
देश की सबसे पुरानी पर्वतमाला अरावली को लेकर इन दिनों पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है. सवाल सिर्फ़ एक परिभाषा का नहीं, बल्कि उत्तर भारत के भविष्य, पर्यावरण और जीवन का है. आरोप लगाए जा रहे हैं कि अरावली की नई परिभाषा बदलकर खनन को आसान बनाया जा रहा है, जिससे आने वाले वर्षों में ये पहाड़ पूरी तरह खत्म हो सकते हैं.
आज राजस्थान के अलग अलग शहरों में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं और ये ऐलान हुआ है कि 24 दिसंबर से इसके खिलाफ एक जनयात्रा निकाली जाएगी. बड़ी बात ये है कि केन्द्र सरकार इस मामले में सभी आरोपों से इनकार कर रही है और उसका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस परिभाषा को स्वीकार किया है, उसे लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है.
सबसे पहले आपको ये बताते है कि ये पूरा विवाद हो क्यों रहा है. तो इस विवाद की जड़ में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला है. सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की पहाड़ियों में अवैध खनन को रोकने के लिए केन्द्र सरकार से जवाब मांगा था. अदालत का कहना ये था कि अभी अरावली की पहाड़ियों को लेकर कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है और सभी राज्य अपने हिसाब से ये तय करते हैं कि वो किस पहाड़ को पहाड़ मानेंगे और किस पहाड़ पर खनन करने की इजाजत देंगे.
ऐसे शुरू हुआ कन्फ्यूजन
इसी कन्फ्यूज़न को दूर करने के लिए केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने एक कमिटी बनाई थी और इस कमिटी ने जिन सिफारिशों के बारे में सुप्रीम कोर्ट को बताया, उन्हीं पर अब विवाद हो रहा है. अब ये सिफारिशें कौन सी थीं, समझिए- इनमें ये लिखा है कि अगर किसी एक या उससे ज़्यादा पहाड़ों की ऊंचाई 100 मीटर से ज़्यादा है तो ऐसे मामलों में 500 मीटर के पूरे इलाके को अरावली रेंज माना जाएगा. उदाहरण के लिए अगर प्वाइंट A पर कोई पहाड़ है और उसकी ऊंचाई 100 मीटर से ज़्यादा है तो ऐसे मामले में उस पहाड़ के 500 मीटर के दायरे को अरावली रेंज मान लिया जाएगा और वहां किसी भी प्रकार के खनन की इजाज़त नहीं दी जाएगी.

इसके अलावा अगर प्वाइंट A से कुछ दूर एक और पहाड़ की ऊंचाई 100 मीटर से ज़्यादा है तो उसके भी 500 मीटर के दायरे को अरावली रेंज में गिना जाएगा और वहां इस पूरे इलाके में खनन को रोकना सरकार का काम होगा.
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अब इन सिफारिशों को जब सुप्रीम कोर्ट में पेश किया गया तो सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें स्वीकार कर लिया और ये कहा कि जो पहाड़ इस परिभाषा के हिसाब से अरावली रेंज में नहीं आएंगे, वहां Sustainable Mining हो सकेगी. Sustainable Mining ऐसी खनन प्रक्रिया को कहते हैं, जिसमें खनिज निकालते वक्त इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि इससे पर्यावरण, पानी, जंगल और लोगों की ज़िंदगी को स्थायी नुकसान ना पहुंचे.
लोगों की नाराजगी की असल वजह
अब जब सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला आया तो बहुत सारे लोग और खासकर युवा इससे नाराज़ हो गए और उनका कहना ये है कि इस नई परिभाषा के कारण बहुत सारे अरावली के पहाड़ों को पहाड़ ही नहीं माना जाएगा और अरावली रेंज में बेहिसाब खनन शुरू हो जाएगा. इन लोगों का ये भी कहना है कि इस नई परिभाषा की वजह से अरावली के 90 प्रतिशत पहाड़ खत्म हो जाएंगे क्योंकि इन पहाड़ों की ऊंचाई 100 मीटर से ज़्यादा नहीं है.
अब ये बात पूरी तरह गलत भी नहीं है. अक्टूबर 2024 में Forest Survey of India की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें ये बताया गया था कि राजस्थान के कुल 15 ज़िलों में अरावली के 12081 पहाड़ हैं, जिसमें से सिर्फ 1048 यानी 8.7 प्रतिशत पहाड़ ही ऐसे हैं, जिनकी ऊंचाई 100 मीटर से ज़्यादा है. इसका मतलब ये हुआ कि अकेले राजस्थान में अरावली के 90 प्रतिशत से ज़्यादा पहाड़ों की ऊंचाई 100 मीटर से कम है और अब नई परिभाषा के कारण ये सारे पहाड़ खतरे में आ सकते हैं.
इसी बात को देखते हुए Forest Survey of India ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में एक सुझाव दिया था और वो सुझाव ये था कि 100 मीटर की जगह 30 मीटर या उससे ऊंचे ऐसे छोटे पहाड़ों पर खनन की इजाज़त नहीं देनी चाहिए, जिनकी ढलान 4.57 डिग्री या उससे ज़्यादा हो. अब इस सुझाव में तो 30 मीटर ऊंचे अरावली पहाड़ों को पहाड़ मानने की बात कही गई थी लेकिन केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिशों में इसे 100 मीटर कर दिया गया और आज इसी को लेकर विवाद हो रहा है.

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केंद्र सरकार का तर्क
हालांकि यहां एक कन्फ्यूज़न भी है. जहां विरोध करने वाले लोग ये कह रहे हैं कि इस परिभाषा से 90 प्रतिशत अरावली के पहाड़ अपने पहाड़ होने का दर्जा खो देंगे तो वहीं केन्द्र सरकार ये कह रही है कि इस परिभाषा से 90 प्रतिशत पहाड़ हमेशा के लिए संरक्षित और सुरक्षित हो जाएंगे. और उन्हें कोई नहीं छू पाएगा. असल में सरकार की दलील ये है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अब तक गलत समझा गया है. बहुत सारे लोग ये सोच रहे हैं कि जो पहाड़ 100 मीटर ऊंचे नहीं होंगे, उन्हें पहाड़ नहीं माना जाएगा. जबकि ये सच नहीं है.
सरकार का कहना है कि 100 मीटर की ऊंचाई सिर्फ पहाड़ों की पहचान के लिए रखी गई है और असली परिभाषा ये है कि अगर कोई पहाड़ 100 मीटर से ऊंचा है तो उसके आसपास 500 मीटर के इलाके को अपने आप संरक्षित मान लिया जाएगा. इसके अलावा अगर इस 500 मीटर के इलाके में एक और पहाड़ आता है और उसकी ऊंचाई भी 100 मीटर से अधिक होती है तो उसके भी 500 मीटर के इलाके को अरावली रेंज माना जाएगा और इस तरह जो छोटे पहाड़ हैं और जिनकी ऊंचाई 100 मीटर से कम है, वो अपने आप बड़े पहाड़ों के दायरे में आने से संरक्षित हो जाएंगे.
हालांकि सरकार के इस स्पष्टीकरण के बाद भी बड़ा सवाल यही है कि जब अरावली के पहाड़ों में ज़्यादातर पहाड़ों की ऊंचाई 100 मीटर से कम है तो ऐसे में ये कैसे स्पष्ट होगा कि कौन से पहाड़ पहाड़ रहेंगे और कौन से पहाड़ खनन के हवाले कर दिए जाएंगे
राजस्थान में पहले से लागू है नियम
अगर आप नक्शे को देखेंगे तो अरावली के पहाड़ गुजरात के पालनपुर से शुरू होकर राजस्थान और हरियाणा होते हुए दिल्ली तक जाते हैं. इस पूरी अरावली पर्वत पर्वत श्रृंखला की लंबाई 692 किलोमीटर है. बड़ी बात ये है कि इनमें 550 किलोमीटर की पर्वत श्रृंखला अकेले राजस्थान में आती है, जो कुल पर्वत श्रृंखला का 80 प्रतिशत होता है. यानी अरावली के 80 प्रतिशत पहाड़ अकेले राजस्थान में है. और अभी अरावली के पहाड़ों की जो नई परिभाषा तय हुई है, वो राजस्थान में आज से नहीं बल्कि साल 2006 से लागू है.
नई चीज़ बस ये हुई है कि इस परिभाषा को गुजरात, हरियाणा और दिल्ली के लिए भी लागू कर दिया गया है. और यहां आपको इस नक्शे को भी देखना होगा. असल में राजस्थान में उदयपुर के पास जो अरावली के पहाड़ हैं, उनकी ऊंचाई तो अच्छी खासी है. लेकिन बाद में जब ये पर्वत श्रृंखला हरियाणा और दिल्ली की तरफ बढ़ती है तो इनकी ऊंचाई बहुत कम रह जाती है.
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उदाहरण के लिए उत्तरी राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में अरावली के बहुत कम पहाड़ ऐसे हैं, जिनकी ऊंचाई 100 मीटर से ज़्यादा होगी और ऐसे में खतरा ये है कि ये पहाड़, अरावली रेंज से बाहर हो सकते हैं और इनका खनन शुरू हो सकता है.
तीन अहम सवाल
अब यहां तीन सवाल बहुत महत्वपूर्ण हैं.
पहला सवाल- खनन माफियाओं की नज़र अरावली के पहाड़ों पर क्यों रहती है?
दूसरा- अरावली के पहाड़ उत्तर भारत की Ecology के लिए ज़रूरी क्यों हैं ?
तीसरा- अगर ये पहाड़ भविष्य में खत्म हो गए तो इसका उत्तर भारत के लोगों पर क्या असर होगा?
तो इनमें पहले सवाल का जवाब ये है कि अरावली चट्टानों में खनिजों का विशाल भंडार मौजूद है. केन्द्र सरकार के मुताबिक अरावली की चट्टानों में 81 तरह के खनिज हो सकते हैं, जिनमें 57 खनिजों को आज भी निकाला जा रहा है. इनमें Zinc, सीसा, चांदी, Cadmium और संगमरमर के साथ ग्रेनाइट का पत्थर भी निकाला जाता है. आज अगर आप अपने घरों में ग्रेनाइट का पत्थर लगवाते हैं तो ये पत्थर अरावली के पहाड़ों से ही खनन करके निकाला जाता है. और राजस्थान की सरकार को अरावली की पहाड़ियों का खनन करने से हर साल साढ़े 4 हजार करोड़ रुपये की आमदनी होती है और इससे आप ये समझ सकते हैं कि सबकी नजर अरावली की पहाड़ियों पर क्यों रहती है.

लगातार छलनी हो रही अरावली
सरकार तो छोड़िए, अवैध माफिया भी भ्रष्टाचार के दम पर अरावली की पहाड़ियों का खूब सीना खोदते हैं और निर्माण में इस्तेमाल होने वाले पत्थरों के लिए अरावली की सीना छलनी किया जाता है. और आज भी बहुत सारे लोगों को डर है कि सरकार ने इसी खनन के लिए अरावली के पहाड़ों की परिभाषा को हमेशा के लिए बदल दिया है. यहां बड़ी बात ये है कि अरावली के पहाड़ उत्तर भारत की Ecology के लिए बहुत ज़रूरी हैं. अगर अरावली के पहाड़ खत्म हो गए तो राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके का विस्तार हो सकता है और ये रेगिस्तानी आपके शहर तक पहुंच सकते हैं.
इसके अलावा अरावली की पहाड़ियां मॉनसून के बादलों को धीरे-धीरे पूर्व की ओर मोड़ती हैं, जिससे मॉनसून उप-हिमालय क्षेत्र तक पहुंचते हैं लेकिन अगर ये पहाड़ नहीं रहे तो ये पैटर्न भी प्रभावित होगा. इसी तरह गंगा और यमुना का रिवर बेल्ट सुरक्षित रहता है तो इसका कारण भी अरावली की पहाड़ियां हैं. अरावली की पहाड़ियां मध्य एशिया से आने वाली ठंडी पश्चिमी हवाओं को रोकती हैं और यही पहाड़ियां थार रेगिस्तान से उठने वाली रेत और धूल को भी उत्तर भारत में फैलने से रोकती है. यही पहाड़ियां भारी मात्रा में पानी को जमा करती हैं. और उसे धीरे धीरे छोड़ती हैं और चंबल, साबरमती और लूणी जैसी नदियों को जीवन देती हैं और इसलिए अगर ये पहाड़ियां नहीं रहीं तो पूरा उत्तर भारत बर्बाद हो जाएगा. कैसे वो भी समझिए-
सबसे पहले तो वायु प्रदूषण और खतरनाक हो जाएगा. ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि अरावली रेगिस्तान की धूल को रोकती है. पहाड़ कटे तो धूल सीधे दिल्ली-NCR तक पहुंचेगी. इसके अलावा अरावली के पहाड़ खत्म होने से दिल्ली-NCR धूल का खुला मैदान बन जाएगा. बिना रोक-टोक रेगिस्तान की धूल शहरों में घुसेगी और सांस लेना मुश्किल हो जाएगा. इसी वजह से उपजाऊ ज़मीन रेगिस्तान बन सकती है क्योंकि अरावली पूर्वी राजस्थान और गंगा के मैदानी इलाकों को रेगिस्तान बनने से बचाती है.
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तो हो जाएगी मुश्किल
2017 की रिपोर्ट बताती है कि अरावली में खाली जगह बनने से रेगिस्तान फैलने का खतरा बढ़ रहा है. और इससे झीलें और तालाब भी सूख सकते हैं वो इसलिए क्योंकि जंगल कटे और पहाड़ टूटे तो बारिश कम होगी, पानी ज़मीन में नहीं जाएगा और झीलें सूखेंगी. इससे किसी भी प्रभावित होंगे और खेती करना मुश्किल हो जाएगा. और उड़ती रेत से खेत बंजर हो जाएंगे. इसी तरह अरावली गरम हवाओं को रोकती है और इसके बिना हीटवेव और तापमान दोनों बढ़ेंगे. और भयंकर गर्मी से लोग दिल्ली, हरियाणा और पंजाब जैसे शहरों में मरने लगेंगे.
इससे आप ये भी समझ पाएंगे कि अरावली के पहाड़ भारत के लिए कितने ज़रूरी हैं और इन्हें खनन के लिए खत्म नहीं किया जा सकता. यहां ये भी कहना चाहते हैं कि अरावली की पहाड़ियों का खनन करना और इन पहाड़ियों का सीना खोदना देशद्रोह करने जैसा है. ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इन पहाड़ियों के खत्म होने से भारत के अस्तित्व पर भी खतरा आएगा और उत्तर भारत के इलाकों में जीवन मुश्किल हो जाएगा.
अरावली के पहाड़ियों का इतिहास भारत देश के इतिहास से भी पुराना माना जाता है. अरावली की पहाड़ियों की उम्र 250 करोड़ साल मानी जाती है. ये भारत की सबसे पुरानी पर्वतमाला है. हिमालय से भी कहीं ज़्यादा पुरानी. अरावली तब बनी जब धरती नई-नई थी और इसका निर्माण पृथ्वी के शुरुआती दौर में हुआ था. उस वक्त धरती की प्लेटें टकराने से पहाड़ बने और यही पहाड़ अरावली के पहाड़ कहलाए.
पहले अरावली बहुत विशाल थी लेकिन बाद में ये पहाड़ घिसते चले गए और हवा, पानी और समय ने इसे धीरे-धीरे काट दिया. और अब खनन माफिया से अरावली के पहाड़ों को बड़ा खतरा है. ये खनन माफिया निर्माण में इस्तेमाल होने वाले पत्थरों और रोड़ी-बजरी के लिए अरावली के पहाड़ों में खनन करते हैं और माना जाता है कि इस खनन की वजह से अरावली के पहाड़ों का 40 प्रतिशत इलाका पहले ही सिकुड़ चुका है.