राजस्थान में अरावली पर्वतमाला को बचाने के दावों के बीच 100 मीटर का फॉर्मूला ही उसके विनाश की बड़ी वजह बनता दिख रहा है. Forest Survey of India यानी एफएसआई ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि अरावली की करीब 10 हजार पहाड़ियों में खनन होने से यह पर्वतमाला लगातार खत्म होती जा रही है और इसे रोके जाने की जरूरत है.
इस रिपोर्ट के बाद Central Empowered Committee ने खनन पर रोक लगाने की सिफारिश Supreme Court of India से की. इसके जवाब में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिपोर्ट दाखिल कर राजस्थान में लागू रिचर्ड बर्फी के लैंडफॉर्म सिद्धांत को देशभर में लागू करने की बात कही. इस सिद्धांत के तहत केवल 100 मीटर या उससे ऊंची पहाड़ी को ही पहाड़ और अरावली माना गया.
कैरानी इलाके में हालात बेहद गंभीर
इस फॉर्मूले को लेकर देशभर में विरोध हो रहा है. ग्राउंड रिपोर्ट में सामने आया कि इसकी आड़ में अरावली को तेजी से नष्ट किया जा रहा है. दिल्ली से करीब 80 किलोमीटर दूर एनसीआर के भिवाड़ी के कैरानी इलाके में हालात बेहद गंभीर हैं. एफएसआई की रिपोर्ट में भी इस क्षेत्र का जिक्र है, जहां अरावली की पहाड़ियां लगभग गायब हो चुकी हैं.
यहां 200 से 300 फीट ऊंचे पहाड़ों को खनन माफियाओं ने पूरी तरह खोद डाला है. पहाड़ियों के पास ही बड़े-बड़े क्रेशर प्लांट लगे हैं, जो वन विभाग की जमीन से सटे हुए हैं. दूर तक नजर दौड़ाने पर अरावली का नामोनिशान नहीं दिखता.
पहाड़ों को खनन माफियाओं ने पूरी तरह खोद डाला
स्थानीय लोगों का कहना है कि आसपास के वैध लीज धारक 60 मीटर ऊंची पहाड़ी को अरावली से बाहर बताकर लीज ले लेते हैं और फिर आसपास की सारी पहाड़ियों को खोद देते हैं. 2003 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली में खनन पर रोक के बावजूद राजस्थान सरकार ने 2008 में इसी सिद्धांत के तहत खनन की अनुमति दी थी.
ग्राउंड पर देखा गया कि कुछ खदानों में 500 मीटर तक खुदाई हो चुकी है. आरोप है कि वन विभाग और माइनिंग विभाग की मिलीभगत से इसका दुरुपयोग हुआ. 2008 से 2015 के बीच दी गई कई लीज जांच में गलत पाई गईं, लेकिन तत्कालीन सरकारों में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. इसी वजह से लोग 100 मीटर के फॉर्मूले से डरे हुए हैं.