प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने देश में जातिगत जनगणना कराने का ऐलान कर दिया है. जातिगत जनगणना के फैसले पर राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने अपनी मुहर लगा दी है. मोदी सरकार के इस फैसले का घटक दलों के साथ ही विपक्षी कांग्रेस और अन्य दलों ने भी स्वागत किया है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), समाजवादी पार्टी (सपा) समेत ओबीसी पॉलिटिक्स का चेहरा रही पार्टियों ने सरकार के फैसले को विपक्षी इंडिया ब्लॉक की जीत बताया है.
जातिगत जनगणना कराने का ऐलान करते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों पर निशाना भी साधा. उन्होंने कहा कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने केवल राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इसका इस्तेमाल किया है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का दांव चला और इस मुद्दे पर मुखर रहे विपक्षी दलों को कठघरे में भी खड़ा कर दिया. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने जातिगत जनगणना, संविधान का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था.
इसका असर नतीजों पर भी दिखा और बीजेपी, एनडीए की सीटें घटीं. शायद अब बीजेपी को यह एहसास हो गया है कि चुनावी राजनीति में लंबे समय तक दबदबा बनाए रखना है तो समाज की धारा के साथ चलना होगा. साल 2014 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी की पीएम उम्मीदवारी के बाद ओबीसी पॉलिटिक्स की जिस पिच पर पार्टी मजबूती से उभरी, इस दांव के पीछे उस जमीन को और मजबूत करने की रणनीति भी प्रमुख वजह बताई जाती है. पिछले कुछ वर्षों में आरक्षण लागू करने का श्रेय लेने की होड़ में बीजेपी खुलकर उतरी है तो इसके पीछे भी यही रणनीति हो सकती है.
दरअसल, वीपी सिंह की अगुवाई वाली सरकार ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर ओबीसी को आरक्षण का लाभ दिया था. वीपी सिंह की सरकार को तब बीजेपी का समर्थन भी हासिल था. आरक्षण के खिलाफ जगह-जगह हिंसक विरोध प्रदर्शन होने लगे. मंडल पॉलिटिक्स को काउंटर करने के लिए कमंडल पॉलिटिक्स की शुरुआत हुई. बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लालककृष्ण आडवाणी राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्रा पर निकल पड़े थे. अब जातिगत जनगणना के ऐलान से आधिकारिक तौर पर कमंडल वाली पार्टी ने मंडल पॉलिटिक्स में एंट्री का उद्घोष कर दिया है.
कमंडल वाली पार्टी जब मंडल पॉलिटिक्स की पिच पर उतर आई तो राहुल गांधी, अखिलेश यादव, लालू यादव और तेजस्वी यादव जैसे नेता क्या करेंगे, जिनकी राजनीति का आधार ही मंडल पॉलिटिक्स है. अब सवाल उठ रहे हैं कि बीजेपी के जातिगत जनगणना वाले दांव से क्या देश में मंडल पॉलिटिक्स का नया दौर शुरू होगा? इसे पांच पॉइंट में समझा जा सकता है.
1- आरक्षण कैप
विपक्षी कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ही जातिगत जनगणना को लेकर अपना स्टैंड क्लियर कर दिया था. कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए जारी किए गए घोषणा पत्र में जातिगत जनगणना कराने के साथ ही यह वादा भी किया था कि हम सत्ता में आए तो आरक्षण से 50 फीसदी का कैप हटा देंगे. राहुल गांधी सार्वजनिक मंचों से भी कई बार खुलकर आरक्षण से कैप हटाने की मांग कर चुके हैं. जातिगत जनगणना के बाद विपक्षी पार्टियां आरक्षण कैप का मुद्दा अधिक मुखर होकर उठा सकती हैं.
2- आउटसोर्सिंग में आरक्षण
समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव भी जातिगत जनगणना को लेकर मुखर रहे हैं. अखिलेश यादव ने संसद में जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि अगर आप ये नहीं कराएंगे, तो हम जब भी सत्ता में आएंगे जातिगत जनगणना कराएंगे. अखिलेश ने आरक्षण का मुद्दा उठाते हुए आगे की रणनीति भी साफ कर दी थी. उन्होंने कहा था कि आउटसोर्सिंग और संविदा पर जो थोड़ी-बहुत नौकरियां दी भी जा रही हैं, उनमें दलितों और पिछड़ों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है.
3- निजी क्षेत्र में आरक्षण
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने संसद में यह भी कहा था कि सभी उपक्रम बेच दिए गए. निजी क्षेत्र में आरक्षण का प्रावधान नहीं है. अखिलेश के इस बयान को निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग को लेकर मुहिम का संकेत माना जा रहा था. अब जातिगत जनगणना के बाद मंडल पॉलिटिक्स का नया दौर शुरू हुआ तो विपक्षी पार्टियां निजी क्षेत्र में आरक्षण का प्रावधान करने की मांग को लेकर अधिक मुखर नजर आ सकती हैं.
4- कोटा के अंदर कोटा
जनगणना में जातियों की गणना के साथ ही आर्थिक हालात का भी सर्वे होगा. इस रिपोर्ट के बाद यह तस्वीर भी अधिक स्पष्ट रूप में सामने होगी कि आर्थिक स्थिति के मोर्चे पर किस जाति में क्या हालात हैं. ऐसे में माइक्रो लेवल पर कोटा के अंदर कोटा की राजनीति भी शुरू हो सकती है. वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि बिहार में नीतीश कुमार ने पिछड़ा और अति पिछड़ा, दलित और महादलित के लिए अलग-अलग आरक्षण पहले से ही है. हो सकता है कि बहुत पिछड़ी जातियों के लिए अलग कोटा की मांग उठने लगे.
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5- ट्रांसफर-पोस्टिंग
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से लेकर सदन में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के नेता अखिलेश यादव तक अधिकारियों की संख्या को लेकर सरकार को घेरते रहे हैं. राहुल गांधी ने संसद में सचिव स्तर के अधिकारियों के मामले में ओबीसी, एससी और एसटी के प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाया था. वहीं, अखिलेश यादव हाल ही में पुलिस-प्रशासन में अधिकारियों की तैनाती को लेकर पीडीए राग छेड़ चुके हैं. मंडल पॉलिटिक्स की पिच पर उतरी बीजेपी को घेरने के लिए विपक्षी दल ट्रांसफर- पोस्टिंग में ओबीसी, एससी और एसटी अधिकारियों-कर्मचारियों की संख्या को लेकर भी मुखर हो सकते हैं.
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नैरेटिव की लड़ाई भी देखने को मिल सकती है, जिसके संकेत लालू यादव की एक्स पोस्ट से भी मिलती है. लालू यादव ने एक्स पर पोस्ट कर कहा है कि अभी बहुत कुछ बाकी है. क्रेडिट वॉर छिड़ा ही है. विपक्षी पार्टियां इसे पीडीए और अपनी जीत बता रही हैं. वहीं, बीजेपी विपक्षी कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को कठघरे में खड़ा कर रही है.