महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे की ओर से शिवसेना (यूबीटी) के नेता उद्धव ठाकरे के साथ सुलह के संकेत दिए गए हैं. इस ऑफर के बाद महाराष्ट्र का सियासी पारा हाई हो गया है. इस कदम के बाद महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के भविष्य को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही हैं, जो कि संभावित रूप से राज्य में नए राजनीतिक गठबंधनों को आकार दे सकता है.
एमवीए की एकजुटता को खतरा
एमवीए, शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) से मिलकर बना एक मजबूत गठबंधन है, जो लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में एक मजबूत खिलाड़ी रहा है. हालांकि, राज ठाकरे के प्रस्ताव ने अफवाहों को हवा दी है कि उद्धव ठाकरे अपने मौजूदा सहयोगियों से अलग होकर एमएनएस के साथ गठबंधन करने पर विचार कर सकते हैं, जिसमें 'मराठी एजेंडे' को प्राथमिकता मिलेगी.
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अगर इस बात में दम है तो नए समीकरण एमवीए की एकजुटता को चोट पहुंचा सकते हैं और राज्य में सत्ता के संतुलन को बदल सकते हैं. अहम सवाल यह है कि क्या उद्धव ठाकरे पिछले चुनावी मुकाबलों में अपने साथ खड़े गठबंधन को छोड़कर क्षेत्रीय पहचान पर जोर देते हुए राज ठाकरे की एमएनएस के साथ एक नया रास्ता बनाएंगे? बदलते राजनीतिक माहौल को समझने के लिए एमवीए घटकों के पिछले चुनावी प्रदर्शन पर एक नज़र डालने से अहम जानकारी मिलती है.
2019 विधानसभा चुनाव:
शिवसेना (अविभाजित): 16.41%
एनसीपी (अविभाजित): 16.71%
कांग्रेस: 15.87%
2024 विधानसभा चुनाव:
शिवसेना (यूबीटी): 9.96%
एनसीपी (शरद पवार): 11.28%
कांग्रेस: 12.42%
पार्टियों के टूटने के बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने 12.38% वोट हासिल किए, जबकि एनसीपी के अजित पवार गुट ने कुल वोटों का 9.01% हासिल किया. यह डेटा उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) के वोट शेयर में बड़ी गिरावट को दिखाता है, जो अपने एमवीए सहयोगियों, कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) से भी पीछे है.
गिरता वोट शेयर उद्धव की चिंता
वोट शेयर में गिरावट उद्धव ठाकरे के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई है, जिसके कारण यूबीटी सेना हिंदुत्व और पहचान की राजनीति की अपनी वैचारिक जड़ों की ओर लौटने की संभावना तलाश रही है. इस कारण अलग-थलग पड़े बीजेपी या शिंदे के नेतृत्व वाले सेना गुट के साथ सामंजस्य स्थापित करने के बजाय एमएनएस जैसी समान विचारधारा वाली पार्टियों की ओर उनका झुकाव बढ़ा है.
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हालांकि यह राह भी जोखिम से भरी हुई है. एमवीए के अन्य सहयोगी, कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार), अल्पसंख्यकों के खिलाफ आक्रामक रुख की वजह से एमएनएस को अपने पाले में लाने की संभावना नहीं रखते हैं, जिससे उनका कोर वोटर उनसे दूर हो सकता है. इसी तरह, एमएनएस के साथ गठबंधन से अल्पसंख्यकों का समर्थन खतरे में पड़ सकता है, जिसे यूबीटी सेना ने हाल के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में हासिल किया है.
एक तरफ खाई, दूसरी ओर कुआं
इन दबावों के बीच फंसी उद्धव ठाकरे की यूबीटी सेना खुद को एक चौराहे पर खड़ा पाती है. पार्टी का अगला कदम निर्णायक होगा, खासकर तब जब महाराष्ट्र आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के लिए तैयार है. एमएनएस के साथ गठबंधन करने से इसकी क्षेत्रीय अपील बढ़ सकती है, लेकिन अल्पसंख्यक समर्थन खोने का जोखिम है, जबकि एमवीए के साथ बने रहने से इसकी वैचारिक पहचान की कीमत पर गठबंधन की एकता बनी रह सकती है.
राज्य में जैसे-जैसे सियासी हलचल बढ़ रही है, सभी की निगाहें उद्धव ठाकरे पर टिकी हैं कि क्या वह राज ठाकरे का ऑफर स्वीकार करेंगे या एमवीए गठबंधन को मजबूत बनाए रखेंगे. उनका फैसला न सिर्फ यूबीटी सेना के भविष्य को आकार देगा बल्कि आने वाले वर्षों में महाराष्ट्र के राजनीतिक माहौल को भी फिर से परिभाषित कर सकता है.