
चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर सुपर डैम बना रहा है. इसे लेकर पूर्वोत्तर के दो राज्यों अरुणाचल प्रदेश और असम के मुख्यमंत्रियों की राय बंटी हुई है कि सुपर डैम भारत में ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह पर असर डालेगा. अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इसे टिकिंग वाटर बम बता दिया है, वहीं असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा का आकलन अलग है. असम के सीएमका आकलन डर को कम करने वाला है. दोनों में से कौन सही है?
यह मेगा डैम निश्चित रूप से ब्रह्मपुत्र (चीन में यारलुंग त्सांगपो) नदी के पानी का हथियार की तरह इस्तेमाल करने की क्षमता चीन को देगा, लेकिन इससे नदी के प्रवाह में कोई महत्वपूर्ण बदलाव होने की संभावना नहीं है. ऐसा इंडिया टुडे की ओपन सोर्स इंटेलिजेंस टीम (OSINT) के विश्लेषण में सामने आया है. इस विश्लेषण में आए नतीजों का विशेषज्ञों ने भी समर्थन किया है.
ब्रह्मपुत्र का सपोर्ट सिस्टम
ब्रह्मपुत्र एक जटिल रिवर सिस्टम है, जिसमें कई सहायक नदियां भी शामिल हैं. इसकी मुख्य धारा की लंबाई 2880 किलोमीटर है, जिसमें से करीब 56 फीसदी तिब्बत, 43 फीसदी भारत और 337 किलोमीटर बांग्लादेश में पड़ता है. ब्रह्मपुत्र नदी कैचमेंट का करीब करीब 50.5 फीसदी हिस्सा चीन में पड़ता है.
एक नदी का प्रवाह निरंतरता के लिए पहाड़ी झरने, पिघले हिमनद, अपलैंड वेटलैंड या पीट बोग्स, एक्विफर और सहायक नदियों पर निर्भर करता है. ब्रह्मपुत्र नदी के संदर्भ में बात करें, तो इनमें से ज्यादातर चीन के नियंत्रण वाले तिब्बत में ही हैं हैं. अनुमानों के मुताबिक ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह में दो तिहाई से अधिक, करीब 70 फीसदी योगदान वर्षा जल का है.
कई अन्य प्रमुख नदियों की ही तरह यारलुंग त्सांगपो अपने उद्गम स्थल कैलाश पर्वत के पास से जब निकलती है, इसका रूप एक धारा जैसा ही रहता है और जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, इसका आकार बढ़ता जाता है. असम में सादिया के पास ब्रह्मपुत्र नदी में लुहित और दिबांग समेत तीन सहायक नदियों का संगम होता है. इसके बाद ब्रह्मपुत्र का आकार और विशाल हो जाता है.
भारत पर प्रभाव
भारत पर चीनी मेगा डैम के प्रभाव की बात करें तो दिल्ली स्थित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) के डॉक्टर नीलांजन घोष के मुताबिक यारलुंग त्सांगपो का ब्रह्मपुत्र के कुल प्रवाह में योगदान महज 10 से 15 फीसदी ही है. इंडिया टु़डे से नीलांजन घोष न कहा कि समस्या कमी की नहीं, सरप्लस की हो सकती है. चीन के बांध से अचानक पानी छोड़कर भारत में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न कर देने की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसी संभावनाएं बहुत दूर हैं, यह रन ऑफ रिवर परियोजना है.
डेटा देखें तो भारत में प्रवेश करने के बाद नदी का वार्षिक औसत प्रवाह काफी बढ़ जाता है, जो इस बात की तरफ संकेत करता है कि इसके प्रमुख जलस्रोत भारत में अधिक हैं. चीन जिस जगह पर सुपर डैम का निर्माण कर रहा है, वहां से कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर ऊपर तिब्बत के नुक्सिया में प्रवाह 31 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) रहता है. नदी जब चीन से निकलती है, तब इसका प्रवाह 78 बीसीएम रहता है, जो अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट में 185 बीसीएम पहुंच जाता है. गुवाहाटी पहुंचते-पहुंचते ब्रह्मपुत्र का प्रवाह 526 बीसीएम तक बढ़ जाता है.

शोधकर्ताओं सायनांगशु मोदक और नीलांजन घोष की ओर से संकलित डेटा यह दर्शाता है कि ब्रह्मपुर नदी बेसिन में पड़ने वाले भारतीय क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है. तिब्बत की राजधानी ल्हासा में औसतन 400 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा रिकॉर्ड की गई है, जो तिब्बत सीमा के पास तूतिंग में बढ़कर 767 मिमी और गुवाहाटी में 1561 मिमी तक पहुंच जाती है.
वर्षा के पैटर्न में इस विविधता के लिए क्लाइमेट, एल्टिट्यूड, टेंपरेचर, प्रेशर, लैटिट्यूड और ओरोग्राफी जैसे कारक वजह बताए जाते हैं. तिब्बती पठार के उत्तरी हिस्से सूखे रहते हैं, जबकि दक्षिणी हिस्से में दुनिया के सबसे गहरे यारलुंग त्सांगपो ग्रैंड कैन्यन से नमी पहुंचती है. इसकी वजह से इस हिस्से में थोड़ी वर्षा होती है. चीनी शोधकर्ताओं का इसे लेकर 2015 में एक शोधपत्र प्रकाशित हुआ था.
मोदक-घोष के शोध के मुताबि, नवंबर से मार्च तक कम बारिश वाले मौसम में भी नदी का प्रवाह तिब्बत के मुकाबले भारत में काफी अधिक रहता है. इस दौरान अरुणाचल प्रदेश में होने वाली मध्यम बारिश ब्रह्मपुत्र का प्रवाह बनाए रखने में मददगार होती है. फिर भी, चिंता बनी हुई है.
इंडिक रिसर्चर्स फोरम के शोधकर्ताओं के मुताबिक, चीनी मेगा डैम के कारण सबसे अधिक संभावना इस बात की है कि कम बारिश वाले मौसम में ब्रह्मपुत्र का प्रवाह करीब 10 फीसदी तक कम हो सकता है. फोरम के श्रीनिवास बालाकृष्णन का कहना है कि इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए सियांग अपर मल्टीपर्पज प्रोजेक्ट जैसे रणनीतिक कदम उठाकर पानी जमा कर सकता है. हालांकि, यह परियोजना अभी तैयारी के चरण में है और स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं.
कुछ लोग इस बात को लेकर भी चिंता जाहिर कर रहे हैं कि चीन बांध से ब्रह्मपुत्र के पानी को अपने सूखे पूर्व-पश्चिम के क्षेत्रों की ओर मोड़ सकता है. इस तरह के प्रयासों के लिए पठारों और भूकंप संभावित क्षेत्रों में बड़े स्तर पर सुरंग निर्माण की जरूरत होगी, जिसे निकट भविष्य में अव्यावहारिक बताया जा रहा है.
बालाकृष्णन ने आगे कहा कि बांध के प्राथमिक डिजाइन में नामजगबरवा चोटी से 20 किलोमीटर लंबी सुरंगें शामिल हैं, यह पनबिजली परियोजना पर केंद्रित है. नदी के आधे प्रवाह को बिजली के लिए मोड़ा जा रहा है, बड़े पैमाने पर पानी ट्रांसफर नहीं किया जा रहा. उन्होंने साल 2017 की एक रिपोर्ट का भी हवाला दिया, जिसमें यह कहा गया था कि पास के पठारों तक पानी पंप करना भी अव्यावहारिक है और इस बात की संभावनाएं अधिक हैं इसे वापस नदियों में बहाया जाएगा.