मोदी सरकार ने वक्फ कानून में संशोधन को ऐतिहासिक कदम बताते हुए दावा किया है कि ये पसमांदा यानी पिछड़े मुसलमानों के लिए सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा बदलाव लाएगा. इस संशोधन से वक्फ बोर्ड में पारदर्शिता बढ़ेगी और पसमांदा समुदाय को उनका हक मिलेगा. लेकिन क्या ये वास्तव में सामाजिक न्याय की ओर कदम है या विपक्षी नेताओं के दावों के अनुसार ये मुस्लिम समुदाय में बंटवारे की कोशिश है? हमने इस मुद्दे पर पसमांदा एक्टिविस्ट डॉ. फैयाज अहमद फैजी, उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष राजेश वर्मा और समाजवादी पार्टी के सांसद आनंद भदौरिया से बात की.
वक्फ बोर्ड में हिस्सेदारी का सवाल क्यों?
फैयाज अहमद फैजी ने बताया कि वक्फ बोर्ड अब तक कुछ प्रभावशाली लोगों यानी अशराफ वर्ग के कंट्रोल में था. वक्फ की संपत्तियों का उद्देश्य कमजोर वर्गों की मदद करना था, लेकिन इसका लाभ केवल अशराफ उठा रहा था. नए कानून से पसमांदा समुदाय और महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिलेगा, जिससे वक्फ की इनकम का इस्तेमाल उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी जरूरतों के लिए हो सकेगा. वहीं, सपा सांसद आनंद भदौरिया ने आरोप लगाया कि BJP की नजर वक्फ की जमीनों पर है. वे इसे अपने उद्योगपति मित्रों को देना चाहते हैं. इसी वजह से मोदी सरकार वक्फ कानून में संशोधन लाई है.
संशोधन मात्र से वक्फ बोर्ड में आ जाएगी पारदर्शिता?
उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष राजेश वर्मा ने कहा कि वक्फ कानून में ये संशोधन तीन तलाक कानून की तरह ही क्रांतिकारी है, जिसने मुस्लिम महिलाओं को राहत दी. उन्होंने बताया कि नए कानून से वक्फ बोर्ड की इनकम में पारदर्शिता आएगी और इसका इस्तेमाल पसमांदा समुदाय की बेहतरी के लिए होगा. राजेश वर्मा ने ये भी कहा कि विरोध करने वाले लोग वही हैं जो वक्फ बोर्ड में भ्रष्टाचार से लाभ उठा रहे थे.
मुस्लिमों में बंटवारे का आरोप सच या राजनीति?
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लोकसभा में चर्चा के दौरान वक्फ कानून में संशोधन को मुस्लिम समुदाय में बंटवारा पैदा करने की कोशिश बताया था. इस पर फैयाज अहमद फैजी ने जवाब दिया कि मुस्लिम समाज में पहले से ही अशराफ और पसमांदा के बीच विभाजन है. उन्होंने कहा कि अगर ये कानून पसमांदा के हित में है तो इसे समर्थन देना चाहिए. वहीं, राजेश वर्मा ने भी इसे 'सबका साथ, सबका विकास' का हिस्सा बताते हुए बंटवारे के आरोप को खारिज किया. फैयाज अहमद फैजी ने एक उदाहरण देते हुए कहा, 'भूखा आदमी पहले ये देखता है कि उसे खाना कौन दे सकता है, पसमांदा समाज भी अपने हित के लिए इस कानून का समर्थन करेगा.' वहीं, सपा सांसद आनंद भदौरिया ने कहा कि वक्फ बोर्ड में पहले भी महिलाओं और मुसलमानों के सभी वर्गों के लिए जगह थी. खैर अब वक्फ का संशोधित कानून तो आ ही चुका है. समय बीतने के साथ हम देखना चाहेंगे कि इस संशोधन से मुस्लिम समाज का क्या भला होता है.
क्या मुस्लिम समुदाय करेगा भरोसा?
फैयाज अहमद फैजी ने कहा कि कानून लागू होने के बाद इसके प्रभाव को देखना जरूरी होगा. उन्होंने NDA और गैर-NDA राज्यों में इसके लागू होने पर नजर रखने की बात कही. वहीं, राजेश वर्मा ने विश्वास जताया कि जैसे-जैसे पसमांदा समाज को लाभ मिलेगा वैसे-वैसे उनका भ्रम और विरोध खत्म हो जाएगा. उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून का उदाहरण देते हुए कहा कि शुरुआत में तो इसका विरोध हुआ था लेकिन समय के साथ लोगों को समझ आया कि इससे किसी की नागरिकता नहीं जाएगी. वहीं, आनंद भदौरिया ने कहा कि JPC में जाने के बाद वक्फ बिल के लिए जो संशोधन मुस्लिम समाज चाहता था वो हमारी पार्टी ने कमेटी को दिए थे. लेकिन सरकार ने उन संशोधनों को नहीं माना. ऐसे में मुस्लिम समाज सरकार पर भरोसा कैसे करेगा. हमारी सरकार जब आएगी तो हम इसमें फिर से संशोधन करेंगे.