्चा करेंगे और शांति बनाए रखने पर ठोस बातचीत करेंगे और बाकी रिश्ते जारी रहेंगे." उन्होंने बताया कि तब से चीन के साथ संबंधों का यही आधार रहा है.

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बेस पॉजीशन से आगे है सैन्य बलों की तैनाती

विदेश मंत्री ने कहा कि 2020 में चीनियों ने कई समझौतों का उल्लंघन किया था और तभी वे हमारी सीमा पर बड़ी संख्या में सेना की तैनाती कर दी थी. चीन ने ऐसा तब किया जब हम कोविड लॉकडाउन में थे. उन्होंने कहा कि इसके जवाब में भारत ने भी सैन्य बलों की तैनाती की. जयशंकर ने बताया कि अब चार साल से, सेनाएं गलवान में सामान्य बेस पॉजीशन से आगे तैनात की जा रही हैं.

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'देश की सुरक्षा की अनदेखी नहीं करनी चाहिए'

विदेश मंत्री ने कहा, "एलएसी पर (सैन्य बलों की) बहुत ही असामान्य तैनाती है. दोनों देशों के बीच तनाव को देखते हुए...भारतीय नागरिक के रूप में, हममें से किसी को भी देश की सुरक्षा की अनदेखी नहीं करनी चाहिए...यह आज एक चुनौती है." उन्होंने कहा कि इसके पीछे एक आर्थिक चुनौती भी है, जो "पिछले वर्षों में विनिर्माण और बुनियादी ढांचा क्षेत्रों की अनदेखी" के कारण है.

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