लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों तक जाति जनगणना की मांग राहुल गांधी का सबसे बड़ा राजनीतिक हथियार रही है. अब जब केंद्र सरकार ने पूरे देश में जातिगत सर्वे कराने का ऐलान कर दिया है, तो सवाल उठ रहा है कि क्या बीजेपी ने राहुल गांधी के इस मुख्य मुद्दे को हाईजैक कर लिया है? आइए समझते हैं इस घटनाक्रम के 6 बड़े राजनीतिक मायने...
1. राहुल गांधी को 'निष्क्रिय' करने की कोशिश
बीजेपी ने जाति जनगणना की घोषणा करके राहुल गांधी को उनके मुख्य राजनीतिक एजेंडे से वंचित करने की रणनीति अपनाई है. 2024 के चुनावों में कांग्रेस ने जातिगत जनगणना और सामाजिक न्याय को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया था, जिससे पार्टी को सीटों में बढ़त मिली थी.
2. ओबीसी राजनीति में सेंध लगाने की कोशिश
बीजेपी का मकसद राहुल गांधी की ओबीसी केंद्रित राजनीति को कमजोर करना है. राहुल ने खुद स्वीकार किया था कि पार्टी ने जब ऊंची जातियों, दलितों और मुस्लिमों पर ध्यान केंद्रित किया, तब ओबीसी उनसे दूर हो गए. अब वह इस वर्ग को फिर से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे बीजेपी भांप चुकी है.
3. बिहार की रणनीति पर निशाना
जाति जनगणना कराने के इस कदम का सीधा असर बिहार की जाति-आधारित राजनीति पर पड़ेगा, क्योंकि इससे भाजपा को यह नैरेटिव सेट करने का मौका मिलेगा कि वह सामाजिक न्याय की पक्षधर है और काम से मतलब रखती है.
4. क्रेडिट लेने की होड़ में सेंध
कांग्रेस अब इसे राहुल गांधी की जीत बताएगी और उन्हें सामाजिक न्याय का योद्धा पेश करेगी. हालांकि, सरकार द्वारा पहल किए जाने के बाद यह दावा करना कांग्रेस के लिए अब आसान नहीं रह गया है.
5. कांग्रेस का दबाव जारी रहेगा
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि राहुल गांधी इस मुद्दे पर हार नहीं मानेंगे, बल्कि पहले जाति जनगणना के आंकड़ों को जारी करने और फिर जाति जनगणना के आंकड़ों के अनुसार हाशिए पर पड़े वर्गों के लिए अनुकूलित नीतियों की मांग करते रहेंगे. विचार ये है कि दीपक जलता रहे.
6. कांग्रेस शासित राज्यों में नई सियासत
तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों में कांग्रेस ने खुद को ओबीसी मुद्दों की सबसे मुखर आवाज के रूप में प्रस्तुत किया है. अब बीजेपी के सर्वे ऐलान से कांग्रेस को वहां भी राजनीतिक समीकरणों को नए सिरे से देखना पड़ेगा.